सख्त कानूनी प्रावधानों से ही अपराधियों पर शिकंजा
डॉ. यश गोयल
अजीब बात है कि कोई भी शरारती और सिरफिरा इंसान किसी भी क्षण हवाई जहाज को अकारण उड़ाने की धमकी भरी ईमेल भेजकर एयरलाइंस इंडस्ट्री के लिये संकट पैदा कर देता है। यह खतरा तब और अधिक गहरा हो जाता है जब ये ‘धमकी’ फ्लाइट के टेक ऑफ करने के बाद एयरपोर्ट अधिकारियों को मिलती है। कुछ महीनों में ऐसी धमकियों की संख्या अब सैकड़ों में पहुंच चुकी है। कुछ धमकी देने वाले पुलिस की गिरफ्त में भी आये हैं परंतु उपयुक्त सख्त कानून के अभाव में पुलिस और केंद्र सरकार किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी है, जिससे कोई नीति का निर्धारण हो सके।
इस समस्या पर कई प्रश्न उभरते हैं। वैसे 24 दिसम्बर, 1999 में प्लेन आईसी-814 कंधार-हाइजेक और आतंकवादियों की रिहाई के बाद प्लेन हाइजेक की कोई बड़ी घटना भारत में नहीं हुई है। घटना के बाद हवाई जहाज यात्रियों और हर प्लेन के उड़ने से पहले उसकी सुरक्षा की जांच बहुत सघन और सुदृढ़ तरीके से होती है। एयरपोर्ट अथॉरिटी व एयरलाइंस कहीं कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। आज आधुनिक टेक्नोलॉजी के युग में व्यवस्था को चाक-चौबंद बनाने में मदद मिली है।
सवाल उठता है कि ऐसे ‘फुलप्रूफ सिस्टम’ होने पर भी धमकी भरी ईमेल से सरकारी और एयरपोर्ट तंत्र क्यों घबरा जाता है? बड़ा आश्चर्य होता है कि हमारे देश की सरकार के जिम्मेदार मंत्रियों की तरफ से भरोसा दिलाने वाला बयान क्यों नहीं आता?
एक धमकी के बाद जगह-जगह मॉक ड्रिल होती है। सुरक्षा चाक-चौबंद कर दी जाती है। यात्री को दो या तीन घंटे पहले चेक-इन कराई जाती है। यात्री के साथ उसके सामान की तलाशी, स्निफर डॉग, सशस्त्र सुरक्षा बल और सीसीटीवी की नजर में हवाई यात्राएं होती हैं। लेकिन इस सबके बावजूद एक ईमेल-थ्रेट पूरे सिस्टम को फिर से पंजों पर खड़ा कर देता है। चार-पांच घंटों के लिये अफरा-तफरी मच जाती है। अगर सिर्फ एयरपोर्ट को बम से उड़ाने की धमकी है तो पूरा एयरपोर्ट सिस्टम थम जाता है। हर चीज की मेटल डिटेक्टर से जांच, सभी कर्मचारियों और रुके हुए यात्रियों को ‘आइसोलेट’ कर दिया जाता है। बम स्क्वाड दस्ते, स्निफर डॉग्स, इंटेलिजेंस एजेंसियां, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल और स्थानीय पुलिस सक्रिय होकर जांच करती हैं। एयरपोर्ट पर खड़े हवाई जहाज को भी आइसोलेट कर दिया जाता है। अभी तक के ऐसे मामलों में किसी घातक वस्तु मिलने की जानकारी मीडिया को नहीं मिली है।
अगर कोई एलर्ट किसी फ्लाइट के लिये होता है तो उस उड़ती फ्लाइट की आपातकालीन लैंडिंग कराई जाती है—किसी भी निकटतम रनवे पर। सबसे पहले यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाला जाता है। सीआईएसएफ जवान प्लेन का सघन निरीक्षण करते हैं। पुलिस ईमेल थ्रेट को डिटेक्ट करने में लग जाती है। इससे यात्रियों को जो तकलीफ और यात्रा का विलम्ब होता है उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। उनके महत्वपूर्ण कार्य विलम्ब से होते हैं या रद्द हो जाते हैं। समाचारों से पता चलता है किसी का इंटरव्यू रह गया, उच्चस्तरीय सरकारी मीटिंग्स कैंसिल हो गयीं, किसी की इंटरनेशनल फ्लाइट मिस हो गयी। हर यात्री का कुछ नुकसान जरूर होता है।
केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय भी मानता है कि वर्तमान में, ऐसे मामलों में मुकदमा चलाने के लिए कोई प्रत्यक्ष कानूनी प्रावधान नहीं हैं। लेकिन भारतीय न्याय संहिता, 2023 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराओं में कुछ कानूनी उपाय जरूर हंै। उदाहरण के लिए, बीएनएस की धारा 353 के तहत, सार्वजनिक अलार्म पैदा करने वाली झूठी सूचना फैलाने वालों को तीन साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। धारा 351 आपराधिक धमकी को संबोधित करती है, जिसमें मौत, गंभीर चोट या आगजनी की धमकी के लिए सात साल तक की जेल की सज़ा हो सकती है। गुमनाम धमकियों के लिए अतिरिक्त दो साल की सज़ा हो सकती है।
डिजिटल चैनलों के माध्यम से की गई फर्जी कॉल या महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे में हस्तक्षेप करने के लिए, आईटी अधिनियम की धारा 66 एफ को लागू किया जा सकता है। जो ऐसे कृत्यों को साइबर आतंकवाद के रूप में वर्गीकृत करता है, संभावित रूप से आजीवन कारावास से दंडनीय है। मंत्रालय के अनुसार विमानन-विशिष्ट नियमों में बदलाव किए जा सकते हैं।
मंत्रालय और एयरपोर्ट सूत्रों के अनुसार हर फ्लाइट के साथ ही एक सीआईएसएफ के जवान को सादी वर्दी में ‘एयर मार्शल’ का दर्जा देकर प्लेन में एक साधारण यात्री की तरह बोर्डिंग कराई जायेगी। जो किसी भी एलर्ट, और अनहोनी का सामना करने को सक्षम हो सकेगा।
एयरपोर्ट के एक उच्च अधिकारी के अनुसार एयरलाइंस और एयरपोर्ट (भले प्राइवेट सेक्टर का हो) 0.001 प्रतिशत भी बम की धमकी को हल्के में नहीं ले सकता। भले इसमें हम कितने ही फुलप्रूफ क्यों न हों। चाहे एयर लाइंस और एयरपोर्ट को एक धमकी से निपटने और उबरने से लाखों रुपयों का आर्थिक नुकसान क्यों न हो? हर यात्री की जीवन सुरक्षा ही परम उद्देश्य है। निस्संदेह, यात्रियों की तकलीफ को जितना बयां करो उतना कम होता है। अब कई जगह इससे जुड़े शरारती तत्व साइबर क्राइम सेल द्वारा पकड़े जा रहे हैं। लेकिन अगर कानून सख्त हुए तो ये धमकियां समाप्त हो सकेंगी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।