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दवा के साथ तनाव प्रबंधन भी राहतकारी

10:12 AM Apr 24, 2024 IST
दवा के साथ तनाव प्रबंधन भी राहतकारी
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डॉ. एके अरुण
बाईपोलर डिसऑर्डर मानसिक सेहत से जुड़ी एक गंभीर दशा है। इस स्थिति को ‘मैनिक डिप्रेसिव इलनेस’ भी कहा जाता है। इसमें व्यक्ति की मन:स्थिति या मिज़ाज में बहुत गंभीर उतार-चढ़ाव आते हैं जिन्हें मूड स्विंग्स कहा जाता है। यह आमतौर पर कई हफ़्तों या महीनों तक बना रह सकता है। लोगों में बाइपोलर डिसऑर्डर की व्यापकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक 50 वयस्कों में से लगभग एक को अपने जीवन में किसी समय बाइपोलर डिसऑर्डर होता है। यह आमतौर पर 15 से 25 वर्ष की आयु के बीच शुरू होता है। असल में इसमें बहुत ज्यादा सुस्ती व बहुत अधिक सक्रिय महसूस होने की स्थितियां रह सकती हैं।

द्विध्रुवीय विकार के प्रकार

मन:स्थिति के दो छोरों (हाई व लो) की गड़बड़ी से जुड़ा यह विकार कई प्रकार का होता है। साथ ही विकार की गंभीरता के मुताबिक गड़बड़ी के स्तर भी अलग-अलग हो सकते हैं। जानिये ‘मैनिक डिप्रेसिव इलनेस’ यानी बाईपोलर डिसऑर्डर के प्रमुख प्रकार -

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बाइपोलर वन

प्रभावित व्यक्ति के साथ यह कम-से-कम कुछ हफ़्ते या बिना इलाज के, 6 से 12 महीने तक भी चल सकता है।

बाइपोलर टू यानी हाइपोमेनिया

जब किसी व्यक्ति में अत्यधिक अवसाद के एक से अधिक प्रकरण, लेकिन केवल मध्यम उन्माद के मामले ही होते हैं। इसे ‘हाइपोमेनिया’ कहा जाता है।

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रैपिड-साइक्लिंग

यह वह स्थिति है जिसमें 12 महीने की अवधि में आपके साथ चार या अधिक मूड प्रकरण यानी एपिसोड होते हैं। यह बाइपोलर डिसऑर्डर वाले लगभग 10 लोगों में से 1 व्यक्ति को प्रभावित करता है और वन (I) और टू (II) दोनों प्रकार के साथ हो सकता है।

साइक्लोथिमिया

यह वो दिशा है जब पूर्ण बाइपोलर डिसऑर्डर वाले लोगों की तुलना में मिज़ाज में उतार-चढ़ाव यानी मूड स्विंग्स कम गंभीर होते हैं, लेकिन ये लक्षण लंबे समय तक हो सकते हैं। यह भी कि समय के साथ यह दशा पूर्ण बाइपोलर डिसऑर्डर में विकसित हो सकती है।

पहचान के लिए प्रमुख लक्षण

जाहिर है हम सभी समय-समय पर अवसाद की भावनाओं का अनुभव करते हैं। यह भी कि आप इनमें से कुछ या सभी बातें महसूस या नोटिस कर सकते हैं।

भावनात्मक परिवर्तन

इस दशा में अप्रसन्नता की भावनाएं रहती हैं जो दूर नहीं होती। साथ ही महसूस होना कि आप बिना किसी कारण रोना चाहते हैं। वहीं चीज़ों में दिलचस्पी ख़त्म होना भी बड़ा संकेत है। चीज़ों का आनंद न ले पाना भी शामिल है। बेचैन और उत्तेजित महसूस करना, आत्मविश्वास खोना, निकम्मा, अयोग्य और हताश महसूस करना भी इस विकार की एक निशानी है। साथ ही सामान्य से अधिक चिड़चिड़ापन महसूस करना, आत्महत्या के बारे में सोचना भी मिजाज में आ सकता है।

सोच से जुड़ी परेशानियां

इस स्थिति में घिरा व्यक्ति सकारात्मक या आशावादी सोच नहीं रख पाता । आपको सरल निर्णय लेने में भी कठिनाई होती है। ऐसी दशा में पूरी एकाग्रता से काम नहीं कर पाते।

शारीरिक लक्षण

ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति खाना नहीं चाहते और वज़न कम हो जाता है। वहीं सोना मुश्किल होता है। बहुत जल्दी उठ जाते हैं और दोबारा सो भी नहीं पाते। वहीं एकदम थका हुआ महसूस करना भी इस विकार का संकेत है। कॉन्स्टिपेशन हो जाती है। वहीं इस दशा के दौरान लोग सेक्स में रुचि खो देते हैं।

व्यवहार से ऐसे जानें

यह वो स्थिति होती है जब प्रभावित व्यक्ति के लिए चीज़ों को शुरू करना या खत्म करना कठिन होता है। यहां तक कि रोज़मर्रा के काम भी भारी लगने लगते हैं।
ऐसी दशा में लोग या तो बहुत रोते हैं – या ऐसा लगता है कि रोना चाहते हैं, लेकिन रो नहीं सकते। दूसरे लोगों से बचने की प्रवृत्ति भी इस विकार की एक पहचान है।

बाइपोलर डिसऑर्डर का उपचार

बाइपोलर डिसऑर्डर को नियंत्रित करने के लिए तनाव का स्तिर कम होना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही मरीज को भरपूर नींद के साथ ही नशीले पदार्थों के सेवन से दूर रहना चाहिये। रोगी को अपने आत्म विश्वापस को मजबूत रखना चाहिए। साथ ही ऐसे रोगियों की दवा, मनोवैज्ञानिक इलाज और पारिवारिक काउंसलिंग आदि महत्वपूर्ण बातों का ध्या न रखने की भी जरूरत है। विशेष तौर पर, होमियोपैथी में लंबे इलाज से भी अच्छा लाभ मिलता है। हील इनिशिएटिव

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