स्वदेशी एआई बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाएं
मुकुल व्यास
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) इंसानी बुद्धिमत्ता का पूरक बन कर लोगों के जीने और काम करने के तरीकों को बेहतर बनाने के अवसर प्रदान करती है। अपने व्यापक अनुप्रयोगों के साथ, एआई और मशीन लर्निंग हमारे जीवन के लगभग सभी तकनीकी पहलुओं में मौजूद हैं। वृहद स्तर पर देखें तो एआई और मशीन लर्निंग ने कृषि, खुदरा, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा सहित कई क्षेत्रों पर व्यापक प्रभाव डाला है। आज पूरी दुनिया में एआई हावी है। इस क्षेत्र में तेजी से हो रहे विकास को देखते हुए भविष्य भी एआई का ही होगा। भारत को इस क्षेत्र की अपार क्षमताओं का भरपूर लाभ उठाने के लिए अभी बहुत कुछ करना है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की असीम संभावनाओं, हजारों एआई स्टार्टअप्स और देश में प्रौद्योगिकी प्रतिभाओं के विशाल भंडार को लेकर तमाम उत्साह के बावजूद,भारत एआई अनुसंधान में अमेरिका और चीन से बहुत पीछे है। अग्रणी शिक्षाविद इसके लिए फंडिंग की कमी और शोध के लिए बुनियादी ढांचे को जिम्मेदार ठहराते हैं। एआई एक्सेलेरेटर और इकोसिस्टम बिल्डर चेंज इंजन द्वारा किए एक अध्ययन के अनुसार दुनिया के शीर्ष 10 एआई सम्मेलनों में पेपर योगदान के मामले में देश एआई अनुसंधान में 14वें स्थान पर है, जिसकी वैश्विक हिस्सेदारी सिर्फ 1.4 प्रतिशत है।
अध्ययन के अनुसार, अमेरिका और चीन क्रमशः 30.4 प्रतिशत और 22.8 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ एआई अनुसंधान पर हावी हैं। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि भारत को पांच साल में 5 प्रतिशत वैश्विक हिस्सेदारी पाने और विश्व स्तरीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए एआई अनुसंधान को कम से कम 40 प्रतिशत प्रति वर्ष बढ़ाने की आवश्यकता है। अध्ययन में यह भी पता चला है कि भारत की एआई वृद्धि दर 15.5 प्रतिशत है, जो एशियाई टाइगर इकॉनमी वाले देशों में देखी गई 20 प्रतिशत प्लस वृद्धि दर से काफी कम है। संयुक्त राज्य अमेरिका की वृद्धि दर अग्रणी देशों में सबसे कम है, जिसका मुख्य कारण इसका पहले से ही पर्याप्त योगदान आकार है। चीन 29.5 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि का दावा करता है, हांगकांग 23.6 प्रतिशत हासिल करता है जबकि दक्षिण कोरिया 29.3 प्रतिशत का प्रभावशाली प्रदर्शन करता है।
दरअसल, अध्ययन से एआई सम्मेलनों में भारत के विभिन्न संस्थानों द्वारा किए गए योगदान का भी पता चलता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी), बेंगलुरू और आईआईटी मुंबई कुल भारतीय योगदान का क्रमशः 15.6 प्रतिशत और 10.3 प्रतिशत योगदान देकर सबसे आगे हैं। 2018 से 2023 तक इन सम्मेलनों में भारत के एआई योगदान के 70 प्रतिशत के लिए आठ संस्थान जिम्मेदार हैं। इनमें आईआईएससी के अलावा सात आईआईटी शामिल हैं। रिपोर्ट में इन संसाधनों को एआई लीडर्स बताया गया है।
इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट में ‘एआई राइजिंग स्टार्स’ के एक समूह की पहचान की गई है, जिनकी वृद्धि दर पिछले दशक में 15 प्रतिशत से अधिक हो गई है और अगले पांच वर्षों में उनके द्वारा उल्लेखनीय रूप से योगदान दिए जाने की उम्मीद है। ये उभरते संस्थान हैं आईआईटी हैदराबाद, आईआईटी जोधपुर, डीटीयू, आईएसआई कोलकाता, आईआईटी रुड़की और आईआईटी पटना।
अध्ययन में एआई के क्षेत्र में ज्ञान साझा करने के लिए शीर्ष 20 भारतीय संस्थानों और अमेरिका, यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया के विश्वविद्यालयों के बीच संयुक्त पीएचडी कार्यक्रमों के निर्माण की वकालत की गई है। आईआईटी कानपुर के न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के साथ मौजूदा सफल कार्यक्रम को ऐसी पहलों के लिए एक मॉडल के रूप में उजागर किया गया है।
बिट्स पिलानी के कुलपति वी. रामगोपाल राव का कहना है कि अमेरिका और चीन जैसे देशों ने उच्च शिक्षा और बड़े संस्थानों में भारी निवेश किया है। बिट्स पिलानी, एआई शोध में देश के शीर्ष 20 स्कूलों में एकमात्र निजी संस्थान है। उन्होंने कहा कि चीन अकेले पेकिंग और सिंघुआ विश्वविद्यालयों पर जो खर्च करता है, वह भारतीय शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा बजट के बराबर है। इसलिए कुछ विश्वविद्यालय होने चाहिए जिन्हें प्राथमिकता दी जाए और फिर आप वहां क्षमता का निर्माण करें। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा चीन ने किया।
राव ने उच्च शिक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, भारत में प्रति दस लाख लोगों पर 255 शोधकर्ता हैं, जबकि अमेरिका जैसे देशों में 4,245 है। उन्होंने कहा, जीडीपी के प्रतिशत के रूप में, भारत में उच्च शिक्षा में निवेश कम हो रहा है। चेंज इंजिन के संस्थापक वरुण अग्रवाल ने कहा कि बुनियादी एआई शोध में क्षमता एआई अनुप्रयोगों और प्रसार के अलावा भारत के दीर्घकालिक नेतृत्व के लिए महत्वपूर्ण है। हमें अगले 5 वर्षों में 5 प्रतिशत वैश्विक हिस्सेदारी प्राप्त करने के लिए कम से कम 4 प्रतिशत की वृद्धि दर की आवश्यकता है। इसका भारतीय नवाचार पर उत्प्रेरक प्रभाव पड़ेगा।
एक अच्छी बात यह है कि भारत सरकार ने आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस मिशन के लिए 10372 करोड़ मंजूर किए हैं। यह धनराशि अगले पांच वर्षों के दौरान खर्च की जाएगी। सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय को उच्च प्रदर्शन वाले ग्राफिक प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) की खरीद सहित एआई के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए केंद्रीय बजट 2024-25 में 551.75 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि मिशन के लिए आवंटित राशि का सदुपयोग भारत में एक मजबूत एआई कम्प्यूटिंग बुनियादी ढांचा निर्मित करने के लिए किया जाएगा। नीति आयोग के अनुसार, 2035 तक, एआई में भारत की अर्थव्यवस्था में 1 ट्रिलियन डॉलर जोड़ने की क्षमता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मिशन उन प्रयासों पर केंद्रित है, जो स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कृषि, स्मार्ट शहरों और स्मार्ट मोबिलिटी और परिवहन सहित बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में सामाजिक जरूरतों को पूरा करने में भारत को लाभान्वित करेंगे।
दरअसल, यह मिशन राष्ट्रीय स्तर पर कोर अनुसंधान क्षमता विकसित करने पर व्यापक शिक्षा-उद्योग बातचीत के साथ काम करेगा। जिसमें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी शामिल होंगे। यह नए ज्ञान के निर्माण और अनुप्रयोगों को विकसित करने और तैनात करने के माध्यम से प्रौद्योगिकी सीमाओं को आगे बढ़ाने में मदद करेगा। सरकार का मुख्य जोर डेटा की गुणवत्ता को बढ़ाना और स्वदेशी एआई तकनीक को विकसित करने पर होना चाहिए। साथ ही शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करना और प्रभावशाली एआई स्टार्टअप को प्रोत्साहन देना भी आवश्यक होगा। इस दिशा में समग्र प्रयासों से ही भारत आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में दुनिया के तकनीकी रूप से उन्नत देशों को टक्कर दे पाएगा।
लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।