वार्ता में चीनी चुनौती से निपटने की रणनीति भी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जारी अमेरिका यात्रा का मुख्य उद्देश्य जहां दो लोकतांत्रिक देशों के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना होगा, वहीं चीन द्वारा विश्व के कमजोर देशों को वित्तीय जाल में फंसाने की नीति के चलते एशिया व अन्य महाद्वीपों में उसके बढ़ते प्रभाव को रोकना रहेगा।
इस संदर्भ में पीएम नरेंद्र मोदी का ट्वीट काफी अहम है कि ‘इस बात से अत्यंत रोमांच अनुभव कर रहा हूं कि मैं अमेरिकी संसद के दोनों सदनों को सम्बोधित करूंगा। अमेरिका के साथ हमारी महत्वपूर्ण भागीदारी, दोनों देशों में लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित मित्रता और लोगों में बढ़ता भाईचारा विश्व में शांति और विकास की दिशा में महत्वपूर्ण पहल होगी।’ ऐसे में भारत और अमेरिका संयुक्त रूप से चीनी आक्रामकता के मुकाबले के लिए रणनीति बना सकते हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि चीन अड़ियल रुख के कारण भारतीय क्षेत्र पर अपने अतिक्रमण को छोड़ने को तैयार नहीं है। वहीं विश्व के समक्ष स्वयं को एक उदार राष्ट्र सिद्ध करने के लिए भारत के साथ वार्तालाप के दौर जारी रख रहा है जबकि किसी भी बात पर सहमत नहीं हुआ। इसी कारण भारत सजग है। विश्लेषकों का मानना है कि चीन एक रणनीति के तहत गरीब व छोटे देशों को कर्जदार बना रहा है और दक्षिण एशिया के राष्ट्रों को चीन की इस नीति से बचाने में भारत-अमेरिका सहयोग अहम हो सकता है। इससे विश्व में चीन के बढ़ते प्रभाव पर भी रोक लग सकेगी। मोदी और बाइडन इन मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
हाल के दिनों में भारत और अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों में वार्ताओं के कई दौर हुए हैं जिनमें भविष्य की रणनीति का खाका तैयार किया गया ताकि तकनीकी स्तर पर अधिक आदान -प्रदान हो जो भारत को औद्योगिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम होगा। प्रधानमंत्री मोदी का सपना है कि आत्मनिर्भरता के बाद भारत विश्व शक्ति बन कर उभरे। समझा जाता है कि सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण वायु, थल और समुद्र के नीचे टोह लेने एवं गतिविधियों पर नजर रखने की तकनीकों पर समझौते तैयार किये जाएंगे। भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति इन पर मोहर लगाएंगे। इन समझौतों के बाद भारत को उच्चतम और आधुनिक तकनीक मिल सकेगी जो भारत के रक्षा उद्योग को नए पंख लगाएगी। इन समझौतों को इंडस एक्स का नाम दिया गया है।
दुनिया भारत और रूस के दशकों से चले आ रहे मैत्रीपूर्ण संबंधों से वाकिफ है। अमेरिका के सख्त विरोध के बावजूद भारत ने रूस से पेट्रोल आदि आयात को बंद नहीं किया। मोदी इस विषय में भारत का पक्ष अवश्य रखेंगे। यह भी चर्चा का विषय होगा कि भविष्य में देश के हितों की अनदेखी किए बगैर किस प्रकार रूसी तेल पर निर्भरता कम की जा सकती है।
विश्लेषकों का मानना है कि मोदी की यह यात्रा विश्व के सभी देशों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मौजूदा समय में जब चीन अपनी औपनिवेशिक गतिविधियां तेज कर रहा है, अमेरिका को इस पर अंकुश लगाने के लिए भारत का साथ जरूरी है। यह भारत के लिए भी महत्व रखता है क्योंकि चीन देश की सीमाओं पर निरंंतर अतिक्रमण से बाज नहीं आ रहा। इस यात्रा के दौरान रक्षा और औद्योगिक सहयोग के कई समझौतों पर हस्ताक्षर होंगे। विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका को चीन की रोड एंड बेल्ट परियोजना से चिंता है क्योंकि समझा जाता है कि इसको मोहरा बना कर चीन दक्षिण एशिया के देशों पर प्रभुत्व कायम करने का प्रयास कर रहा है। चीन निरन्तर दक्षिण चीन सागर पर आधिपत्य जमाने का प्रयास कर रहा है जिसके कारण जापान और अमेरिका के इस क्षेत्र के सहयोगी देशों का चिंतित होना स्वाभाविक है। मोदी का प्रयास रहेगा कि इस स्थिति में भारत अमेरिका के सहयोग से चीन को रोकने में अहम भूमिका निभाए।
भारत डिजिटल और तकनीकी क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है और यदि भारत-अमेरिका इस क्षेत्र में सहयोग को गति प्रदान करते हैं तो चीन का प्रभाव कम किया जा सकता है क्योंकि भारत उत्पादन की क्षमता रखता है। इस समय चीन परेशान है कि अमेरिका ने नयी रणनीति अपनाकर चीनी उत्पादों पर अपनी निर्भरता कम की है। अमेरिका प्रयासरत है कि नए उत्पादन क्षेत्र विकसित कर चीन के कंप्यूटर चिप पर निर्भरता पूरी तरह समाप्त की जाए। भारत की इस क्षेत्र में अहम भूमिका होगी। यदि ऐसा हुआ तो भारत इन चिप्स के उत्पादन के लिए अहम होगा।
हाल ही में भारत और अमेरिका के उच्च अधिकारियों ने छह माह की लंबी मंत्रणा के बाद इस द्विपक्षीय बातचीत के मसौदे को अंतिम रूप दिया था। अब अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने दिल्ली में प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले बातचीत की। दोनों सुरक्षा सलाहकारों ने आपसी सहयोग की लंबी अवधि की महत्वाकांक्षी परियोजना के मसौदे पर प्रकाश डाला और उन्नत तकनीक के सात क्षेत्रों जिनमें दूरसंचार, सेमी कन्डक्टर निर्माण, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे विषयों का खुलासा किया। इसी कड़ी में भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने वॉशिंगटन में अमेरिका की सहायक सचिव विक्टोरिया नुलैंड से भेंट कर वार्तालाप के लिये भूमिका तैयार की। इस घटनाक्रम से स्पष्ट है कि दोनों देशों का मुख्य उद्देश्य आपसी सहयोग से व्यापार बढ़ाना व दक्षिण एशिया क्षेत्र की सुरक्षा को भी मजबूती देना है। विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी का दौरा भारत-अमेरिका संबंधों को नयी ऊर्जा प्रदान करेगा और चीन की उपनिवेशवादी नीति पर अंकुश लगाएगा।
लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।