बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानियां
कृष्णलता यादव
‘दादी का बेंत’, सुविख्यात बाल साहित्यकार, डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल का सद्य प्रकाशित बाल कहानी संग्रह है। कुल 25 कहानियों से सज्जित इस संग्रह में न प्राचीन काल के राजा-रानी हैं, न राजकुमार-राजकुमारियां, न परियों की जादुई कारगुजारियां और न ही कल्पना के हवाई किले। इनमें हैं बच्चों का अपना परिवेश, उससे जुड़ी समस्याएं एवं उनके समुचित समाधान। बाल मनोविज्ञान को ध्यान में रखकर लिखी गई इन कहानियों में हैं— घर, परिवार, मित्र, शिक्षक, विज्ञान तथा प्रकृति का सान्निध्य।
पात्र रूप में दादा-दादी की उपस्थिति सुखद अहसास करवाती है। भावात्मक धरातल पर एक-दूसरे से जुड़ी दो पीढ़ियां अपनी बातें, आशाएं, इच्छाएं और सपने साझे करती हैं। बच्चों के स्वाभाविक प्रश्न हैं वहीं बड़ों के अनुभव-पगे उत्तर भी हैं। प्रत्येक कहानी एक निश्चित उद्देश्य को लेकर चली है और एक ही बैठक में पढ़ी जा सकती है। इनमें बालसुलभ जिज्ञासाएं, रिश्तों की महक, नीति-बोध की बातें, वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी, पशु-पक्षियों का संसार, पर्यावरण-चेतना और सामाजिक समरसता आदि विषय सम्पूर्ण जीवन्तता के साथ समाये हैं। काव्यात्मक शीर्षकों में बंधी कहानियों में कहानीकार ने, परोक्ष रूप से, मंत्र-सा फूंका है– गलती/भूल को स्वीकारना-सुधारना अच्छी बात है, मेहनत रंग लाती है, प्रयत्न करने पर चाह को राह मिल जाती है, अपने परिवेश के प्रति बालपन से ही चौकस रहना ज़रूरी है, सामूहिक आयोजनों में प्रत्येक की भागीदारी हो।
पशु-पक्षी, बादल, वृक्ष आदि का मानव की भांति बातें करना अच्छा लगता है। कहानियों की भाषा मुहावरेदार, सरल-सहज, आवश्यकतानुसार अंग्रेजी शब्दावली, चुस्त-चुटीले वाक्य तथा प्रश्न व संवाद शैली शिल्प-सौन्दर्य-वृद्धि कारक हैं। कहा जा सकता है कि लेखक ने अपनी बहुकोणी आंख से विविधतापूर्ण विषयों को कहानियों में समेटा है ताकि बाल समाज इनका भरपूर लाभ ले सके और साहित्यकार का श्रम सार्थक हो सके।
यदि कहानियों के साथ चित्र होते, फॉन्ट-साइज तथा पुस्तक-साइज थोड़े बड़े होते तो बात और ही होती।
पुस्तक : दादी का बेंत लेखक : डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल प्रकाशक : के.एल. पचौरी, गाजियाबाद पृष्ठ : 80 मूल्य : रु. 200.