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सिनेमा की पटरी पर भी दौड़ती रही हैं कहानियां

12:36 PM Jun 17, 2023 IST

हेमंत पाल

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उड़ीसा के बालासोर में पिछले दिनों हुए रेल हादसे ने पूरे देश को झकझोर दिया। हादसों के बावजूद पहिये कभी थमते नहीं हैं। माना जाता है कि रेलों में रोज एक छोटा-सा भारत सफर करता है। रेल केवल पटरी पर ही नहीं दौड़ती, हिंदी फिल्मों में भी यही रेल फिल्म की कहानी और अलग-अलग सिचुएशन का महत्वपूर्ण अंग बनकर दिखाई देती है। लेकिन, हिंदी फिल्मों में हादसों पर चंद फ़िल्में ही बनीं। याद किया जाये तो 1980 में रवि चोपड़ा के निर्देशन में बनी ‘द बर्निंग ट्रेन’ अकेली फिल्म थी, जिसकी कहानी ट्रेन हादसे पर केंद्रित थी। उसके बाद आज चार दशक बाद भी किसी निर्माता ने ट्रेन हादसे पर कभी फिल्म नहीं बनाई। जबकि हॉलीवुड में इस विषय पर कई फ़िल्में बन चुकी हैं। अलबत्ता हिंदी फिल्मों में ट्रेन एक ऐसा रोचक माध्यम रहा, जिसे अकसर फिल्माया जाता रहा।

सुपरफास्ट ट्रेन और साजिश की कहानी

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‘द बर्निंग ट्रेन’ में विनोद खन्ना, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, जितेंद्र, परवीन बॉबी और डैनी जैसे कई बड़े कलाकारों ने काम किया था। फिल्म की कहानी पहली बार पटरी पर उतरने वाली सुपरफास्ट ट्रेन पर आधारित थी, जिसके पहले सफर में ही उसमें एक साजिश के तहत आग लग जाती है। ट्रेन में बैठे सैकड़ों यात्रियों की जान बचाने के लिए कई उपाय किए जाते हैं, तब ट्रेन को सुरक्षित रोका जाता है। लेकिन, यह फिल्म बहुत ज्यादा पसंद नहीं की गई।

प्लेटफॉर्म पर कहानियों के दृश्य

सिनेमा के पर्दे पर रेल कई बार कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। चाहे आदित्यचोपड़ा की ‘मोहब्बतें’ का शुरुआती दृश्य हो या श्याम बेनेगल की कला फिल्म ‘मम्मोह’ में फरीदा जलाल की भारत से पाकिस्तान की मर्मस्पर्शी विदाई का, रेल हर जगह मौजूद रही! दर्शकों के दिलों को धड़काने वाली फिल्मों में रेल और उसका प्लेटफार्म प्रेम, द्वेष, मिलन, रहस्य, रोमांच, अपराध, मिलन-जुदाई के साथ आंसू और मुस्कान जैसी भावनाओं को शिद्दत के साथ सेल्यूलाइड पर उकेरता रहा है। भारत के विभाजन की त्रासदी को एमएस सथ्यू की फिल्म ‘गर्म हवा’ में बखूबी से दर्शाया गया था। अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘नास्तिक’ में भी विभाजन की त्रासदी को दर्शाने के लिए ट्रेन को बतौर प्रतीक लिया गया, तो सनी देओल की फिल्म ‘गदर : एक प्रेम कथा’ में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के कारण रेलवे प्लेटफार्म और चलती ट्रेन में हिंसा के दृश्यों ने दर्शकों में सिहरन पैदा कर दी थी। जबकि, सलमान खान की ‘बजरंगी भाईजान’ में इसी रेल ने दो पड़ोसी मुल्कों के संबंधों को दिखाया था।

रेल में स्टंट ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने से

साल 1934 में आई ‘तूफान मेल’ में पहली बार चलती ट्रेन में स्टंट दृश्य फिल्माए थे। उस सदी के पांचवें दशक में जब नाडिया हंटर लेकर जब ट्रेन की छत पर खलनायकों को पीटती थी, तो सिनेमा हाल तालियों और सीटियों से गूंज जाता था। चलती ट्रेन में स्टंट के लिए दिलीप कुमार की ‘गंगा जमुना’ का रेल डकैती सीन बहुत ही रोमांचक था। सलीम जावेद ने इस दृश्य को उलट-पुलटकर ‘शोले’ में शामिल किया था। बोनी कपूर की फिल्म ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ में विदेशी स्टंट डायरेक्टर की मदद से चोरी का दृश्य फिल्माया गया था। इसी तरह जंजीर, दीवार, दो भाई, सन आफ सरदार, विधाता और द ट्रेन में रेल का रोमांचक उपयोग किया गया था।

शीर्षकों में रेल

रेल को शीर्षक बनाकर जो फिल्में बनी उनमें शम्मी कपूर और सुनील दत्त की पहली फिल्म रेल का डिब्बा और रेलवे प्लेटफार्म के अलावा द ट्रेन, ट्रेन टू पाकिस्तान, द बर्निंग ट्रेन, तूफान मेल, चेन्नई एक्सप्रेस, स्टेशन मास्टर और एक चालीस की लास्ट लोकल चर्चित हैं। ज्यादातर फिल्मों में रेल का डिब्बा नायक-नायिका की नोक-झोंक या सौम्य मिलन और फिर प्रेम के पनपने का कारण बनता रहा है। राजेंद्र कुमार की मेरे महबूब, जितेंद्र की मेरे हुजूर, राजेश खन्ना की ‘आराधना’ से लेकर शाहरुख खान की ‘चमत्कार’ और ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ तक यह परंपरा लगभग सभी नायकों ने निभाई। ‘पाकीजा’ में ट्रेन का वह दृश्य यादगार बना जिसमें राजकुमार सोती हुई मीना कुमारी के खूबसूरत पैरों पर फिदा होकर संदेश छोड़ जाते है ‘आपके पांव देखे… बहुत खूबसूरत हैं। इन्हें जमीन पर न रखिएगा, मैले हो जाएंगे!’ इसी फिल्म के गीत ‘चलते-चलते कोई’ के अंत में रेल की सीटी का बेहतरीन प्रयोग किया गया था।

दृश्य जो यादगार बन गए

जुदाई की त्रासदी से दर्शकों का दिल चीर देने वाले रेल दृश्यों में राज कपूर की ‘तीसरी कसम’ और कमल हसन की ‘सदमा’ भुलाए नहीं भूलते। इसी तरह ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ के अंतिम दृश्य में रेल से जा रहे शाहरुख से मिलने के लिए काजोल का हाथ छोड़ते हुए अमरीश पुरी का कहना ‘जा सिमरन जी ले अपनी जिंदगी’ यादगार संवाद बन गया। कुछ फिल्में और हैं जिनकी कहानी को आगे बढ़ाने में रेल का योगदान है। ‘दो उस्ताद’ में राज कपूर और शेख मुख्तार रेल के कारण एक-दूसरे से बिछुड़ जाते हैं, तो ‘हेरा-फेरी’ में सलीम-जावेद ने इसी की नकल करके अमिताभ और विनोद खन्ना को मालगाड़ी के माध्यम से जुदा किया था।

देव आनंद की रेल से मोहब्बत

कुछ कलाकार ऐसे हैं जिन्हें रेल से ज्यादा ही प्यार था। देव आनंद भी ऐसे ही कलाकार थे। उन्होंने फिल्म जब प्यार किसी से होता है में ‘जिया हो जिया ओ जिया कुछ बोल दो’, सोलहवां साल में ‘है अपना दिल तो आवारा’ और काला बाजार में ‘ऊपर वाला जानकर अनजान है’ गाकर दर्शकों को गुदगुदाया था। जितेन्द्र ने मेरे हुजूर फिल्म में ‘रुख से जरा नकाब हटाओ’, राजेश खन्ना ने आराधना में ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू’और अजनबी में ‘हम दोनों दो प्रेमी दुनिया छोड़ चले’ गाया है। फिल्म अजनबी में तो राजेश खन्ना स्टेशन मास्टर भी बने थे। शम्मी कपूर ने विधाता में दिलीप कुमार के साथ रेल ड्राइवर बनकर ‘हाथों की चंद लकीरों’ को पटरी पर दौड़ाया था।

गीतों में भी छाई रही रेल

इस तरह के रेल वाले गीतों में 1941 की फिल्म ‘डॉक्टर’ का गीत आई आज बहार, ‘दिल से’ का मलाइका और शाहरुख का चल छैयां छैंया, फिल्म ‘जागृति’ का आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की, फिल्म ‘दोस्त’ का गाड़ी बुला रही है, ‘रफूचक्कर’ का बाम्बे से बड़ौदा तक, ‘शोले’ का टेशन से गाड़ी जब छूट जाती है तो, ‘हमराज’ का नीले गगन के तले, ‘जमाने को दिखाना है’ का अरे होगा तुमसे प्यारा कौन, ‘खूबसूरत’ का इंजन की सीटी में म्हारो दिल डोले तो बेहद लोकप्रिय हुए! लेकिन अशोक कुमार का ‘आशीर्वाद’ में गाया गीत रेल गाड़ी भारत का पहला रैप गीत माना जाता है। हिंदी फिल्मों में रेल की महत्ता को स्थापित करने वाली फिल्मों में छलिया, वीर जारा, बंटी और बबली, जब वी मेट, ये जवानी है दीवानी, इश्क़जादे, किक, गुंडे, टायलेट एक प्रेमकथा, कुछ कुछ होता है, जानी गद्दार, पति पत्नी और वो और चेन्नई एक्सप्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब इसी परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए रोहित शेट्टी ‘पंजाब एक्सप्रेस’ के माध्यम से एक्शन, कॉमेडी और रोमांस का तड़का लेकर आने वाले हैं। फिल्मों से रेल का रिश्ता अटूट है और यह बना भी रहना चाहिए। पर, न तो कभी फिल्मों में रेल पटरी से उतरे और न रियल में। क्योंकि, ये दर्द बेहद दुखदायी होता है।

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