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सामाजिक विसंगतियां बेनकाब करती कहानियां

06:44 AM Mar 24, 2024 IST
पुस्तक : धीमी वाली फास्ट पैसेेंजर लेखक : मार्क टली अनुवादक : प्रभात सिंह प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 264 मूल्य : रु. 299.

जयभगवान शर्मा ‘हरित’

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सन‍् उन्नीस सौ पैंतीस को कलकत्ता में जन्मे तीस वर्षों तक निरन्तर बीबीसी में संवाददाता के तौर पर सेवा देने वाले, भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ व ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित तथा भारतीय राजनीति और समाज को करीब से देखने वाले प्रख्यात पत्रकार मार्क टली का लेखन लोगांे को शिद्दत के साथ अपनी ओर खींचता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण परिवेश को यथार्थतः रेखांकित करता उनका कहानी संग्रह ‘धीमी वाली फास्ट पैसेंजर’ सद्यः प्रकाशित हुआ है जिसमंे सात कहानियां संगृहीत हैं। कहानी कला की कसौटी पर खरी उतरने वाली ये कहानियां वस्तुतः बेहद मार्मिक बन पड़ी हैं। इनमें जीवन के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पक्ष गुम्फित हैं। कहानियाें में राजनीतिक घटनाआें का सटीक और प्रासंगिक योग करना कहानीकार का अन्यतम गुण है।
जातिवाद, पितृसत्तात्मकता, माफियागीरी, भ्रष्टाचार आदि मुद्दाें को इन कहानियों में जिस बेबाकी से उठाया हैै वह देखते ही बनता है। मार्क टली ने प्रकृत संग्रह की भूमिका में स्वयं कहा है- ‘मेरी इन कहानियों में नायक और नायिकाएं सभी खास हैं, जिन्हांेने अपने दौर की प्रचलित कुप्रथाओं, भ्रष्टाचार और सामाजिक असमानताओं के खिलाफ अपने स्तर पर सामर्थ्य-भर मुकाबला किया है।’
कहानी ‘किस्सा एक भिक्षु का’ में भिक्षु बन गए रामभरोसे तथा ‘कहानी टीले वाले मन्दिर की’ में दलित बुधराम दोनांे ही नायक जहां जातिगत पारम्परिक उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष करते हैं, वहीं ‘हलवाहे का संताप’ के नायक तीरथपाल की हिम्मती पत्नी राधा पितृसत्ता को ललकार कर चुनौती देती है। संतनगर जाने वाली धीमी वाली फास्ट पैसेंजर को बन्द किए जाने से बचाने वाली अरुणा जोशी भी ऐसी जीवट की धनी महिला है जिसने सत्ता पर काबिज धन-लुब्धक सांसद संजय सिंह राय के कुत्सित मंसूबों को धता बताते हुए उन पर पूरी तरह पाटा फेर दिया।
कहानी ‘एक गांधीवादी की प्रेम कथा’ में सरकारी शिक्षकाें की अच्छी छवि का न होना जहां नकारात्मक पहलू है वहीं पंडित मदन मोहन तिवारी एक आदर्श शिक्षक भी हैं जो युवा अजित की प्रतिभा पहचानते हैं और जीवन मंे आगे बढ़ने मंे उसकी मदद करते हैं। ‘मिलनपुर में कत्ल’ के नायक थानेदार प्रेम लाल कर्तव्यपरायण हैं और भ्रष्टाचार का जमकर विरोध करते हैं जो पुलिसिया व्यवहार के अपवाद कहे जा सकते हैं। ‘खानदानी धंधा’ कहानी में कहानी के नायक सुरेश इंग्लैंड रिटर्न हैं जो अपने खानदानी धंधे के अनुरूप राजनीति के सांचे में फिट नहीं बैठते और काफी संघर्षांे के बाद अन्ततः राजनीति से विमुख हो जाते हैं।
सभी कहानियां प्रभावोत्पादक हैं तथा इनकी भाषा परिष्कृत, लालित्यपूर्ण और प्रवाहमयी है।

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