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स्वार्थ की दुर्गंध

06:47 AM Oct 31, 2023 IST

दो छोटी-छोटी पोखरी थीं। इसका पानी उसमें और उसका पानी इसमें होता रहता था। कोई प्रयोग नहीं करता था। पानी में काई, कीड़े पड़ गए थे। उनका दुःख सुनकर प्रभु ने कहा, ‘पूर्व जन्म में ये सगी बहनें थीं और देवरानी-जेठानी भी। वे दोनों ही स्वार्थिनी थीं। कोई दान-पुण्य परमार्थ के लिए कहे तो बड़ी बहन छोटी बहन को दान का सबसे श्रेष्ठ पात्र कहकर उसे दे आती थी। दोनों की स्वार्थ भावना, अपने ही अधिकार क्षेत्र में रखने के ताने-बाने बुनती रहती थीं। वही प्रवृत्ति अभी भी उनके साथ लगी है। पानी उनकी स्वार्थ भावना जैसा ही दुर्गंध युक्त हो गया है। एक-दूसरे की सीमा में ही चक्कर काटता रहता है। स्वार्थ के ऐसे ही परिणाम निकलते हैं। ऐसे ही स्वार्थी व्यक्ति भी किसी के लिए न उपयोगी बन पाते हैं और न जीवन में अच्छे अवसर मिलते हैं।’

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प्रस्तुति : मुकेश ऋषि

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