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फौलादी इरादे-पैर से सोने का संधान

01:01 PM Sep 03, 2021 IST
फौलादी इरादे पैर से सोने का संधान
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उस व्यक्ति के सपनों के संघर्ष का अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है, जिसने अल्पायु में पिता को खो दिया और फिर किशोरावस्था में हुई दुर्घटना में अपना एक पांव गंवा दिया हो। कभी उसकी इच्छा देश के लिये कुश्ती में ओलंपिक पदक लाने की थी। जब एक पांव गंवाना पड़ा तो यह सपना भी अधूरा रह गया। फिर कुश्ती के लिये पदक जीतने का सपना टूट जाने पर उसने नई खेल विधा में अपना भविष्य संवारने का संकल्प लिया। उसने संकल्प लिया कि वह पैरा खेलों में अपनी ऊर्जा लगाएगा। फिर दृढ़ निश्चय और मेहनत से उसने जीवन का संकल्प पूरा किया। सुमित आंतिल के संकल्प की यह कहानी इस बार के टोक्यो पैरालंपिक में तब हकीकत बनी जब उसने कई रिकॉर्ड बनाते हुए भाला फेंक में देश की झोली में सोने का पदक डाल दिया।

निस्संदेह, एक पैरा ओलंपिक खिलाड़ी का संघर्ष एक सामान्य खिलाड़ी से कई गुना ज्यादा होता है। एक तो उसे शारीरिक अपूर्णता के खिलाफ संघर्ष करना होता है, दूसरे शरीर के अनुरूप खेल सुविधाएं न होने का दंश भी झेलना पड़ता है। विडंबना यह है कि हम पैरा खिलाड़ियों की उपलब्धियों को तरजीह नहीं देते। जबकि वे भी पैरा स्पर्धाओं में उसी विश्व स्तर की प्रतियोगिता का सामना करते हैं। हमें इस सवाल पर आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या हम ओलंपिक में भाला स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा के जैसा ही सम्मान पैरालंपिक में भाला स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले सुमित आंतिल को देंगे? जबकि दोनों ही खिलाड़ी विश्व स्तर के मुकाबले का सामना करते हैं। दोनों ही देश की यश-कीर्ति की पताका फहराते हैं।

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बहरहाल, पैरालंपिक 2020 में सुमित ने नया इतिहास रच दिया। उन्होंने दो विश्व रिकॉर्ड बनाकर स्वर्ण पदक जीता है। सोनीपत, हरियाणा के सुमित ने पुरुषों की एफ-64 स्पर्धा में अपना ही विश्व रिकॉर्ड तोड़ते हुए यह कामयाबी हासिल की। इस 23 वर्षीय खिलाड़ी ने अपने पांचवें प्रयास में 68.55 मीटर भाला फेंककर विश्व रिकॉर्ड बनाया।

दरअसल, जब सुमित बारहवीं कक्षा में था तब एक सड़क हादसे में उसकी बाइक दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। डॉक्टरों को उनकी जान बचाने के लिये उनके बायें पैर के घुटने के नीचे के हिस्से को काटना पड़ा। वे अब कृत्रिम पैर लगाकर खेलते हैं। इस हादसे के बाद उनके ही गांव के एक पैरा एथलीट ने वर्ष 2018 में उन्हें इस खेल के बारे में बताया था। सुमित नीरज चोपड़ा को अपना आदर्श मानते रहे हैं। इस साल मार्च में जब पटियाला में इंडियन ग्रां पी सीरिज आयोजित की गई तो वे नीरज चोपड़ा के खिलाफ खेले थे और 66.43 के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के साथ सातवें स्थान पर रहे थे। वर्ष 2019 में दुबई में आयोजित विश्व चैंपियनशिप में एफ-64 स्पर्धा में रजत पदक जीतने में कामयाब रहे थे, जिसके चलते उनका टोक्यो पैरालंपिक के लिये टिकट पक्का हो पाया। टोक्यो पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले सुमित कहते हैं कि उन्होंने अभी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं किया है। अभी 23 साल के सुमित का बहुत खेल बाकी है और निश्चित रूप से वे देश की उम्मीदों के प्रतीक हैं। सुमित कहते भी हैं कि यह मेरा पहला पैरालंपिक था, इस वजह से मैं कुछ नर्वस था। मेरी सोच थी कि मेरा थ्रो कम से कम 70 मीटर तक जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। विश्व रिकॉर्ड बनाकर भी मैं संतुष्ट नहीं हूं।

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कभी सुमित पहलवानी में अपनी किस्मत आजमाना चाहते थे। वे कहते हैं- ‘मेरे इलाके के परिवार हर किसी को पहलवानी में उतरने के लिये मजबूर करते थे। मैंने सात साल की उम्र में कुश्ती के दांवपेच आजमाने शुरू कर दिये थे।’ वे पांच साल तक कुश्ती खेलते रहे। लेकिन दुर्घटना ने उनकी कुश्ती भी छीन ली। सुमित मानते हैं कि वे इतने अच्छे पहलवान नहीं थे। इस हादसे ने उनकी जिंदगी बदल दी। जब वे स्टेडियम में पैरा एथलीटों को देखने गये तो उन्हें सलाह दी गई कि उनका शरीर सौष्ठव अच्छा है, तुम पैरालंपिक में अपनी किस्मत आजमा सकते हो। आज जब सुमित का सपना पूरा हुआ है तो वह बेहद खुश है। दरअसल, अर्जुन अवार्डी कोच नवल सिंह के कहने पर सुमित ने जैवलिन थ्रो खेलना आरंभ किया था। पहले-पहल एशिया चैंपियनशिप में वह बहुत कुछ न कर सके, लेकिन 2019 की विश्व चैंपियनशिप ने उनकी किस्मत बदल दी।

सोनीपत के खेवड़ा गांव का सुमित आज पूरी दुनिया में अपनी कामयाबी की धूम मचा रहा है। इस सफलता से वह उस दर्द को भूल गया जो उसने महीनों अस्पताल में बिताने पर महसूस किया था। इसके बाद वर्ष 2016 में पुणे में कृत्रिम पैर लगा तो उसका विश्वास बढ़ा। शुरुआत में कोच वीरेंद्र धनखड़ ने उनका मनोबल बढ़ाया और दिल्ली के साई सेंटर लेकर पहुंचे।

इस बार के ओलंपिक में भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा को आंतिल अपनी प्रेरणा मानते हैं। जब नीरज ने गोल्ड जीता तो सुमित को लगा कि मैं भी गोल्ड जीत सकता हूं। सुमित को इस बात का मलाल रहा कि वह नीरज की तरह भारतीय सेना में नहीं जा सके। लेकिन नीरज के पदक जीतने से मुझे मानसिक ताकत मिली। वे बताते हैं कि ट्रेनिंग के दौरान नीरज ने कहा था कि आपके अंदर पावर काफी है, बस आपको भाला फेंकने की तकनीक पर ध्यान देना है। फिर मैंने कोच नवल सिंह व वीरेंद्र धनखड़ की देखरेख में तकनीक पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया। फिर अच्छी तैयारी से मैं सोने का पदक ला सका। ये पदक नीरज चोपड़ा और मेरे कोचों को समर्पित है।

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