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राज्यों को खदानों पर कर लगाने का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट

07:14 AM Jul 26, 2024 IST
राज्यों को खदानों पर कर लगाने का अधिकार   सुप्रीम कोर्ट
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नयी दिल्ली, 25 जुलाई (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि खनिजों पर देय रॉयल्टी कोई कर नहीं है और संविधान के तहत राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है। इस फैसले से झारखंड और ओडिशा जैसे खनिज समृद्ध राज्यों को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से केंद्र द्वारा खदानों और खनिजों पर अब तक लगाए गए हजारों करोड़ रुपये के करों की वसूली पर फैसला करने का आग्रह किया था।
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्यों की दलीलों का कड़ा विरोध किया। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र और राज्यों से इस पहलू पर लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा और कहा कि वह 31 जुलाई को फैसला करेगी। सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि खनिजों पर देय ‘रॉयल्टी’ कर नहीं है। पीठ ने इन विवादास्पद मुद्दे पर फैसला सुनाया कि क्या खनिजों पर देय ‘रॉयल्टी’ खान तथा खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 के तहत कर है। क्या केवल केंद्र को ही ऐसा कर लेने का अधिकार है या राज्यों को भी अपने क्षेत्र में खनिज युक्त भूमि पर कर लेने का अधिकार है।
जस्टिस नागरत्ना की असहमति
शुरू में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पीठ ने दो अलग-अलग फैसले दिए हैं और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने असहमतिपूर्ण फैसला दिया है। जस्टिस नागरत्ना ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि राज्यों के पास खदानों तथा खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार नहीं है। नौ न्यायाधीशों की पीठ ने इस जटिल मामले की सुनवाई 27 फरवरी को शुरू की थी, क्योंकि इस मुद्दे पर संविधान पीठ के दो विरोधाभासी फैसले थे। पीठ में सीजेआई और जस्टिस नागरत्ना के अलावा जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस उज्ज्ल भुइयां, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह हैं।
वर्ष 1989 में संविधान पीठ का फैसला सही नहीं
बहुमत के फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि वर्ष 1989 में सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिया गया वह फैसला सही नहीं है जिसमें कहा गया था कि खनिजों पर ‘रॉयल्टी’ कर के रूप में है। रॉयल्टी वह भुगतान है जो उपयोगकर्ता पक्ष बौद्धिक संपदा या अचल संपत्ति परिसंपत्ति के मालिक को देता है। प्रविष्टि 49 के अंतर्गत, राज्यों को भूमि और भवनों पर कर लगाने का अधिकार है, जबकि प्रविष्टि 50 राज्यों को खनिज विकास पर कर लगाने की अनुमति देता है, लेकिन यह खनिज विकास से संबंधित संसद द्वारा कानून के तहत लगाई गई किसी भी सीमा के अधीन है।

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