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एससी, एसटी में उप वर्ग बना सकते हैं राज्य : सुप्रीम कोर्ट

07:56 AM Aug 02, 2024 IST
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नयी दिल्ली, 1 अगस्त (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से दिए एक फैसले में बृहस्पतिवार को कहा कि राज्यों के पास अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए निर्धारित आरक्षण में उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है।
भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से व्यवस्था दी कि राज्यों को उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर और अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाए। पीठ में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र मिश्रा शामिल थे। इस विवादास्पद मुद्दे पर कुल 565 पृष्ठों के छह फैसले लिखे गये। पीठ 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें से मुख्य याचिका पंजाब सरकार ने दायर की है जिसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 2010 के फैसले को चुनौती दी गयी है।

क्रीमी लेयर की हो पहचान : जस्टिस गवई

जस्टिस गवई ने एक अलग फैसले में कहा कि राज्यों को एससी और एसटी में 'क्रीमी लेयर' की पहचान करनी चाहिए तथा उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए।

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जस्टिस त्रिवेदी ने जताई असहमति, दिये ये तर्क

जस्टिस त्रिवेदी ने अपने 85 पन्नों के असमति वाले फैसले में कहा कि राज्य संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जाति सूची के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि राज्यों की सकारात्मक कार्यवाही संविधान के दायरे के भीतर होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आरक्षण प्रदान करने के राज्य के नेक इरादों से उठाए कदम को भी अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करके सुप्रीम कोर्ट द्वारा उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

2004 का अपना ही फैसला पलटा

ईवी चिन्नैया मामले में पांच सदस्यीय पीठ के 2004 के फैसले को पलटते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि एससी और एसटी समुदाय के सदस्य व्यवस्थागत भेदभाव के कारण अक्सर आगे नहीं बढ़ पाते हैं। शीर्ष अदालत ने 2004 में फैसला सुनाया था कि सदियों से बहिष्कार, भेदभाव और अपमान झेलने वाले एससी समुदाय सजातीय वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनका उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत 'ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य' मामले में 2004 के पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले पर फिर से विचार करने के संदर्भ में सुनवाई कर रही है, जिसमें यह कहा गया था कि एससी और एसटी सजातीय समूह हैं।

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