वसंत : तीन शब्द-चित्र
07:55 AM Mar 17, 2024 IST
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प्रकाश मनु
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एक
धूप की किताब
सुबह से
धरे हथेली गाल पर
पढ़ रही है अमराई धूप की किताब
चुपके से आ हवा
किताब के सुनहरे पन्नों को
बिखराकर शरारत से
खिलखिला दी
खिलखिलाती रही यूं ही
शाम तलक!
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दो
खिड़की से झांकता गुलाब
इतनी कशिश है रुत के लबों पर
इतनी डूबी-डूबी है शाम
कि बदला-बदला सा लगता
सारा जहान
कल तक कितना शर्मसार था
खिड़की से झांकता यह पीला गुलाब
आज गुजरा पास से तो
देखकर कनखियों से
हौले से मुस्कराया—
आदाब!
तीन
केसरिया खत वसंत का
खुले-खुले
ताजे धुले बिखेरे केश कांधे पर
पास आ बैठ गई अमराई
सम्मोहन की भाषा में
नम रेत पर लिख डाले
खुशबू के शिलालेख
जिनमें कहीं एक
केसरिया खत था वसंत का
मेरे नाम!
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