For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

समरसता संवर्धन का आध्यात्मिक नृत्य

06:54 AM Aug 02, 2024 IST
समरसता संवर्धन का आध्यात्मिक नृत्य
Advertisement

नरेंद्र शर्मा
थेय्यम, उत्तरी केरल की सबसे प्राचीन और मनमोहक आनुष्ठानिक ‘नृत्य कला’ है। इस कला में नृत्य, प्रहसन और संगीत के जरिये अपने पूर्वजों की महान गाथाओं को जीवंत रूप से याद किया जाता है, इसे कलियाट्टम भी कहते हैं। यह नृत्य कला उन प्राचीन कबीलों की मान्यताओं पर प्रकाश डालती है, जिन्होंने नायकों और पूर्वजों की आत्माओं के पूजन पर बल दिया है। ये कलाकार, जिन्हें थेय्यम कलाकार के रूप में जाना जाता है। इस अवसर पर देवताओं, आत्माओं या पैतृक नायकों का वेश धारण करते हुए, विस्तृत अनुष्ठानों और परिवर्तनों से गुजरते हैं। इनकी जटिल वेशभूषा, ज्वलंत शृंगार और उन्मादी नृत्य इन्हें दिव्यता का अवतार बना देता है।
केरल के अलावा कर्नाटक के कुछ हिस्सों में भी यह कला सम्पन्न होती है। इस कला में आदिवासी संस्कृतियों के सभी मूल तत्व मौजूद होते हैं। यह नाट्îशास्त्र की लास्य शैली पर आधारित है इसमें द्रुतगति का सहारा नहीं लिया जाता। इसे बेहद सौम्य तरीके से किया जाता है। इस नृत्य में सफ़ेद कपड़े पहने जाते हैं, इसे एक निश्चित क्रम में किया जाता है, शुरुआत मंगलाचरण से होती है और फिर जातिस्वरम, वर्णम, श्लोकम‌् शब्दम, पदम, और अंत में तिल्लाना क्रमबद्ध रूप से प्रदर्शित किया जाता है। थेय्यम की शिक्षा ‘गुरुकुल मॉडल’ में दी जाती है। प्रख्यात नर्तक अपने बेटों, भतीजों, या रिश्तेदारों को यह कला सिखाते हैं। जब वे इसे सीख जाते हैं, तो वे मेकअप मैन या ढोल बजाने वालों के रूप में भी सहायता करते हैं।
थेय्यम नृत्य दरअसल एक असाधारण पूजा है। थेय्यम शब्द वास्तव में दैवम शब्द का ही रूप है। यह नृत्य कला सदियों पुरानी है। इसे सबसे सुंदर एशियाई अनुष्ठान नृत्य कला भी माना जाता है। इसमें सुई की सटीकता के साथ, चेहरे की पेंटिंग कला की, तांडव नृत्य के साथ जुगलबंदी की जाती है। विविध वाद्ययंत्रों की मधुरता में कलाकारों के मंत्रमुग्ध करने वाले प्रदर्शन बिलकुल जादुई लगते हैं। थेय्यम को कालियाट्टम, थेयमकेट्टु या थिरायडियानथिरम के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान समय में कासरगौड, कन्नूर, वायनाड और कोझिकोड जिलों में यह कला अपने भरपूर रूप में देखने को मिलती है। इसी कला को कर्नाटक के पड़ोसी क्षेत्र में ‘भूटा कोला’ नाम से जानते हैं, जो ऐतिहासिक रूप से तुलुनाडु क्षेत्र तक विस्तारित है। एक हजार साल से भी ज्यादा पुरानी थेय्यम नृत्य कला इन क्षेत्रों की सांस्कृतिक विरासत में एक प्रमुख स्थान रखती है। यह कला ग्रामीण समुदायों के सामाजिक-आर्थिक और धार्मिक ताने-बाने के साथ गहराई से जुड़ी हुई है।
आदिवासी समुदायों में मुख्य रूप से प्रचलित थेय्यम मनोरंजन से आगे बढ़कर आध्यात्मिक अभिव्यक्ति और सामुदायिक एकता का माध्यम भी है। इसमें कुछ में मलयार समुदाय सम्मिलित हैं, जिनकी जीवनशैली वानिकी पर केंद्रित रही है। मलयार उत्तर में कासरगोड से दक्षिण में वडकारा तक रहते हैं। दूसरे, कन्नूर और कासरगोड जिलों के पहाड़ी इलाकों के माविलनगर समुदाय हैं, जो पारंपरिक नृत्य के अलावा टोकरी बुनने का काम करते हैं।
कासरगोड में कोप्पलार समुदाय अपनी थुलुनाड संस्कृति को बरकरार रखता है और थुलु भाषा में ‘नालकेडयार’ के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ नृत्य है। सुपारी के ताड़ से बने उत्पादों का उपयोग थेय्यम के परिधानों और आभूषणों में किया जाता है, जिसे यह समुदाय तैयार करता है। माना जाता है कि कलनाडिकल एक मातृसत्तात्मक आदिवासी समाज है, जो वायनाड की पहाड़ियों में आकर बस गया। इसके अलावा थेय्यम ग्रामीण समाज के लोकाचार और मूल्यों के बारे में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। यह इन कृषि समुदायों से प्रचलित गहरी जड़ें जमाए दर्शाता है। थेय्यम का अध्ययन करके, ग्रामीण केरल में प्रचलित जातिगत गतिशीलता, लिंग भूमिकाओं और मनुष्यों एवं प्रकृति के बीच सहजीवी संबंधों की जटिलताओं को उजागर किया जा सकता है।
थेय्यम प्रदर्शन के संरचनात्मक घटकों में इसकी समृद्ध सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के अभिन्न अंग शामिल हैं, जो सामूहिक रूप से अनुष्ठानिक नृत्य से गहन और आकर्षक अनुभव में योगदान करते हैं तथा सांस्कृतिक समृद्धि और आध्यात्मिक महत्व को प्रदर्शित करते हैं। इस नृत्य कला के शुरुआती चरण को वेल्लट्टम या थोट्टम के रूप में जाना जाता है। इसमें कलाकार एक साधारण और मामूली लाल हेडड्रेस में ढोल बजाने वालों के साथ मंदिर या थेय्यम के देवता की मिथक कथा को पढ़ते हैं। इस चरण में मंच तैयार किया जाता है, जो बाद के चरणों में होने वाले विस्तृत परिवर्तन और इमर्सिव कहानी कहने के लिए आधार बनता है। इस नृत्य कला का प्रदर्शन कावु या पवित्र उपवन या वन क्षेत्र में किया जाता है। परंपरा में निहित, ये प्राकृतिक अभयारण्य जैव विविधता के महत्वपूर्ण भंडार के रूप में कार्य करते हैं, स्थानिक वनस्पतियों और जीवों को संरक्षित करते हैं और सांस्कृतिक रूप से, ये ऐसे अभयारण्य हैं जो सांप्रदायिक सामंजस्य और भूमि से आध्यात्मिक संबंधों को बढ़ावा देते हैं। इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

Advertisement

Advertisement
Advertisement