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छलकें कुछ अमृत बूंदें तो कम हो विष

06:21 AM Nov 18, 2023 IST
छलकें कुछ अमृत बूंदें तो कम हो विष
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सहीराम

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विष सिर्फ विषधरों के पास ही नहीं होता। इधर तो वह हवा में भी होता है। लोग कह रहे हैं कि हवा ज़हरीली हो गयी। सांस घुट रहा है। दिवाली आयी नहीं कि हवा के ज़हरीली होने की बातें होने लगती हैं। विष फिर पानी में भी होता है। जमीन से निकलने वाला अमृत ज़हर हो गया है। उस पानी में पानी के अलावा सब कुछ है। यूरिया से लेकर ज़हरीली दवाओं और फैक्टरियों के कैमिकल तक सब। सो किसी की हड्डियां गल रही हैं और कोई कैंसर से पीड़ित है। विष दूध में भी है, वह सब्जियों में भी है, वह मिठाइयों में होता है। यह कहना मुश्किल है कि हमने दिवाली की मिठाई खायी या ज़हर खाया। बोले तो विष कहां नहीं है।
अरे इन चीजों को छोड़ो भैया इंसान तक में ज़हर भरा है। पहले इंसानों में आपसी प्यार होता था, मोहब्बत होती थी, इंसानियत होती थी, भाईचारा होता था। लेकिन अब तो विष ही विष है। सोशल मीडिया के ट्रोलों को पता ही नहीं कि अमृत क्या होता है। वह उनकी जुबान में होता है, वह उनके सामाजिक व्यवहार में होता है, वह उनकी राजनीति में होता है, यहां तक कि व्यक्तिगत संबंधों में भी होता है। तो विष कहां नहीं होता। जिधर देखो उधर विष है।
लेकिन बदनाम बेचारे विषधर ही हैं। कहते हैं कि समंदर मंथन में भी अमृत तो निकला ही था, विष भी निकला था। महादेव ने विषपान कर तब तो दुनिया को विषमुक्त कर दिया था। लेकिन जब सब तरफ विष ही विष हो तो वे भी क्या करें। वैसे अपने यहां इधर अमृतकाल चल रहा हैै। होना तो यह चाहिए था कि देवताओं को जो अमृत मिला था, इस अमृतकाल में उसकी कुछ बूंदें इधर भी टपक जाती। लेकिन दिखाई तो हर तरफ विष ही दे रहा है। विष का विस्तार है, विष की बारिश है। धरती में विष, आकाश में विष, दिग्दिगंत तक विष ही विष है। पहले लोग आस्तीन में सांप पालकर फ्री हो जाते थे कि अब यह अपना काम करता रहेगा। इसके अलावा लोग सांपों को दूध भी पिलाते रहते थे कि शायद विषधरों का विष कुछ कम हो जाए। पर विष है कि पाप की तरह उसका भी घड़ा भरा ही जा रहा है। नहीं जी नहीं, बेचारे विषधरों की क्या मजाल।
जमाना ऐसा आया है कि बेचारे विषधर अपना विष भी अपने पास नहीं रख सकते। जैसे इंसान की कमाई लुटती है, वैसे ही विषधर का विष लुट रहा है। इंसान जब लूटने पर आता है तो वह किसी को नहीं छोड़ता। जब धरती आकाश को ही नहीं छोड़ता तो विषधरों को क्या छोड़ेगा। तो अब विष एक धंधा है। नहीं जी, हम राजनीति की बात नहीं कर रहे। वहां भी होगा। पर यहां तो रेव पार्टियों में उसका धंधा हो रहा है। धन्यवाद दो एलविषों को!

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