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उमर बिता ‘परदेस’,

06:46 AM Jan 21, 2024 IST

डॉ. राधेश्याम शुक्ल
सदाशिव, जन्मभूमि आये।
सबसे मिले,
मगर उनसे कोई भी नहीं मिला;
रात उनींदी—
‘अनदेखी’ से करती रही गिला।
जल-जल बुझती ‘चिलम’,
रात भर फिर-फिर सुलगाये।

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दिन भर; पहचानों की पोथी,
उलट-पलट पढ़ते;
ऊब गये,
रिश्तों की मनचाही मूरत गढ़ते।
‘ठंडी राख’ कुरेदी—
‘चिनगी’ एक नहीं पाये।

नाम आदमी के,
संवेदनहीन मिले चेहरे;
ऊंट चुराते मिले
‘भद्रजन’ भी निहुरे-निहुरे।
तरसी बूढ़ी उमर,
कि, कोई बोले-बतियाये।
महुबा, आम, नीम, बंसवारी
खोजे नहीं मिले;
पुरखों के आशीष ढूंढ़ते
पग-पग पांव छिले।
इसको कभी, कभी उसको,
सुधियों ने गुहराये।
उमर बिता ‘परदेस’
सदाशिव जन्मभूमि आये।

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