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फाल्गुन में चंद्रोपासना का विशिष्ट महात्म्य

10:43 AM Mar 11, 2024 IST

चेतनादित्य आलोक
हिन्दू संस्कृति में प्रत्येक महीने की अपनी अलग विशेषता होती है और प्रायः प्रत्येक (हिंदी का) महीना किसी न किसी देवी-देवता की विशेष पूजा-अर्चना के लिए विख्यात होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हिन्दू संस्कृति में कई महीने ऐसे हैं, जो किसी-न-किसी पर्व-त्योहार अथवा देवी-देवता को समर्पित हैं। गौर करें तो हाल ही में बीते पौष महीने को सनातन धर्म में सूर्योपासना के लिए एक विशिष्ट महीना माना जाता है, जबकि फाल्गुन के महीने को हमारे शास्त्रों में चंद्रोपासना के लिए उŸत्तम अवसर बताया गया है। वहीं, माघ के महीने में पवित्र नदियों में स्नान करने का बहुत बड़ा महत्व है। पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में इसका वर्णन मिलता है। बता दें कि हिंदू पंचांग में महीनों का नामकरण नक्षत्रों के आधार पर किया गया है, जो पूर्णतः वैज्ञानिक विधान है।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी नक्षत्र के आधार पर उस महीने का नाम हिंदू पंचांग में रखा गया है, यथा फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा के ‘फाल्गुनी’ नक्षत्र में रहने के कारण इस महीने को ‘फाल्गुन’ का महीना कहा जाता है। वैसे ही जैसे कि पौष महीने की पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा के ‘पुष्य’ नक्षत्र में रहने के कारण इस महीने को ‘पौष’ का और माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा के ‘मघा’ नक्षत्र में रहने के कारण इस महीने को ‘माघ’ महीना कहा जाता है।
बहरहाल, फाल्गुन महीना चंद्रदेव की आराधना के लिए सबसे सही और उपयुक्त समय होता है, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार इसी महीने में चंद्रदेव का जन्म हुआ था। हिन्दू धर्म में चंद्रदेव देवता माने जाते हैं और चंद्रदेव के देवता भगवान शिव हैं, जो उन्हें अपने सिर पर धारण करते हैं। इसलिए इस पूरे महीने में चंद्रदेव के साथ-साथ, भोलेनाथ एवं भगवान श्रीकृष्ण की उपासना विशेष फलदायी होती है। फाल्गुन हिन्दू पंचांग का अंतिम महीना होता है, क्योंकि इसके बाद चैत्र में हिन्दू नववर्ष का आरंभ होता है। वैसे तो चंद्रमा को सुख-शांति का कारक माना जाता है, लेकिन यही चंद्रदेव यदि उग्र रूप धारण कर लें, तो अत्यंत प्रलयंकारी साबित होते हैं।
तंत्र ज्योतिष में तो कहा जाता है कि चंद्रदेव का पृथ्वी से मां-बेटे जैसा संबंध है। जिस प्रकार, बच्चे को देख कर मां के दिल में हलचल होने लगती है, वैसे ही चंद्रमा को देख कर पृथ्वी पर हलचल होने लगती है। एक ओर जहां चंद्रमा की सुंदरता से मुग्ध होकर कविगण रसीली कविताओं और गीतों का सृजन करते हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय तंत्र शास्त्र में चंद्रमा को शक्तियां अर्जित करने का समय माना जाता है।
आकाश में पूर्ण चांद के निकलते ही तांत्रिकगण सिद्धियां प्राप्त करने में जुट जाते हैं। हालांकि चंद्रमा का मानव जीवन में प्राकृतिक तौर पर बहुत सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है, जिसे साधारण रूप से नहीं आंका जा सकता, लेकिन कई बार ये प्रभाव बहुत व्यापक भी हो जाता है, जिसके कई कारण हो सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा का आकर्षण पृथ्वी पर भूकंप, समुद्री आंधियां, तूफानी हवाएं, अति वर्षा, भूस्खलन आदि लाता हैं। रात को चमकता पूरा चांद मानव सहित अन्य सभी जीव-जंतुओं पर भी गहरा प्रभाव डालता है। शास्त्रों में वर्णित है कि चंद्रमा मन का कारक होता है साथ ही इसे दिल का स्वामी भी बताया गया है।
चांदी की तरह चमकती रात चंद्रमा का विस्तार राज्य है। इसका कार्य सोने-चांदी का खजाना व शिक्षा और समृद्धि व्यापार है। चंद्रमा के घर शत्रु ग्रह भी बैठे तो अपने फल खराब नहीं करता। प्रकृति की हलचल में चंद्रमा के प्रभाव विशेष होते हैं। मनुष्य के मन और समुद्र में उठने वाली हिलोरों यानी लहरों का निर्धारण चंद्रमा से ही होता है। माता और चंद्रमा का संबंध भी गहरा होता है। मूत्र संबंधी रोग, दिमागी खराबी, हाईपर टेंशन, हार्ट अटैक ये सभी चंद्रमा से संबंधित रोग है। लाल किताब कहती है कि चंद्रमा शुभ ग्रह है। यह शीतल और सौम्य प्रकृति धारण करता है। ज्योतिष शास्त्र में इसे स्त्री ग्रह के रूप में स्थान दिया गया है। यह वनस्पति, यज्ञ एवं व्रत का स्वामी ग्रह है।
ऐसी मान्यता है कि फरवरी और मार्च के बीच पड़ने वाला फाल्गुन का महीना ऋतु परिवर्तन का समय होता है। इस वजह से इस दौरान सामान्यतः लोगों को कई प्रकार की मानसिक एवं शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है- यथा मन का चंचल अथवा अशांत रहना और पाचन संबंधी समस्याओं का होना आम बात होती हैं। इसलिए इस महीने में चंद्रदेव को जल अर्पित कर यानी अर्घ्य देकर उनकी पूजादि करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि ऐसा करने से मन की चंचलता तो दूर होती ही है, साथ ही, भक्त को चंद्रदेव की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है।
ऋतुओं के इस संधिकाल में जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इनके अतिरिक्त भक्तगण पूजा-पाठ, व्रत-उपवास तथा ध्यान आदि करने की शास्त्रीय परंपरा का निर्वहन भी करते हैं।

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