खास के अहसास
अल्बर्ट आइंस्टाइन एक बार रेल यात्रा के दौरान अचानक से यही भूल गये कि वह कहां से आ रहे हैं और उनको किस जगह जाना है। आइंस्टाइन को गवर्नर से सुविधा मिली थी कि यूरोप में किसी भी जगह जाने के लिए रेल का टिकट नहीं लेना होता था। टिकट चैकर से भी कैसे पूछते। आइंस्टाइन ने अपने सहायक से पूछा तो उसने यह तो बता दिया कि आज सुबह गृहनगर से सीधा आ रहे पर जा कहां रहे हैं यह तो आइंस्टाइन खुद भी उसको नहीं बताते थे। इसलिए उसने अनजान बनकर गर्दन हिला दी। अब बड़ी मुश्किल हुई। आइंस्टाइन ने अपना दिमाग दौड़ाया और रेलगाड़ी में कॉफी, बिस्कुट आदि बेच रहे युवक को काफी प्रेम और सम्मान से अपने करीब ही बिठा लिया। अब आइंस्टाइन उस युवक से हाथ जोड़कर आगे आने वाले स्टेशनों का विवरण पूछने लगे। आखिरकार युवक ने जब एक नाम लिया। यह सुनकर अल्बर्ट आइंस्टाइन खुशी से उछल पड़े। वह युवक उनको उसी खुशी में छोड़कर अगले डिब्बे में चला गया। सहायक को काफी अटपटा-सा लगा। एक युवक से इतनी मान-मनौवल उसकी समझ से बाहर था। सहायक के चेहरे पर सवाल उभरा हुआ था तो वह अपने सहायक से बोले कि किसी से मदद चाहिए तो उसको इतना खास बना दो कि वह खुद को महत्वपूर्ण समझे। उसे महसूस होने लगे कि वह हमारा सहयोग करके एक विशेष काम कर रहा है।
प्रस्तुति : मुग्धा पांडे