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आबादी असंतुलन से उपजे संकट की आहट

06:43 AM Mar 28, 2024 IST
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अखिलेश आर्येंदु

एक दौर था जब दुनिया के तमाम देश बढ़ती आबादी और संसाधनों के बेतहाशा दोहन और कम संसाधनों की वजह से परेशान थे। आज भी तमाम विकासशील देश बढ़ती आबादी से बढ़ रही समस्याओं और संसाधनों की कमी की वजह से परेशान हैं। दूसरी तरफ विकसित देशों में घटती जन्मदर से आर्थिक और सामाजिक ताने बाने पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। वर्ष 2022 के संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक पिछले दस वर्षों में एक करोड़ से ज्यादा आबादी वाले आठ देशों की आबादी कम हो गई है, जिनमें ज्यादातर देश यूरोप के हैं। जापान आबादी में आ रही गिरावट व बुजुर्गों की बढ़ती आबादी से परेशान है। इसका सामाजिक-आर्थिक हालात पर असर पड़ा है।
अंतरराष्ट्रीय जनरल द लेंसेट में 20 मार्च 2024 को प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लड़कियों की आबादी दर घटने के कारण सामाजिक ताने बाने पर असर पड़ रहा है। जीवन शैली में बदलाव की वजह से युवा शादियां विलम्ब से करने लगे हैं, जिसका असर बच्चों के पालन-पोषण, उनकी शिक्षा और सेहत पर पड़ता है। इससे सामाजिक ताना-बाना गड़बड़ा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक साल 1950 तक यानी 74 साल पहले भारत की प्रजनन दर जो 6.2 थी, 2021 साल आते-आते घट कर दो प्रतिशत से भी कम रह गई। अध्ययन व अनुमान के मुताबिक 2050 तक प्रजनन दर घट कर 1.29 और साल 2100 में घटते-घटते 1.04 तक पहुंच सकती है।
गौरतलब है प्रजनन दर 2.1 को रिप्लेसमेंट लेवल कहा जाता है। यानी इस दर पर आबादी स्थिर रहती है और इससे कम होने पर घटने लगती है। युवाओं की आबादी घटने का मतलब वृद्धों की आबादी में वृद्धि। यानी श्रम शक्ति में कमी आना। यह किसी भी देश के लिए एक जोखिम की स्थिति हो सकती है। भारत को भी एक या दो दशक बाद श्रम शक्ति की कमी से समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
विकसित देशों में भी जन्म-मृत्यु दर में असंतुलन पैदा हो गया है। अध्ययन के मुताबिक 2030 तक स्पेन, दक्षिण कोरिया, रूस, सिंगापुर और जर्मनी की आबादी घटनी शुरू हो जाएगी। इसके अलावा भारत, नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार की आबादी की रफ्तार भी थम सकती है। अभी हालत यह है कि कई विकसित देशों में बच्चों की जन्मदर बहुत तेजी से घट रही है। इसमें सिंगापुर और जापान प्रमुख हैं। सिंगापुर में बच्चों की जन्मदर 0.97 प्रतिशत है तो जापान में बच्चों की जन्मदर 0.6 है। कोरिया में प्रजनन दर 0.72 प्रतिशत है।
इस तरह देखें तो जन्मदर उन देशों में सबसे कम है जो विकसित और खुशहाल माने जाते हैं। गौरतलब है जापान ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए युवाओं को इनाम दे रहा है। इसके बावजूद शादी करने वाले युवाओं की संख्या लगातार कम हो रही है। वर्ष 2023 में महज चार लाख युवाओं ने ही शादियां कीं। इसी तरह सिंगापुर में 2023 में 26,500 युवाओं ने ही शादियां कीं। जन्मदर की यह कमी जापान और सिंगापुर की अर्थव्यवस्था पर सीधे असर डाल रही है।
चीन, जो आबादी के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा देश है, की आबादी वर्ष 2100 तक आज के स्तर से आधी यानी 1.4 अरब से घट कर 77.1 करोड़ रह सकती है। लेकिन दुनिया के तमाम अविकसित देशों में आबादी घटने के बजाय लगातार बढ़ रही है। इनमें अफ्रीकी देशों के अलावा मध्यपूर्व के मुस्लिम देश भी शामिल हैं। वहीं जिन देशों में बच्चों की जन्मदर बहुत अधिक है, उन देशों को संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसमें पीने के पानी, खाद्यान्न के अलावा दवाएं व रोजगार की कमी शामिल है।
भारत में पिछले दस सालों में पानी, खाद्यान्न और रोजगार में कमी देखी जा रही है, लेकिन बूढ़े हो रहे लोगों की संख्या बढ़ रही है। वहीं भारत के पड़ोसी देशों से खासकर बंाग्लादेश, म्यांमार से पलायन कर आए शर्णार्थियों की वजह से भी जनसंख्या घनत्व पर असर पड़ा है।
भारत में स्थिर जनसंख्या के लक्ष्य को हासिल करना बहुत बड़ी चुनौती है। बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे तमाम राज्यों में बच्चों की जन्मदर काफी अधिक है। इन राज्यों में जनसंख्या घनत्व दूसरे राज्यों से अधिक है। इसी के साथ भारत में युवाओं की बहुत बड़ी आबादी बेरोजगार है। इसलिए रोजगार की समस्या को प्राथमिकता के तौर पर हल करें।
यूं तो बेरोजगारी की समस्या को हल करने के मद्देनजर सरकारों ने कई कदम उठाए हैं, लेकिन आज भी करोड़ों की तादाद में भारत के युवा बेरोजगार हैं। इसलिए गैर बराबरी की समस्या भारतीय समाज में तेजी से बढ़ी है। भारत एक विकसित देश बने, इसके लिए जरूरी है कि आबादी में संतुलन बनाया जाए।

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