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उच्चारण में सांस्कृतिक अहसासों का आत्मीय स्पर्श

07:05 AM Aug 18, 2023 IST
उच्चारण में सांस्कृतिक अहसासों का आत्मीय स्पर्श
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वेद विलास उनियाल

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केरल को केरलम के नाम से पुकारा जाए, इसका फैसला अब केंद्र सरकार को लेना है। केरल में सीएम पिनराई विजयन के राज्य का नाम केरलम करने के प्रस्ताव को सदस्यों ने पिछले दिनों सर्वसम्मति से पास किया। अब केरल सरकार ने केंद्र से अनुरोध किया है कि वह इस प्रस्ताव को संसद में लाए। यानी गेंद अब केंद्र सरकार के पाले में है।
केरल को केरलम करने की भावना केवल भावनात्मक नहीं। इसके पीछे परंपरा और विरासत का उद्घोष भी है। केरलवासी आज भी केरलम कहने में खुशी का अनुभव करते हैं। इसके पीछे वह एक ध्वनि गूंज का अहसास करते हैं। वार्तालाप में केरलम आने का भाव है कि इसके लिए राज्य में पुकार रही है। राज्य सरकार ने भारत के संविधान की आठवीं सूची में शामिल सभी भाषाओं में राज्य का नाम केरल से केरलम बदलने का आग्रह किया है। संविधान की पहली सूची के तहत राज्य का नाम केरल लिखा गया है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 नए राज्यों के गठन और मौजूदा राज्य के क्षेत्र सीमा और नामों में परिवर्तन का अधिकार देता है।
केरल से केरलम तक आने की लंबी प्रक्रिया कई मोड़ों से गुजरी है। 257 ईसा पूर्व सम्राट अशोक के शिलालेखों में स्थानीय शासकों को केरल पुत्र के तौर पर दिखाया गया है। यह भी कहा जाता है कि केरल शब्द मलयालम में केरा से आया जिसका अर्थ है नारियल का पेड़ और आलम का अर्थ है भूमि। इस तरह अब अगर केरलम शब्द से राज्य सामने आता है तो इसका अर्थ होगा नारियल के पेड़ों वाली भूमि। केरल शब्द को लेकर कई धारणाएं हैं। समुद्र के भूभाग से निकले क्षेत्र को केरल कहा जाता है। कहा यह भी जाता है कि कभी यहां चेरा शासकों का राज्य था। इससे इस क्षेत्र को चेरलम कहा जाता था। इसी से इसका नाम केरल पड़ा है। लेकिन केरल में शब्दों का आत्मीय स्पर्श आम बोलचाल में केरलम शब्दों में ही उतरा। आज देश के बाहर इस राज्य को केरल कहा जाता है लेकिन राज्य में लोगों ने केरलम शब्द में अपनी लय ताल को ज्यादा महसूस किया। गौर करने लायक बात यह भी है कि जहां पश्चिम बंगाल को बांग्ला कहने या उत्तरांचल को उत्तराखंड करने में सियासी बहस हुई वहीं केरलम के प्रयासों के लिए सियासी उलझन नहीं दिखी। पिनराई विजयन की वामपंथी सरकार के लिए कांग्रेस के समर्थन वाले यूडीएफ का समर्थन लेना सहज रहा।
1956 में भाषाई आधार पर केरल राज्य बना था। दरअसल 1920 में राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक में यह प्रस्ताव पास हुआ था कि राज्य सिर्फ क्षेत्रीय नहीं भाषाई आधार पर भी बनना चाहिए। यहीं से केरल शब्द का विचार सामने आया था। इसके साथ ही मलयाली बोलने वालों ने एक्य केरल नाम से आंदोलन किया था। जिसका आधार था एक केरल की स्थापना। इसमें वह त्रावणकोर कोच्चि और मालावार में रहने वाले लोगों के लिए अलग राज्य की मांग कर रहे थे। 1 जुलाई, 49 को त्रावणकोर और कोचीन रियासत को मिलाकर संयुक्त राज्य त्रावणकोर और फिर कोचीन की दो पूर्ववर्त्ती रियासतों को मिलाकर संयुक्त राज्य त्रावणकोर कोचीन राज्य कर दिया। लेकिन वे सभी मलयाली भाषी लोगों के लिए राज्य चाहते थे। इसके लिए उन्होंने लगातार आंदोलन किया। आखिर भाषाई आधार पर एक नवंबर, 1956 को केरल राज्य बना। केरल राज्य को लेकर लोगों में यह धारणा रही कि यह शब्द अंग्रेजी में कहा जाता है। मलयालम और यहां की संस्कृति में उसे केरलम से पुकारा जाना जाता है। माना जा सकता है कि इसमें केंद्र के स्तर पर अनुमति मिलने पर कोई दिक्कत नहीं होगी।
भारत में कई राज्यों के नाम बदले गए। इनमें उत्तरांचल की जगह 2007 में उत्तराखंड किया गया। 2011 में उड़ीसा का नाम ओडिशा किया गया। पश्चिम बंगाल ने भी राज्य का नाम बांग्ला करने की अनुमति मांगी थी। दरअसल राज्यों का नाम केवल भावुकता और प्राचीन परंपरा के आधार पर ही बदले जाने की मांग नहीं उठी है, इसके पीछे कहीं न कहीं सियासत भी रही है। माना गया कि यह नाम सांस्कृतिक विरासत और परंपरा को ज्यादा अभिव्यक्त करता है। पश्चिम बंगाल को बांग्ला करने के पीछे इसके क्षेत्रीय सरोकारों को तरजीह देने की बात थी। लेकिन केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा कि पश्चिम बंगाल के मामले में संविधान में बदलाव करना होगा। इसमें केंद्र और टीएमसी के बीच खासी बहस हुई है।
इसी तरह पहले मध्यप्रदेश को मध्य भारत और तमिलनाडु को मद्रास स्टेट कहा जाता था। इसी तरह उत्तराखंड नाम को बीजेपी सरकार ने उत्तरांचल नाम दिया था। बाद में उसे कांग्रेस सरकार ने उत्तराखंड नाम दिया। उड़ीसा को अब ओडिशा पुकारा जाता है। नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी यानी नेफा का नाम अरुणाचल किया गया।
केरल की अपनी प्राचीन सभ्यता और विविधता है। कथकली की भव्यता ने राज्य को ऊंचाई दी है। कुशल नर्तक मौन रहकर अपनी भाव-भंगिमाओं के साथ कठिन नृत्य को आयाम देते हैं। अपनी नृत्य संगीत वेशभूषा से दैवी रूप देकर कला के जिस स्वरूप को प्रस्तुत करते हैं, उसकी परंपरा तीन सौ साल पुरानी है। ओणम उत्सव में केरल के उत्सवी जीवन की छवि दिखती है। इसी केरल के कालीकट से आकर वास्कोडिगामा ने भारत का समुद्री मार्ग तलाशा था। केरल के कालड़ी से ही निकलकर महान दार्शनिक आध्यात्मिक गुरु आदि शंकराचार्य ने देश में चार धामों की स्थापना की थी। केंद्र ने अगर राज्य के अनुरोध को स्वीकार किया तो संसद से पारित होने और राष्ट्रपति की अनुमति मिलने के बाद अपनी विरासत और संस्कृति को संजोए यह राज्य केरलम पुकारा जाएगा।

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