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बिन मंज़िल सफर के आत्मीय अहसास

06:47 AM Aug 27, 2023 IST

प्रेम चंद विज

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‘सफर बिन मंज़िल’ पंजाबी कवयित्री मनजीत इंदिरा कृत काव्य ग्रंथ है। मनजीत इंदिरा का पंजाबी साहित्य विशेषकर कविता में महत्वपूर्ण स्थान है। यह पुस्तक पंजाबी में ‘तारियां दा छज्ज’ के नाम से प्रकाशित हो चुकी है। इसका हिंदी में अनुवाद रतन सिंह और श्रीमती तेजिंदर खेर ने किया।
‘सफर बिन मंजिल’ 404 पृष्ठों की पुस्तक है। यह पंजाबी के युग कवि प्रो. मोहन सिंह की जीवनी व कृतित्व पर आधारित है। मनजीत इंदिरा जो स्त्री-पुरुष की बराबरी पर लिखती हैं। वह सामाजिक व राजनीतिक शोषण के खिलाफ बात करती हैं।
मनजीत इंदिरा ने प्रो. मोहन सिंह को पढ़ा भी है और उन्हें नजदीक से देखा भी है। उनके साथ बिताए क्षणों व जज्बातों को कविता में प्रस्तुत किया है। ये पल कवयित्री को मूल्यवान, महंगे और कविता जैसे लगे हैं। कुल 40 खंडों में वर्णित पुस्तक में लेखिका ने प्रो. मोहन सिंह के जीवन, शायरी, विचार तथा व्यक्तित्व को बयान किया है। ऐसा महसूस होता है कि पाठक लेखिका के अहसासों में साथ-साथ चल रहा है।
लेखिका ने प्रो. मोहन सिंह के व्यक्तित्व व कृतित्व को करीब से देखा और अध्ययन भी किया है। प्रसिद्ध आलोचक डॉ. इंद्रनाथ ने कहा था कि ‘लेखक का व्यक्तित्व उसके लेखन में अवश्य झलकता है’। ऐसा इस पुस्तक में भी वर्णित है।
प्यार और मोहब्बत प्रो. मोहन सिंह के जीवन का अभिन्न अंग था। ‘परिन्दा और राजकुमारी’ में लेखिका इश्क की बहुत ही उम्दा परिभाषा दे रही हैं। कई बार कोई राही दूसरे राही को/अपना हमराही समझ बैठता है/पर बहुत जल्द जान जाता है/ कि वह मात्र राहगीर है/ उनके रास्ते अलग-अलग हैं/मंजिलें जुदा जुदा/इश्क करना और बात है/इश्क कहना या लिखना और बात/ और यदि यह आग दो तरफा हो/तभी इश्क का दर्जा हासिल करती है।’
प्रो. मोहन सिंह नारी के प्रति बहुत सम्मान रखते थे,  विशेषकर बेटियों से। संस्कारों के अनुसार वे बेटियों का विवाह समय पर कर देना चाहते थे। वे लेखिका को भी यही परामर्श देते थे। मोहन सिंह का विचार था- ‘बेटियां जब बेल की तरह बढ़ती हैं/मां-बाप फिक्रमंद होते ही हैं।’
प्रो. मोहन सिंह का बिछुड़ना उनके लिए असहनीय था। पिता तुल्य महान लेखक का जाना दुखदायक था।  लेखिका के लिए लुधियाना परदेस हो गया। लेखिका ने इस दुख को बहुत ही भावुक ढंग से व्यक्त किया है। ‘लट लट जलता दीया/बुझ गया जैसे मेरे भीतर/ जैसे मेरे पैरों को उन राहों की खबर भूल गई हो/दो पद चिन्ह हमेशा के लिए मिट गए उन राहों से।’
पुस्तक का हिंदी अनुवाद प्रसिद्ध साहित्यकार रतन सिंह और श्रीमती तेजिंदर खेर ने इतना उम्दा किया है कि पुस्तक मूल हिंदी में लिखी प्रतीत होती है।
पुस्तक : सफर बिन मंज़िल लेखिका : मनजीत इंदिरा अनुवाद : रतन सिंह, तेजिंदर खेर प्रकाशक : आथर प्रेस, नयी दिल्ली पृष्ठ : 404 मूल्य : रु.595.

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