चौंकाने वाले नतीजे देने के लिए मशहूर रही सोनीपत लोकसभा सीट
हरेंद्र रापड़िया/हप्र
सोनीपत, 20 अप्रैल
सोनीपत लोकसभा अपने अस्तित्व में आने के बाद से चौंकाने वाले परिणाम देने के लिए जानी जाती है। कई चुनावों में ऐसे परिणाम आये जिसमें उम्मीद के विपरित कद्दावर और नामी नेताओं को हार का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं सोनीपत लोकसभा क्षेत्र के मतदाता एक बार राष्ट्रीय पार्टी के प्रत्याशियों को नकार कर निर्दलीय को चुन कर संसद में भेज चुके हैं।
बता दें कि सोनीपत लोकसभा सीट 1977 में अस्तित्व में आयी थीं। पहली बार 1977 में जनता पार्टी के मुख्यतार सिंह मलिक इस सीट से सांसद चुने गये थे। 1980 में उस समय के दिग्गज नेताओं में शुमार चौ. देवीलाल ने सोनीपत सीट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल कर संसद की दहलीज पर कदम रखा। वर्ष 1984 में एक बार फिर चौ. देवीलाल ने यहां से ताल ठोकी। उनके राजनीतिक कद और पिछली जीत को देखते हुए हार के डर से कोई प्रत्याशी चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। उनके सामने कांग्रेस ने चौ. धर्मपाल मलिक को मैदान में उतार दिया। पहले ही दिन से लग रहा था कि धर्मपाल मलिक चुनाव हार जायेंगे मगर मतगणना के दिन चौंकाने वाले नतीजे आये और चौ. देवीलाल को धर्मपाल मलिक के हाथों हार का सामना करना पड़ा।
चौ. देवीलाल जैसे कद्दावर नेता को हराने के बाद चौ. धर्मपाल मलिक हरियाणा की राजनीति में रातों-रात हीरो बन गये। मगर 1989 के चुनाव में उन्हें जनता दल की टिकट पर हाथ आजमा रहे बिल्कुल नये चेहरे कपिल देव शास्त्री ने बुरी तरह हरा दिया। आलम यह था कि पिछले चुनाव में हैवीवेट नेता चौ. देवीलाल को हराने वाले चौ. धर्मपाल मलिक इस चुनाव में कपिल देव शास्त्री के सामने अपनी जमानत तक नहीं बचा पाये। वह बात अलग है कि 1991 के चुनाव में एक बार फिर चौ. धर्ममाल मलिक बाजी मारते हुए जीतने में कामयाब रहे।
निर्दलीय प्रत्याशी ने बड़ा उल्टफेर करते हुए मारी बाजी
1996 के चुनाव में सोनीपत सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे डॉ. अरविंद शर्मा के धुंआधार प्रचार के चलते उनका चुनाव चल निकला। अरविंद शर्मा ने बड़ा उलटफेर करते हुए समता पार्टी के प्रत्याशी एवं पूर्व मंत्री चौ. रिजक राम को एक लाख 82 हजार मतों से करारी शिकस्त दी। हरियाणा के गठन के बाद यह दूसरा मौका था जब किसी निर्दलीय प्रत्याशी ने लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की।
किशन सिंह सांगवान का चला जादू
1998 में इनेलो ने पूर्व मंत्री किशन सिंह सांगवान को चुनाव मैदान में उतारा। चुनाव में सांगवान ने शानदार जीत दर्ज की। इतना ही नहीं उसके बाद किशन सिंह सांगवान ने 1999 और 2004 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए संसद में प्रवेश किया। सांगवान ने लगातार तीन चुनाव में जीत दर्ज की जो इस सीट पर रिकॉर्ड है। वर्ष 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे जितेंद्र मलिक ने जीत दर्ज की। 2014 में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी पूर्व मंत्री रमेश कौशिक ने बाजी मारी।
रमेश कौशिक को मिली जीत
2019 में भाजपा ने एक बार फिर रमेश कौशिक पर भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दे दिया। इस बार उनके सामने थे कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं दो बार मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा। कांग्रेस की ओर से हुड्डा के नाम की घोषणा होते ही भाजपा के खेमे में खलबली मच गयी। जाटलैंड के नाम से मशहूर रही सोनीपत सीट पर इस बार रमेश कौशिक के समर्थकों को अपने नेता की हार नजर आ रही थीं। आलम यह है कि हुड्डा को टिकट मिलने के बाद अगले कई दिन तक रमेश कौशिक का चुनाव प्रचार भी ढ़ीला सा हो गया था। मगर नरेंद्र मोदी की लहर में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को रमेश कौशिक के हाथों हार का सामना करना पड़ा।
सोनीपत लोकसभा सीट की स्थिति
वर्ष 1977 में पहली बार सोनीपत को लोकसभा क्षेत्र बनाया गया। इसमें सोनीपत के 6, जींद के 2 और झज्जर जिले के एक विधानसभा सीट को शामिल किया गया था। लेकिन 2009 में पुर्नगठन करते हुए बहादुरगढ़ को सोनीपत लोकसभा सीट से निकाल लिया गया। उसके बाद सोनीपत जिला की सोनीपत, राई, खरखौदा, गोहाना, बरोदा व राई विधानसभा सीट तथा जींद जिला की जींद, जुलाना व सफीदों विधानसभा सीट को मिलाकर सोनीपत लोकसभा सीट को बनाया गया। फिलहाल सोनीपत लोकसभा क्षेत्र में सभी 9 विधानसभा सीटों को मिलाकर 17 लाख 43 हजार 532 मतदाता हैं।