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बेहतर प्रबंधन व कौशल विकास में समाधान

07:49 AM Jul 11, 2024 IST
बेहतर प्रबंधन व कौशल विकास में समाधान
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सतीश मेहरा

आज भारत में आबादी का आंकड़ा 143 करोड़ के नजदीक है। यूएनएफपीए की द स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत की जनसंख्या 1,428.6 मिलियन (142.86 करोड़) तक पहुंच गई है, जबकि चीन की 1,425.7 मिलियन (142.57 करोड़) है, जिसका मतलब है हमारी जनसंख्या चीन से 2.9 मिलियन यानी 29 लाख ज्यादा है।
हमारा देश विश्व का सबसे युवा देश भी बना है यानी 35 वर्ष तक की आश्रित युवा आबादी सबसे अधिक 29 प्रतिशत भारत में ही है। यूएनएफपीए की ताजा रिपोर्ट में आकंड़ों के अनुसार भारत में लगभग 68 प्रतिशत जनसंख्या 15 से 64 की उम्र के बीच है जबकि 65 से ऊपर की जनसंख्या सिर्फ 7 प्रतिशत है।
भारत में 25 प्रतिशत जनसंख्या 0-14 आयु वर्ग के बच्चों की है, वहीं 18 प्रतिशत 10-19 साल की आयु के बच्चों की आबादी है। साथ ही 10 से 24 साल के आयु वर्ग की जनसंख्या 26 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र के विश्व जनसंख्या पूर्वानुमान-2022 के अनुसार 2050 तक भारत की जनसंख्या 166.8 करोड़ पहुंच सकती है, वहीं चीन की आबादी घटकर 131.7 करोड़ हो सकती है। भारत में जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर 0.8 से भी अधिक पहुंच चुकी है।
जनसंख्या अभिशाप है या वरदान- यह एक सार्थक बहस का विषय होना चाहिए। हमारे शिक्षण संस्थानों में केवल जनसंख्या वृद्धि को अभिशाप के रूप में ही पढ़ाया जाता रहा है और गरीबी व बेरोजगारी की समस्या को बढ़ती जनसंख्या के ऊपर मढ़ दिया जाता है। देश और राज्यों में बनी सभी सरकारों के सामने जनसंख्या वृद्धि एक चुनौती रही है। किसी भी सरकार ने इस चुनौती का सामना करने के लिए इतनी संजीदगी नहीं बरती है जितनी बरती जानी चाहिए थी। देश की जनसंख्या में हो रही वृद्धि संसाधनों और सेवाओं पर दबाव डाल रही है, जिससे पर्यावरण का क्षरण हो रहा है। ग़रीबी, असमानता बढ़ रही है। स्वास्थ्य व्यवस्था पर निरंतर बोझ बढ़ रहा है, जिससे गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य व अन्य सेवाओं की आम जनमानस तक पहुंच एक चुनौती बनी हुई है। शिक्षा का बुनियादी ढांचा बढ़ती आबादी की ज़रूरतों से जूझ रहा है। शहरीकरण के कारण मूलभूत आवश्यकताओं और आधारभूत अवसंरचना पर दबाव बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त, जनसंख्या वृद्धि के कारण रोज़गार अवसरों में भी कमी आई है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी अब तक उच्चतम स्तर (8.5 प्रतिशत) पर है। ग़रीबी दूसरी बड़ी चुनौती है, जहां लगभग 16.4 प्रतिशत आबादी ग़रीब है और लगभग 4.2 प्रतिशत लोग भीषण ग़रीबी का सामना कर रहे हैं। गरीबी और बेरोजगारी का मुख्य कारण देश के नागरिकों में कौशशलता की कमी होना है। भारत के केवल 4.7 प्रतिशत कार्यबल ने औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया है। जर्मनी और दक्षिण कोरिया में यह संख्या क्रमशः 75 प्रतिशत और 96 प्रतिशत है। मोटे तौर पर भारत में असंगठित क्षेत्र में 83 प्रतिशत कार्यबल कार्यरत है और संगठित क्षेत्र में 17 प्रतिशत। अर्थव्यवस्था में 92.4 प्रतिशत अनौपचारिक श्रमिक हैं जिनके पास कोई लिखित अनुबंध, सवेतन छुट्टी और अन्य लाभ नहीं हैं। जो एक चिंतनीय विषय है।
दूसरी ओर दुनिया के कई संपन्न देश जापान, इटली, ईरान व ब्राजील आदि जनसंख्या की कमी से जूझ रहे हैं। जहां कार्यों की अधिकता होते हुए श्रम शक्ति की कमी बनी हुई है। इसके विपरीत भारत में श्रम शक्ति अधिक होते हुए रोजगार में निरंतर कमी आ रही है। यह बेहद चिंता का विषय है। ज्यादा जनसंख्या वाले देशों में बड़ी कुशल श्रमशक्ति होती है, जो उत्पादन और आर्थिक विकास में मदद कर सकती है। अधिक जनसंख्या का मतलब है कि उत्पाद और सेवाओं के लिए बड़ा बाजार, जो व्यापार और उद्योग को बढ़ावा देता है। ज्यादा जनसंख्या में प्रतिभाशाली और रचनात्मक व्यक्तियों की संख्या भी अधिक होती है, जो नवाचार और नए विचारों को जन्म दे सकते हैं। बड़ी जनसंख्या वाले देशों में अधिक सैनिक और सुरक्षा बल हो सकते हैं, जो देश की रक्षा को मजबूत बनाते हैं। इसलिए, जनसंख्या का संतुलित प्रबंधन जरूरी है। इसके लिए जनसंख्या वृद्धि का बेहतर प्रबंधन करने की आवश्यकता है। युवाओं को सही दिशा में मार्गदर्शन देने, युवा शक्ति को बेहतर ढंग से चैनेलाइज करने और प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है ताकि वे देश के विकास में योगदान दे सकें। हम कौशल विकास और शिक्षा में निवेश बढ़ाकर, युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान कर सकते हैं और अर्थव्यवस्था को मजबूत बना सकते हैं।
देश की सरकार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों की सरकारों, संगठनों से सहयोग कर कृषि, ऑटो, रक्षा, सेवा, साइंस व अन्य उत्पादन के क्षेत्र में उत्पादन क्षमता बढ़ानी होगी। यह कार्य शिक्षा में गुणवत्ता व कौशलता तथा व्यावसायिकता लाकर ही किया जा सकता है। सरकार द्वारा रोजगारपरक कार्यक्रम, कौशलता, शिक्षा, जनसंख्या प्रबंधन व नियंत्रण के लिए अनेक योजनाएं शुरू की गई हैं। इन योजनाओं और कार्यक्रमों के अभी तक कितने सार्थक परिणाम आए हैं, यह एक मूल्यांकन का विषय है।

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