संयम में समाधान
वाचाल प्रकृति का समद अपनी बदजुबानी के लिए प्रसिद्ध था। किसी ने उसे सलाह दी कि वह एक बार महात्मा बुद्ध से मिल ले। शायद उसे ज्ञान के साथ-साथ उसकी समस्या का समाधान भी मिल जाए। समद बुद्ध की सभा में जा पहुंचा और उन्हें अपनी समस्या सुनाई। बुद्ध उसे मठ के पास नदी किनारे ले गए। वहां कई मछुआरे अपना-अपना जाल पानी में डाले बैठे थे। बुद्ध ने समद को सभी मछुआरों के जाल में झांकने को कहा और पूछा कि क्या किसी जाल में पीली या सुनहरी मछली भी है। समद ने जाल में देखते हुए कहा, ‘नहीं प्रभु।’ तब बुद्ध मुस्कुराए और बोले, ‘जानते हो पुत्र, क्यों। क्योंकि जाल दिखते ही यह मछलियां कुछ खाने के लालच में अपना मुंह खोल देती हैं और जाल में फंस जाती हैं। जबकि सुनहरी मछली ही अकेली ऐसी मछली है जो कभी अपना मुंह नहीं खोलती और इसीलिए इनके जाल में नहीं फ़ंस पाती। इसी तरह कुछ असंयमी लोग भी समय-असमय अपना मुंह खोलकर संकट में आ जाते हैं।’
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी