महिला सुरक्षा में समाज भी बने भागीदार
डॉ. मोनिका शर्मा
महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा से दुनिया का कोई हिस्सा अछूता नहीं है। घर हो या बाहर, कमोबेश सभी देशों में स्त्रियां कई तरह के हिंसक बर्ताव का दंश झेलती हैं। स्त्रियों के मन, मान और शरीर को चोट देने वाला यह दुर्व्यवहार सीधे-सीधे मानवाधिकार के हनन का विषय है। यही वजह है कि हर वर्ष महिला अस्मिता के जुड़े इस पक्ष पर जागरूकता लाने और मुखर विरोध जताने का प्रयास वैश्विक स्तर पर किया जाता है। ‘महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय अभियान’ ऐसे ही प्रयासों को बढ़ावा देने और स्त्रियों को अपनी सुरक्षा से जुड़े अधिकारों को लेकर सतर्क करने को लेकर है।
तकलीफदेह स्थितियां
बीते कुछ बरसों में जीवन से जुड़े हर पक्ष पर आये बदलाव के बावजूद बहुत सी महिलाएं शारीरिक हिंसा झेलने को विवश हैं। शिक्षित, सम्पन्न परिवारों में भी उनके मान को चोट पहुंचाने वाला बर्ताव देखने को मिलता है। परिजनों, सहकर्मियों, जीवनसाथी और यहां तक कि अपरिचित चेहरों के हिंसक बर्ताव की खबरें भी आम हैं। मनमर्जी से चुने सहजीवन के रिश्ते में भी महिलाओं को मारने-पीटने और जान तक ले लेने के मामले सामने आते रहते हैं। शोषण के इस खेल में अब वर्चुअल दुनिया से जुड़ी घटनाएं भी शामिल हो गई हैं। हर आयु वर्ग की महिलाएं हिंसा की शिकार बनती हैं। यही वजह है कि जेंडर आधारित वॉयलेंस का विरोध सिर्फ स्त्रियों का नहीं, समग्र समाज का दायित्व है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनियाभर में 86 फीसदी महिलाएं और लड़कियां लिंग आधारित हिंसा के विरुद्ध कानूनी सुरक्षा के बिना रहती हैं। हर घंटे 5 से ज्यादा महिलाओं या लड़कियों की उनके ही परिवार में किसी न किसी द्वारा हत्या कर दी जाती है। वैश्विक स्तर पर लगभग 3 में से एक महिला अपने जीवन में कम से कम एक बार शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार हुई है। क्रूर व्यवहार करने वालों में अपनों-परायों संग जीवनसाथी भी शामिल रहे हैं। दुनियाभर में 82 फीसदी महिला सांसदों ने भी माना है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के समय किसी न किसी तरह की हिंसा का सामना किया है, विशेषकर मनोवैज्ञानिक हिंसा। किसी महिला का मनोबल तोड़ने के लिए भी मानसिक हिंसा का भी सहारा लिया जाता है और सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए भी। आधी आबादी के आगे बढ़ते कदमों को रोकने का दुस्साहस भी वॉयलेंट व्यवहार के रूप में भी सामने आता है।
मानवीय सोच को बल देती मुहिम
इस अभियान का उद्देश्य घर-परिवार और सामाजिक परिवेश के लोगों को सहयोगी बनने का संदेश देने से जुड़ा है। हर वर्ष एक खास विषय को लेकर जन-जागरूकता लाने और महिलाओं की जद्दोजहद को समझने-समझाने की कोशिश की जाती है। जेंडर बेस्ड हिंसा का विरोध करने से जुड़ा 16 दिनों का यह वार्षिक अभियान 25 नवंबर से 10 दिसंबर यानी ‘महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ से ‘अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस’ तक चलता है। साल 2023 के लिए इसकी थीम ‘यूनाइट’ यानी ‘एकजुट हों’ रखी गई है। इस विषय के तहत दुनियाभर की महिलाओं और सरकारों को साझी शक्ति के साथ इस दंश से लड़ने का संदेश दिया जाएगा। यह मुहिम हिंसक व्यवहार से जूझती महिलाओं की तकलीफ समझने का परिवेश बनाती है। अवेयरनेस लाने और अहसासों को समझने का माहौल बनने से बहुत सी महिलाओं के लिए पीड़ादायी परिस्थितियों से निकलने के लिए सहायता मिलने की राह भी खुलती है।
मदद का हाथ बढ़ाएं
घर का आंगन हो या कामकाजी जगह, हर एक इंसान इस दुर्व्यवहार का विरोध और पीड़ित महिला का साथ देने के लिए आगे आए तो इन अमानवीय हालात को बदला जा सकता है। विडंबना है कि कई परिवारों में तो बहू-बेटियों के साथ होने वाले इस बर्ताव का विरोध घर के बड़े भी नहीं करते, अनदेखी करते हैं। वर्कप्लेस पर भी पीड़िता का साथ देने की सोच कम ही देखने को मिलती है। जबकि घर हो या बाहर, विरोध न करने के हालात हिंसक मानसिकता को और खाद-पानी देते हैं। ‘ईक्यूआई- द एक्सीलरेटर व्हाट काउंट्स-2023 रिपोर्ट कहती है कि हिंसा झेलने वाली 40 फीसदी महिलाएं अपने परिवार या फ्रेंड्स से मदद चाहती हैं। जरूरी है कि जहां भी जैसे भी संभव हो, सब एकजुट होकर हिंसक बर्ताव के विरुद्ध आवाज उठाएं। दोषारोपण के बजाय पीड़ित महिलाओं का मनोबल बढ़ाएं।