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कसौटी पर सोशल मीडिया का कंटेंट

06:52 AM Dec 10, 2023 IST
चित्रांकन : संदीप जोशी

देश में करोड़ों व्यूअर्स वाले सोशल मीडिया चैनलों की मनमानी पर बहस जरूरी है ताकि जवाबदेही तय हो सके। फर्जी खबरें व अन्य संवेदनशील सूचनाओं के प्रसारण के आरोपी चैनलों पर आईटी नियमों के तहत कार्रवाई हुई भी। बेशक भारतीय अर्थव्यवस्था में एक ही लोकप्रिय प्लेटफॉर्म के हजारों चैनलों का बड़ा योगदान है। लेकिन गलत सूचनाओं से राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था की चुनौती को देखते हुए नये आईटी कानून प्रासंगिक ही होंगे।

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पुष्परंजन
लेखक ईयू एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक हैं।

इसकी लिस्टिंग लोगों ने तेज़ी से शुरू की थी कि कितने यूट्यूबर्स पांचों राज्यों में चुनावी भविष्यवाणी करने में लुढ़क गये थे। ‘हीरो से जोकर भी बन जाना पड़ता है।’ जाने क्या सोचकर इस गीत को लिखा था गोपाल दास नीरज ने। इस समय यूट्यूब पत्रकारिता के जो हीरो हैं, जोकर वाली स्थिति से गुज़र रहे हैं। जिन्होंने प्रोफेशनल पत्रकारिता जैसे क्षेत्र में स्वयं को सदी का महानायक मान लिया था, मुंह चुराये फिर रहे हैं। फ़िर भी, कुछ ने देह झाड़कर स्क्रीन को फेस करना शुरू कर दिया है। नहीं करेंगे, तो बचे-खुचे दर्शक भाग जाएंगे, डॉलर का मिलना बंद हो जाएगा। भय और प्रीत ने मोबाइल स्क्रीन पर उनकी वापसी कर दी है।

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बहस की जरूरत
सबसे दिलचस्प यह है कि जो यूट्यूबर, स्तंभ लेखक और पत्रकार जिस एक दल के लिए ‘कसीदाकारी’ कर रहे थे, उनमें से बहुतों ने परिणाम के तुरंत बाद, उस दल की रणनीति को ही कोसना शुरू कर दिया था। बहस ख़ुद उनके द्वारा सतही सूचनाओं के खिलवाड़ पर नहीं हो रही है। जो गोदी में नहीं बैठे हैं, वो क्या कुछ परोसते रहे? यह सवाल ज़ेरे बहस होना चाहिए। लोकसभा चुनाव तक यदि उसी ढर्रे पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सूचनाओं को परोसा गया, तो जो लोग सेटेलाइट टेलीविज़न को छोड़कर मोबाइल टीवी पर भरोसा करने लगे थे, उनका क्या होगा? ठीक से देखा जाए, तो पांच राज्यों में चुनाव के बाद यूट्यूबर्स की व्यूअरशिप में तेज़ी से गिरावट आई है।

चित्रांकन : संदीप जोशी

नियमन के लिए कानून
2024 में आम चुनाव के बाद क्या सरकार ऐसे क़ानून लाने की तैयारी में है, जो सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को खुलकर खेलने से रोकेगी? नए आईटी नियम को फरवरी 2021 में अधिसूचित किया गया था, जिसमें सोशल मीडिया कंटेंट हटाने के अधिकार सहित सरकार को सेंसरशिप की अभूतपूर्व शक्तियां देने के लिए आलोचना की गई थी। लेकिन सरकार ने इसकी परवाह न करते हुए दिसंबर 2021 में 78 यूट्यूब चैनलों को ब्लॉक करने का आदेश दिया था। वजह राष्ट्रीय सुरक्षा, देश की संप्रभुता और अखंडता पर ख़तरा बताया गया। केंद्र सरकार ने 5 अप्रैल 2023 को भी 22 यूट्यूब चैनल ब्लॉक किये थे। उन पर फर्जी खबरें फैलाने का आरोप लगाया, जो राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी संबंधों और सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकती हैं। अप्रैल 2023 में जो 22 यूट्यूबर ब्लॉक किये गये, उनमें चार के अकाउंट पाकिस्तान से ऑपरेट हो रहे थे। स्टैटिस्टा के अनुसार, साल 2015 से 2022 के बीच 55 हज़ार से अधिक वेबसाइट्स भारत सरकार ने ब्लॉक करवाई, जिनमें यूट्यूब चैनल भी हैं। मिनिस्ट्रिी ऑफ इलेक्ट्रोनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलाजी और सूचना प्रसारण मंत्रालय जून 2024 के बाद सोशल मीडिया को ज़िम्मेदार बनाने के लिए नये सिरे से क़ानून बनाने का प्रस्ताव संसद में रखेगी, इसके प्रारूप पर काम हो रहा है।

कहां-कहां से जुटेे दर्शक
यूट्यूब चैनलों ने दरअसल, मेन स्ट्रीम मीडिया के दर्शकों को छीना है। फरवरी 2021 तक लगभग 900 सेटेलाइट चैनल भारत में थे। आज उनमें से 200 चैनल भी सुचारू रूप से चल नहीं पा रहे हैं। सफेद हाथी बन चुके इन चैनलों के बहुतेरे दर्शक मोबाइल टीवी पर शिफ्ट हो चुके हैं। लेकिन सेटेलाइट चैनल वाले ख़ुद का सोशल मीडिया प्लेटफार्म तैयार कर दर्शकों को बटोरने वाली प्रतिस्पर्धा में उतर गये। बावज़ूद उसके, देशभर में एक नया व्यूअर तैयार हुआ, जिसकी बाढ़ सोशल मीडिया पर आ चुकी थी। साल 2022 में यूट्यूब ने सूचनाएं साझा की, जिससे पता चला कि भारत में एक लाख से अधिक व्यूअर वाले 40 हज़ार चैनल चल रहे हैं। यानी सेटेलाइट चैनलों से कई गुना अधिक प्लेयर मीडिया मार्केट में उतर चुके थे।

अर्थव्यवस्था में योगदान
ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की रिपोर्ट का हवाला देते हुए यूट्यूब ने बयान दिया कि भारतीय अर्थव्यवस्था में इस प्लेटफार्म ने 6 हज़ार 800 करोड़ रुपये का योगदान साल 2020 में दिया था। अगले तीन साल का ताज़ा अपडेट अभी मिला नहीं, लेकिन निश्चित रूप से 20 से 25 प्रतिशत रेवेन्यू का इज़ाफा यूट्यूब चैनलों के माध्यम से हुआ होगा। ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई कि इससे 6 लाख 83 हज़ार 900 फुल टाइम जॉब का सृजन हुआ था। यूट्यूब अपने फंड, ‘शार्ट्स पार्टनर्स प्रोग्राम’ के ज़रिये वितरित करती है। उसके अधिकारी बताते हैं कि जुलाई 2021 तक भारत में 40 फीसदी ऐसे भी यूट्यूबर्स थे, जो ‘शार्ट्स पार्टनर्स प्रोग्राम’ का हिस्सा भी नहीं थे, फिर भी उन्हें पैसे ट्रांसफर किये गये।

पहुंच और कमाई
यूट्यूब की पहुंच कितने दर्शकों तक हो रही है, यह सर्वर मैसेज बॉक्स (एसएमबी) से तय होता है। ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स द्वारा सर्वेक्षण से पता चला कि 92 प्रतिशत एसएमबी से नए दर्शकों तक पहुंचने में मदद मिली है, जबकि 87 फीसदी एसएमबी विज्ञापन के लिए अपने प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं। यूट्यूब संचालकों का मानना है कि इससे हमारी बिक्री बढ़ाने में मदद मिली है। इस समय, यूट्यूबर्स के ज़रिये कमाई करने के जो सात तरीके हैं, उनमें विज्ञापन, चैनल की सदस्यता (सब्सक्राइबर) और सुपर थैंक्स शामिल हैं। ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की शोध टीम ने भारत में 4,032 यूजर्स के साथ-साथ हिंदी, बंगाली, तमिल और मलयालम सहित सात भारतीय भाषाओं में काम करने वाले 1,020 संचालकों का सर्वेक्षण किया। हालांकि, गूगल के स्वामित्व वाले यूट्यूब ने साल 2021 के लिए कोई डेटा साझा नहीं किया है, जो उसके कारोबार की अपडेट तसवीर सामने रख दे। वैसे भी यूट्यूब किसी भी शो करने वाले को मोनोटाइज करते ही आंशिक पेमेंट जोड़ना शुरू कर देता है। फिर भी, 10 हज़ार सब्सक्राइबर्स की कैटेगरी में जो यूट्यूबर आ जाते हैं, उनके पेमेंट अकाउंट में आने आरंभ हो जाते हैं। लेकिन चैनल चलाने वाले मालिक-संपादक डिबेट में आये लोगों से यह सूचना साझा नहीं करते कि उन्हें किस महीने कितने हज़ार डॉलर यूट्यूब ने दिया है।
आप न्यूज़ परोसें, कुत्ते-बिल्लियों के वीडियो नियमित शेयर करें, आईएएस कोचिंग के कंटेंट से लेकर संगीत परोसें या ठुमके लगायें, जो चैनल व्यूअर बटोरता है, वो अपना माल बेचता है। बहुत साधारण सा अर्थशास्त्र है, जिसे आज की तारीख में गली-कूचे तक में मोबाइल फोन लेकर प्रोग्राम बनाने वालों ने समझ लिया है। पहले इस अर्थशास्त्र को अखबार चलाने वाले या सेटेलाइट चैनलों से निकाले गये कुछ एंकरों ने समझा था, और मैदान ख़ाली होने की वजह से लाखों व्यूअर्स को जोड़ लिया था। आज यह समझाइश व्यापक हो गई है, चुनांचे व्यूअर्स से सब्सक्राइब और लाइक कराना, और उन्हें जोड़ना एक बड़ी चुनौती है।

मोबाइल टीवी की बढ़ी व्यूअरशिप
यह तो मान लेना चाहिए कि कोविड के कालखंड में मोबाइल टीवी की व्यूअरशिप में बूम आया था। उसके बाद व्यूअर्स को स्मार्ट फोन से कार्यक्रमों को देखने की ऐसी लत लगी, जो किसी वायरस का शिकार होने से कम नहीं था। ऑक्सफोर्ड रिपोर्ट के लिए सर्वेक्षण किए गए उपयोगकर्ताओं में 18 वर्ष से अधिक आयु के 94 प्रतिशत छात्रों ने कहा था कि वे अपने व्यक्तिगत अध्ययन के पूरक के रूप में या फ़िर असाइनमेंट में मदद के लिए यूट्यूब का उपयोग करते हैं। वहीं 81 फीसदी शिक्षकों ने भी स्वीकार किया था कि इस प्लेटफार्म के अपने फायदे हैं। जबकि 13-17 वर्ष की आयु के बच्चों के 91 प्रतिशत पैरेंट्स का कहना था कि वे अपने बच्चे के असाइनमेंट के लिए गूगल जैसे प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं।

सोशल मीडिया के यूजर्स
सोशल मीडिया के यूजर्स सबसे अधिक नाइजीरिया में हैं। नाइजीरियाई नागरिक सोशल नेटवर्क पर चार घंटे से अधिक समय रोज़ बिताते हैं, जो कि दुनिया भर में 2 घंटे और 27 मिनट के औसत से लगभग डबल है। फिलीपींस और भारत भी अब इस रेस में आ चुके हैं। साल 2023 की शुरुआत में भारत में 39.80 करोड़ यूजर्स थे जिनकी उम्र 18 साल या उससे अधिक थी, जो देश की पूरी आबादी का 40.2 फीसदी है। भारतीय प्रतिदिन लगभग 141.6 मिनट सोशल मीडिया को देने लगे हैं। फोर्ब्स के अनुसार, जनवरी 2023 तक दुनिया भर में सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़कर 4.9 बिलियन हो गई है। यह संख्या 2027 तक लगभग 5.85 बिलियन बढ़ने की उम्मीद है। डाटा रिपोर्टल की सूचनाओं से जानकारी मिली कि जनवरी 2023 तक 652.02 मिलियन डाटा यूजर्स भारत में थे। उनमें से 467 मिलियन लोग सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक्टिव हैं। एक अरब 10 करोड़ सेल्युलर फोन कनेक्शन का 77 फीसदी हिस्सा यूजर्स में आता है।

विज्ञापनों में बूम
स्टैटिस्टा बताता है कि सोशल मीडिया मार्केट सौ अरब डॉलर को 2023 की शुरुआत में ही पार कर चुकी थी, जिससे केवल भारत में 1.3 अरब डॉलर की आय विज्ञापनों से हो रही है। साल 2022 में सोशल मीडिया एप मार्केट 49.9 अरब डॉलर की थी। साल 2023 से 2030 तक इसमें 26.2 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान फोर्ब्स के सर्वे करने वालों ने लगाया था। भारत में 448.1 मिलियन फेसबुक यूजर्स हैं, जो पूरी दुनिया में सबसे अधिक बताये जाते हैं। यह लगभग 31.8 फीसदी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है। दूसरे शब्दों में, भारत में हर पांच में से एक व्यक्ति फेसबुक का उपयोगकर्ता है।
भारत में 516.92 मिलियन इंस्टाग्राम यूजर्स हैं। युवा और किशोरों के बीच इंस्टाग्राम पॉपुलर माध्यम है, और जो जिन्हें रेवेन्यू बटोरना है, उनके लिए यह है राजस्व का आकर्षक स्रोत। फेसबुक भारत में दूसरा सबसे लोकप्रिय प्लेटफार्म है, जिसका इस्तेमाल न्यूज़ मीडिया करने लगा है। कुल 492.70 मिलियन एक्टिव इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की वजह से देश के कई मशहूर ब्रांडों ने फेसबुक और इंस्टाग्राम, ट्विटर, लिंक्डइन जैसे सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म को अपने प्रोडक्ट के प्रचार का सशक्त माध्यम मान लिया है। अब फेसबुक मोबाइल टीवी का एक बड़ा प्लेटफार्म बन चुका है।
साल 2021 में इंस्टाग्राम पर 38 लाख पोस्ट में हैशटैग विज्ञापन था। इंस्टाग्राम ने 2021 में आये विज्ञापनों में ज़बरदस्त वृद्धि देखी, जिससे संदेश गया कि लोग डिज़िटल विज्ञापन की तरफ़ तेज़ी से भाग रहे हैं। साल 2022 में डिजीटल विज्ञापनों पर 4.14 बिलियन डॉलर तक लोगों ने ख़र्च कर दिये। इंस्टाग्राम पर एक मिलियन से अधिक फॉलोअर्स वाले प्रभावशाली लोगों ने अपनी स्टार पॉवर को उन पोस्टों में तब्दील होते देखा, जिनकी 2021 में औसत क़ीमत 1,200 डॉलर थी। भारत में सोशल मीडिया विज्ञापन बाजार 2023 में 1.28 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। सोशल मीडिया विज्ञापन बाजार में विज्ञापन खर्च 2023 में 1.28 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। विज्ञापन खर्च 3.76 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर 2023-2027) दिखाने की उम्मीद है, जिसके परिणामस्वरूप 2027 तक अनुमानित बाजार मात्रा 1.49 अरब अमेरिकी डॉलर होगी।

इंफ्लूएंसर्स के बूते 2024 का चुनाव?
2024 का चुनाव क्या पॉलिटिकल इंफ्लूएंसर के दम पर लड़ेंगे? ये वो लोग हैं, जो सोशल मीडिया के बादशाह बताये जाते हैं। इनकी एक टिप्पणी वायरल होती है, समाज का बड़ा हिस्सा दिनभर ट्रोलबाज़ी में लगा रहता है। चाय के ठीये से लेकर वीवीआईपी के ड्राइंगरूम तक इनके कमेंट पर सहमति-असहमतियों का दौर तब तक चलता है, जबतक कि कोई दूसरा योद्धा मैदान में नुमायां न हो जाए। आपको अपनी राजनीति चमकानी है, ऐसे इंफ्लूएंसर को आगे रखिये, कोई प्रोडक्ट पॉपुलर करना है, तो भी रखिये।
इंफ्लूएंसर आज की ब्रांड मार्केटिंग का अहम विषय बन चुके हैं। आप किसी विज्ञापन एजेंसी से या सोशल मीडिया प्रोमोटर से बात करें, वह कुछ मशहूर चेहरों को सामने रखकर मोल-भाव करेगा। साल 2021-22 में इंफ्लूएंसर मार्केट का साइज़ 16.4 अरब डॉलर था, जो दो वर्षों में 29 फीसदी बढ़कर 21.1 अरब डॉलर पर पहुंच चुका है। इंफ्लूएंसर को डील करने के वास्ते एजेंसियों की भरमार है। लगभग दो लाख ट्विटर फॉलोअर्स वाले एक इंफ्लूएंसर ने बताया कि कई विज्ञापन एजेंसियों ने उनसे राजनीति से संबंधित ट्वीट के लिए 45,000 रुपये तक की पेशकश की थी। ‘कुछ राजनीतिक दल हमसे एक महीने में छह ट्वीट करने के लिए कहते हैं, जिससे महीने भर में आसानी से दो लाख रुपये से अधिक की कमाई हो जाती है। यह लुभावना बाज़ार है। मगर, हम अपने पोस्ट में खुलासे नहीं करते कि इसके पीछे कौन लोग हैं।’
जून 2023 में डिजिटल अधिकार वकालत समूह, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) के संस्थापक-निदेशक अपार गुप्ता ने जानकारी दी कि कंटेंट निर्माता टीवी चैनलों से गठजोड़ कर मेगा इवेंट फ़िल्म, साहित्य-संस्कृति, मीडिया, न्यायपालिका व सोशल एक्टीविटीज़ के क्षेत्र के प्रसिद्ध चेहरों को मंच पर उतारते हैं। यह धंधा चुनावों के समय ज़ोर पकड़ लेता है। इवेंट की कवरेज को देखिये, कुछ विडियोज़ में ‘कोप्रेजेंटेड टू यू, बाई एट माईजीओवी इंडिया’ का लेबल भी लगा मिलेगा। ‘ब्रांड’ के रणनीतिकार हरीश बिजूर बताते हैं, ‘सोशल मीडिया मतदाताओं की मानसिकता को बदल देने में इंफ्लूएंसर बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। उन्होंने बताया कि राजनीतिक दलों को प्रभावशाली लोगों की जरूरत है। एक इंफ्लूएंसर के लगभग आधे फॉलोवर यह नहीं समझ पाते कि उसका मकसद क्या है। दर्शक बस उसके बयानों से प्रभावित हो जाते हैं। यदि कोई प्रभावशाली व्यक्ति 50 फीसदी फॉलोवर्स को प्रभावित कर सकता है, तो यह राजनीति के लिए अमोघ अस्त्र है।’

ऐप्स वालों की बल्ले-बल्ले

जैसे-जैसे सोशल मीडिया बाज़ार परिपक्व होने लगा, एप्स को लेकर प्रतिस्पर्धा तेज़ हुई। टिकटॉक, इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म ऐसे क्षेत्र हैं जहां आपका ब्रांड बिजनेस को तेज़ी से ऊपर ले जाने की ताक़त रखता है। यूट्यूबर इस अर्थशास्त्र को बेहतर समझते हैं, जिसकी वजह से अधिक से अधिक सब्सक्राइबर लाने की होड़ चल पड़ी है। औसत स्मार्टफोन उपयोगकर्ता हर महीने सोशल मीडिया ऐप्स पर 70 घंटे बिताता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि 4.88 बिलियन लोगों के पास सोशल मीडिया अकाउंट हैं। 1990 के दशक में जैसे-जैसे इंटरनेट वेब की ओर बढ़ रहा था, कई ऑनलाइन मैसेजिंग और सोशल नेटवर्क नई मल्टीमीडिया सेवाओं के साथ लॉन्च हुए, जिससे उन्हें लोकप्रियता के नए स्तर पर पहुंचाया गया। माइस्पेस, फेसबुक, ऑर्कट और बेबो सभी 2003 और 2005 के बीच लॉन्च हुए थे। साल 2008 में फेसबुक माइस्पेस को पीछे छोड़ते हुए दुनिया भर में सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्क बन गया। क्यूज़ोन और वीके दोनों को चीनी और रूसी उपयोगकर्ताओं के लिए फेसबुक के क्लोन के रूप में लॉन्च किया गया था। ट्विटर 2006 में और टम्बलर 2007 में लॉन्च हुआ, दोनों को माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म के रूप में पेश किया गया। साल 2010 की शुरुआत में इंस्टाग्राम, पाथ, स्नैपचैट, कीक और वाइन जैसे ऐप्स बाज़ार में आये। शुरुआत में फेसबुक को माइस्पेस से संघर्ष करना पड़ा, लेकिन 2012 में इंस्टाग्राम और 2014 में व्हाट्सएप के अधिग्रहण ने दुनिया में सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग कंपनी के रूप में इसकी स्थिति मजबूत कर दी। इंस्टाग्राम का दैनिक उपयोग सबसे अधिक है, 39 प्रतिशत उपयोगकर्ता इसे दिन में एक बार ज़रूर खोलते हैं। टिकटॉक 29 प्रतिशत दैनिक जुड़ाव के साथ दूसरे स्थान पर है। इंस्टाग्राम फेसबुक को रेस में पीछे छोड़ चुका है। भारत में 516.92 मिलियन सक्रिय इंस्टाग्राम उपयोगकर्ता हैं। किशोर और युवा दोनों इंस्टाग्राम के दमदार यूजर्स हैं। कंपनियों के बीच इस समय आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आधारित तकनीक को मार्केट में उतारने की ज़बरदस्त होड़ लगी है। ताज़ा उदाहरण से समझ सकते हैं कि चैट-जीपीटी को टक्कर देने के लिए गूगल ने ‘जेमिनी एआई’ मॉडल लांच किया है। ये मॉडल टेक्स्ट, इमेज, ऑडियो और कोड को आसानी से हैंडल करने में सक्षम होगा।

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