लोकतंत्र के आदि रूप वैशाली का रेखांकन
चन्द्र त्रिखा
हिन्दी में वृंदावन लाल वर्मा के बाद ऐतिहासिक उपन्यासों की परम्परा थम-सी गई थी, मगर धीरे-धीरे इस विधा ने नई करवट ली और अब ऐतिहासिक के साथ-साथ पौराणिक पात्रों पर भी उपन्यास आने लगे हैं। ये उपन्यास चर्चा के केंद्र में भी रहे हैं। ऐसे ही उपन्यासों की शृंखला में ‘वैशालीनामा’ अपनी विशिष्ट पहचान लिए आया है।
लेखक प्रभात प्रणीत मूल रूप में सिविल इंजीनियरिंग के स्नातक हैं, लेकिन लेखन के क्षेत्र में उनका प्रवेश एवं दखल, सशक्त माना जाता है। लेखक स्वयं स्पष्ट करता है कि ‘वैशालीनामा’ उपन्यास है, इतिहास नहीं। मगर वह स्वीकारता भी है कि इस कथा की प्रेरणाभूमि पौराणिक है और ‘इसका उद्देश्य मानव समाज के उज्ज्वल वर्तमान और उज्ज्वल-तर भविष्य के लिए प्रासंगिक मूल्यों का आह्वान करना है।’
अतीत में कुर्रतुल ऐन हैदर की ‘आग का दरिया’ कृति का प्रारंभिक परिवेश, आचार्य चतुरसेन शास्त्री की ‘वैशाली की नगरवधू’ और भगवतीचरण वर्मा की ‘चित्रलेखा’ भी ऐसी ही श्रेणी में आते हैं। लेकिन ‘वैशालीनामा’ इस श्रेणी में होते हुए भी अपनी अलग पहचान लिए हुए हैं। कथानक की पृष्ठभूमि में जिस कालखण्ड का चित्रण है, इसकी भाषा का पर्यावरण उसकी सशक्त गवाही देता है।’
‘गंगा-सरयू संगम के दक्षिणी तट से कुछ ही दूर घने जंगल के बीच अवस्थित सिद्धाश्रम रात के उस दूसरे पहर एकदम शांत पड़ा था। ऋषि-मुनियों के निवास स्थान के लिए प्रसिद्ध इस जगह पर दिन के समय कोलाहल मचाए रखने वाले वानर, हिरण, खग सब थककर सो गए थे। अमावस की यह रात इतनी घनी थी कि वृक्ष, लता, कुटीर सब अंधेरे में डूबकर अदृश्य-से हो चुके थे। आश्रम से सोन तट तक जाने वाला मार्ग भी अंधेरे में डूबा हुआ था, वह मार्ग जिस पर चलकर व्यापारी, राही वहां से तीन योजन दूर सोन-गंगा संगम को पार करते हुए मगध राज्य की राजधानी राजगृह तक जाते थे। दिन के समय इस मार्ग पर गहमागहमी बनी रहती थी। इस मार्ग का उपयोग बहुत से व्यापारी वज्जि राज्य की राजधानी वाणिज्यग्राम जाने के लिए भी करते थे। वही वैभवशाली वज्जि राज्य जिसकी स्थापना आर्य सिरमौर वैवस्वत मनु के पुत्र नाभानेदिष्ट ने की थी।’
यह एक स्वीकार्य तथ्य है कि ‘वैशाली को लोकतंत्र की जन्मस्थली माना जाता है।’ एक पौराणिक आख्यान को आधार बनाकर लेखक ने निहित मूल्यबोध और तत्कालीन समाज में व्याप्त असमानता और उसके विरुद्ध हुई प्रतिक्रिया के उल्लेख द्वारा लोकतंत्र के आदि रूप को रेखांकित किया है।
भाषा, शैली व परिवेशगत पर्यावरण को रुचिकर स्वरूप देने में लेखक सफल रहा है। लगभग 216 पृष्ठों पर आधारित इस उपन्यास को पढ़ना, इसकी ग्राह्यता और इसका उद्देश्य सब कुछ सुगमता से स्पष्ट हो जाता है।
पुस्तक : वैशालीनामा लेखक : प्रभात प्रणीत प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रा.लि. नयी दिल्ली पृष्ठ : 216 मूल्य : रु. 250.