जूता चुरायी की रस्म तो सालियां करती है पर मंदिरों में पता नहीं कौन...
शमीम शर्मा
रिवाज भी कमाल की चीज़ हैं। ज्यों के त्यों रहते हैं जैसे गरीब की झोपड़ी का डिजाइन नहीं बदलता, रिवाज भी वैसे के वैसे रहते हैं। जैसे दीन-हीन के आंसू हुकूमत पर दबाव डालकर एक छोटे-मोटे मकान की मंशा पूरी करने में जुट जाते हैं वैसे ही शादी में जूतों के बदले सालियां नेग-राशि हथियाने की तरकीब में जुट जाती हैं। पर वे भूल जाती हैं कि समय बदल गया है और रिवाजों में भी थोड़ी बदलाहट कर दी जाये तो मालामाल हो सकती हैं। यदि वे जूतों की जगह मोबाइल छिपाई मांगेगी तो पांच सौ के नोट की बजाय दूल्हा बीस-पचास हजार की गड्डी भी देने को राजी हो जायेगा। इसीलिये कहा जाता है कि लकीर के फकीर न बनो।
वैसे पुराने रीति-रिवाज हैं बड़े कमाल के। विदाई से पहले जब माहौल गमगीन-सा होने लगता है तो उस वेला में थोड़ा रस घोलने के लिये फेरों के समय मंडप में बैठते ही सालियां इस फिराक में होती हैं कि कैसे दूल्हे के जूते चुराये जायें। इस रस्म से दूल्हे मियां के संयम की परीक्षा भी हो जाती है और थोड़ा-बहुत हैसियत का भी अंदाज़ा हो जाता है क्योंकि आज के दिन बाजार में जूते पांच सौ से लेकर पचास हज़ार तक के हैं। इसके अलावा लड़के की बुद्धि का भी पता चलता है कि उसे ‘डील’ करना कितना आता है। महंगे में छूटता है या सस्ते में और वातावरण भी हंसी-ठट्ठों से सराबोर हो जाता है।
शादी बिजली की दो तारों का गठबंधन है। ठीक जुड़ गई तो रोशनी ही रोशनी और तार गलत जुड़ गये तो धमाके ही धमाके। कई बार ऐसे ही धमाके जूता छिपाई के वक्त भी हो जाते हैं। खासतौर पर जब कई सालियां और भाभियां मिलकर जूते के बदले में इतनी बड़ी-बड़ी मांगें रखती हैं कि पता ही नहीं चलता कि जूता छिपाई मांग रही हैं या दूल्हे का किडनैप कर फिरौती मांग रही हैं।
शादियों में तो जूता चुराई की रस्म सालियां करती हैं पर मंदिरों में पता नहीं कौन साला यह काम कर जाता है। किसी बुद्धिमान की नेक नसीहत है कि मंदिर की सीढ़ियों पर दोनों चप्पल या जूतों को अलग-अलग कोनों में रखने से चोरी होने का खतरा टल सकता है।
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एक बर की बात है अक बस स्टैंड धोरै खड़ी रामप्यारी तैं एकली देखकै नत्थू बोल्या- हां ए! अपणा मोबाइल नम्बर दे दे। रामप्यारी बोल्ली- चप्पल का नंबर दे द्यूं के? नत्थू भूंडा सा मुंह बणाते होये बोल्या- इब्बे ताहिं तो अपनी जान-पिछाण भी कोनीं होई अर तैं गिफ्ट भी मांगण लाग्गी।