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सहज जीवनशैली ही बचाव का बेहतर उपाय

10:37 AM Mar 06, 2024 IST

हार्मोन असंतुलन से शारीरिक समस्याएं पैदा होती हैं व युवतियों की मां बनने की क्षमता प्रभावित होती है। पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) ऐसा ही रोग है। वर्तमान में देश में 5 में से 1 महिला इससे पीड़ित है। अस्वस्थ जीवनशैली और गलत खानपान इसकी प्रमुख वजहें हैं। डाइट, व्यायाम और खुशनुमा माहौल में रहना- इस परेशानी से बचाने वाले सहज-सरल उपाय हैं।

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डॉ. मोनिका शर्मा

हालिया वर्षों में महिलाओं को जीवनशैली जनित स्वास्थ्य समस्याएं तेज़ी से बढ़ी है। विशेषकर हार्मोन्स की गड़बड़ी से होने वाली बीमारियां और प्रजनन अंगों से जुड़ी व्याधियां चिंतनीय हो चली हैं। कम उम्र में ही घेर रहीं शारीरिक तकलीफ़ें मानसिक स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव डाल रही हैं। इतना ही नहीं, प्रजनन से संबंधित हार्मोन के असंतुलन से होने वाली शारीरिक समस्याओं के चलते युवतियों की मां बनने की क्षमता भी प्रभावित होती है। पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) भी इसी तरह का एक विकार है जिसमें ओवरी में छोटी सिस्ट हो जाती है। इसके कारण रीप्रोडक्टिव उम्र की महिलाओं में एक ओर पुरुष हार्मोन, एंड्रोजन का स्तर बहुत बढ़ जाता है तो दूसरी ओर महिला हार्मोन प्रोजेस्ट्रॉन के स्तर में कमी हो जाती है। एक अध्ययन के अनुसार, देश में 5 में से 1 महिला पीसीओएस का शिकार है।

सजगता की आवश्यता

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम के कारण माहवारी चक्र की अनियमितता, गर्भधारण में समस्या और कई दूसरी जटिलताएं भी पैदा होती हैं। चिंतनीय है कि हार्मोन असंतुलन से उपजी इन तकलीफ़ों को अधिकतर युवतियां समय रहते नहीं समझ पातीं। इसी के चलते इलाज में भी देरी हो जाती है। सामान्य से लगने वाले लक्षण इस समस्या को असामान्य स्तर तक बढ़ा देते हैं। ज्ञात हो कि पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम होने पर अनियमित मासिक चक्र, माहवारी में देरी या अधिक रक्तस्राव, मूड स्विंग्स, मोटापा, अवसाद, बेचैनी, शरीर के कुछ हिस्सों पर अनचाहे बालों का बढ़ना, अनिद्रा, मुंहासे जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। डायबिटीज़ ग्रसित महिलाओं में इंसुलिन की गड़बड़ी के कारण भी पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की समस्या हो सकती है। इसके अलावा पीसीओएस की समस्या के पीछे आनुवंशिक कारण भी हो सकते हैं। ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की शिकार 24 प्रतिशत महिलाओं की माताएं और 32 प्रतिशत महिलाओं की बहनें ही इस विकार की शिकार पाई गईं। इसीलिए परिवार में मां या बहन को पीसीओएस की समस्या है तो इसका जोखिम बढ़ जाता है। इन परिस्थितियों में इस विकार के संकेतों को लेकर और ज्यादा सजग रहना चाहिए ।

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सक्रिय जीवनशैली की दरकार

पीसीओएस से जुड़ा विचारणीय पक्ष यह है कि कुछ महिलाओं में अस्वस्थ जीवनशैली इसकी वजह बनती है तो कुछ महिलाओं की असंतुलित दिनचर्या और खानपान इसे और बढ़ाने वाला साबित होता है। इसीलिए मनःस्थिति और शरीर में आ रहे बदलावों के संकेतों को समझकर चिकित्सक से सलाह लेने के साथ ही जीवनशैली में भी उचित बदलाव करना आवश्यक है। बैलेंस डाइट, व्यायाम और खुशनुमा माहौल में रहना- इस परेशानी से बचाने वाले सहज-सरल उपाय हैं। इनसे महिलाओं के प्रजनन हार्मोन्स का स्तर संतुलित रहता है। व्यायाम के साथ-साथ पौष्टिक आहार लेना पीसीओएस से जूझने और बचाने में वाकई मददगार बनता है। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की एक रिसर्च के अनुसार, पीसीओएस के 60 फीसदी मामलों में मरीज का वजन ज्यादा होता है। यही वजह है कि इस मामले में महिलाओं की शारीरिक निष्क्रियता भी एक चिंतनीय पहलू है। दरअसल, शारीरिक सक्रियता के चलते वजन काबू में रहता है। विशेषज्ञों के मुताबिक मोटापे की शिकार महिलाओं द्वारा शरीर का वजन 5 से 10 प्रतिशत कम करने से न केवल मासिक चक्र नियमित होने में मदद मिलती है बल्कि पीसीओएस के लक्षणों में भी सुधार होता है।

बचाव में सहायक अच्छी आदतें

मौजूदा समय में कामकाजी भागदौड़ और घर-परिवार की जिम्मेदारियों से जूझ रही महिलाओं में तनाव, अनियमित खानपान और आराम की कमी आम बात है। लंबे समय तक चलने वाली यह दिनचर्या कई मोर्चों पर सेहत को नुकसान पहुंचाती है। इतना ही नहीं, युवतियों में भी धुआं रहित तम्बाकू उत्पादों का सेवन हो या धूम्रपान, टोबैको उत्पादों का सेवन बढ़ा है। जबकि नार्वे में हुए एक अध्ययन के अनुसार, धूम्रपान से महिलाओं में समय से पहले रजोनिवृत्ति और बांझपन की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।
सिगरेट पीने वाली महिलाओं में मेनोपॉज, धूम्रपान न करने वाली महिलाओं की अपेक्षा 1 से 4 साल पहले होता है। समझना मुश्किल नहीं ऐसी परेशानियां हार्मोनल बदलावों से ही जुड़ी हैं। जिसके चलते शारीरिक बीमारियां ही नहीं बढ़ रहीं, प्रजनन क्षमता पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। ज्ञात हो कि भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं भी धूम्रपान की आदत का शिकार हैं। ऐसे में कुछ हद तक परंपरागत जीवनशैली को अपनाना भी ऐसी स्वास्थ्य समस्याओं से बचाने वाला है। सामाजिक मेलजोल रखना और पैकेज्ड और प्रोसेस्ड फूड के बजाय घर पर बना भोजन करना हार्मोनल गड़बड़ी को काबू में रखता है । भोजन और व्यवहार से जुड़ी दोनों ही बातें महिलाओं कि मनःस्थिति से और शारीरिक सेहत से गहराई से जुड़ी है। भोजन में रागी, ज्वार और बाजरा शामिल करना भी फायदेमंद है। इस समस्या से जूझ रही महिलाओं के लिए कम ग्लायसेमिक इंडेक्स वाले फल, हरी सब्जियां और मोटे अनाज का सेवन हार्मोन संतुलन और मासिक धर्म चक्र को नियंत्रित करने में मददगार रहता है ।

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