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एक दिलकश आवाज़ का यूं ख़ामोश होना

09:00 AM Feb 22, 2024 IST

ज़ाहिद ख़ान

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आख़िरकार, वह आवाज़ ख़ामोश हो गई, जो लाखों लोगों के दिलों पर राज करती थी। जिस आवाज़ से जुड़कर, मुल्क का आम आदमी भी एक अपनापन महसूस करता था। कुछ वक़्त के लिए ही सही, वह अपना ग़म-ओ-रंज भूल जाता था। अब ये आवाज़ उन्हें कभी सुनाई नहीं देगी। आज़ादी के बाद जिन लोगों ने रेडियो को आम आदमी तक पहुंचाया, उसकी लोकप्रियता बढ़ाई, उनमें अव्वल नंबर पर अमीन सायानी का नाम था। जो अब दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह गये। वह कुछ सालों से सेहत की परेशानियों से गुज़र रहे थे। एक दौर था, जब अमीन सायानी रेडियो की आवाज़ थे। उसकी पहचान थे। यूं कहें कि रेडियो की आवाज़ के मायने अमीन सायानी थे। हफ्तेे में एक बार बुधवार के दिन पूरी फैमिली साथ बैठती। रेडियो पर जैसे ही उनका सुपर हिट प्रोग्राम ‘बिनाका गीतमाला’ शुरू होता, तो वक़्त जैसे थम जाता। ऐसी मक़बूलियत बहुत कम रेडियो प्रोग्राम और एनाउंसर को हासिल हुई है। अमीन सायानी के बड़े भाई हामिद सायानी रेडियो सीलोन में प्रोड्यूसर थे। उन्होंने ही अमीन सायानी का रिश्ता रेडियो से जोड़ा। हामिद सायानी के मशविरे पर अमीन सायानी ने ऑल इंडिया रेडियो में हिंदी ब्रॉडकास्टर के लिए आवेदन किया। अब इस बात पर शायद ही कोई यक़ीन करे कि उनकी आवाज़ रेडियो के लिए रिजेक्ट कर दी गई थी। इस घटना के बाद अमीन सायानी थोड़ा निराश हो गए। अपने गाइड और उस्ताद हामिद सायानी के पास पहुंचे, तो उन्होंने अमीन से रिकॉर्डिंग के दौरान रेडियो स्टेशन के हिंदी कार्यक्रम सुनने को कहा। अमीन सायानी ने ब्रॉडकास्टिंग का फ़न सीखने और उसे फॉलो करने में जी-जान लगा दिया।
बीसवीं सदी के पांचवें दशक में रेडियो सीलोन पर हामिद सायानी की पेशकश में अंग्रेज़ी गीतों का एक प्रोग्राम बहुत बढ़िया प्रदर्शन कर रहा था। इस कामयाबी से मुतास्सिर होकर एड कंपनी ऐसा ही एक प्रोग्राम हिंदी फ़िल्मी गीतों का भी करना चाहती थी। अपनी यह चाहत उन्होंने हामिद सायानी को बयान की। हामिद सायानी ने यह प्रोग्राम खु़द न करते हुए अमीन सायानी को इसके लिए राज़ी कर लिया। इस तरह रेडियो पर एक शानदार प्रोग्राम के सफ़र का आग़ाज़ हुआ जिसका नाम ‘बिनाका गीतमाला’ था।
आज से सात दहाई पहले यानी 3 दिसंबर, 1952 को सात गानों की सीरीज़ का पहला प्रोग्राम रिले किया गया जिसे खू़ब पसंद किया गया। पहले ही प्रोग्राम से इसे जो कामयाबी मिली, फिर अमीन सायानी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे रातों-रात आवाज़ की दुनिया में स्टार बन गए। रेडियो सीलोन में पहले प्रोग्राम के बाद, ‘बिनाका गीतमाला’ की तारीफ़ में श्रोताओं के तक़रीबन नौ हज़ार ख़त पहुंचे। यह सिलसिला आगे भी क़ायम रहा। एक दौर ऐसा भी आया, जब हर हफ्ते ख़त की तादाद पचास हज़ार तक पहुंच गई। रेडियो और आवाज़ की दुनिया में पहले किसी प्रोग्राम को इतनी बड़ी कामयाबी नहीं मिली थी।
रेडियो सीलोन और फिर उसके बाद आकाशवाणी के विविध भारती पर प्रसारित ‘बिनाका गीतमाला’ की चालीस बरस से भी ज्यादा समय तक, देश में ही नहीं दुनिया के कई देशों में धूम रही। दुनिया में कोई दूसरा रेडियो या टीवी प्रोग्राम इतने लंबे वक़्त और एक साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान, श्रीलंका और खाड़ी के मुल्कों में मक़बूल नहीं रहा। इस प्रोग्राम के चाहने वाले दक्षिण एशिया, मध्यपूर्व, पूर्वी एशिया और यूरोप के कुछ मुल्कों में भी थे। आज भी रिसर्च का विषय है कि इस कामयाबी के पीछे हिंदी फ़िल्मी नग़मों का जादू था या अमीन सायानी की चहकती आवाज़, या फिर प्रोग्राम को पेश करने का उनका दिलकश अंदाज़। ‘बिनाका गीतमाला’ के अलावा अमीन सायानी ने रेडियो पर जो भी प्रोग्राम पेश किए, सभी कामयाब रहे। अमीन सायानी का नाम ही इन प्रोग्राम की कामयाबी की जमानत होता था। ‘एस कुमार्स का फ़िल्मी मुक़दमा’, ‘फ़िल्मी मुलाकात’, ‘सैरिडॉन के साथी’, ‘मराठा दरबार', 'संगीत के सितारों की महफ़िल’ वगैरह ऐसे कई प्रोग्राम हैं, जो अमीन सायानी की दिलकश आवाज़ और दिलचस्प पेशकश से श्रोताओं के जे़हन में आज भी ज़िंदा हैं। अमीन सायानी ने अपने रेडियो कैरियर के दौरान फ़िल्मी दुनिया के टॉप कलाकारों, गायकों, संगीतकारों और गीतकारों के इंटरव्यू लिए। पचास हज़ार से ज्यादा रेडियो प्रोग्रामों के लिए काम किया और पन्द्रह हज़ार से भी अधिक विज्ञापनों में अपनी आवाज़ दी जो एक रिकॉर्ड है। अमीन सायानी की मक़बूलियत का सबब उनकी गोल्डन वॉयस और ज़बान पर मज़बूत पकड़ थी। हिन्दी-उर्दू से इतर उनकी ज़बान ख़ालिस हिन्दुस्तानी थी। वे जब बोलते, तो खास ख़याल रखते कि उनकी बातें आम आदमी को भी समझ में आएं।
आवाज़ की दुनिया में बेमिसाल योगदान के लिए अमीन सायानी को कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया। बरसों पहले रिकॉर्ड किए गए उनके कई लाजवाब प्रोग्राम आज भी लोग यूट्यूब और 'सारेगामा कारवां' जैसे माध्यमों से सुनते हैं। उनकी आवाज़ से जुड़ना, एक गुज़रे हुए दौर में वापस जाना था। बहरहाल, अमीन सायानी ने पिछले साल ही अपनी बेहतरीन ज़िंदगी के इक्यानवें साल मुकम्मल किए थे। आख़िरी समय तक उनकी आवाज़ में वही दम-ख़म था, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता सेहत उनका साथ छोड़ती जा रही थी। बावजूद इसके वे ज़िंदगी से निराश नहीं थे, भरपूर जीवन जिया। अमीन सायानी के दिल में सिर्फ़ एक हसरत बाक़ी थी, वे अपनी आत्मकथा कम्प्लीट करना चाहते थे। ज़ाहिर है कि इसका इंतज़ार दुनिया भर में उनके लाखों चाहने वालों को भी था। अफ़सोस! इस आत्मकथा के प्रकाशन से पहले, अमीन सायानी इस दुनिया से रुख़्सत हो गए।

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