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साहस और रोमांचभरी आस्था की श्रीखंड यात्रा

12:36 PM Jun 05, 2023 IST
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पुरुषोत्तम शर्मा

देवभूमि हिमाचल प्रदेश की श्रीखंड धार्मिक यात्रा इस बार 7 जुलाई से यात्रा आरंभ हो रही है। वैसे हर वर्ष मानसून की दस्तक के साथ सावन मास सक्रांति के बाद 17 जुलाई से छड़ी यात्रा शुरू होती थी। खास बात यह है कि इस बार न बर्फबारी और बड़े-बड़े ग्लेशियर शिवभक्तों के हौसलों को तोड़ पाएंगे और न मानसून की बौछारें मार्ग में बाधा बनेगी। जिला कुल्लू, किन्नौर और शिमला की सीमा के केंद्र की सबसे दुर्गम चोटी पर स्थित धार्मिक स्थल श्रीखंड के दर्शन के लिए हर वर्ष देशभर से शिवभक्त यहां पहुंचते हैं। यात्रा में स्वास्थ्य जांच के बाद ही यात्रियों को ऊपर भेजा जाता है, लेकिन कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस क्षेत्र में आक्सीजन की कमी और अत्यधिक ठंड के कारण सामान्य स्वास्थ्य के बावजूद जीवन संकट में पड़ जाता है।

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पिछले कुछ वर्षों से प्रशासन ने जगह-जगह पर टेंट लगाकर डॉक्टरों और रेस्क्यू टीम की तैनाती भी रखना शुरू किया है जिससे यात्रा बहुत सुरक्षित और सुखद होने लगी है। सावन मास में होने वाली इस धार्मिक यात्रा में अब अन्य देशों से भी यात्री आने लगे हैं। शिव भक्त जत्थों में यहां पहुंचते हैं और यात्रा में भाग लेते हैं।

भोले बाबा के दर्शन

दुनिया की सबसे कठिन यात्राओं में मानी जाने वाली इस धार्मिक यात्रा में हर वर्ष पचास हज़ार के लगभग श्रद्धालु भाग लेते हैं और 18500 फीट ऊंची चोटी पर स्वयंभू लिंग स्वरूप विशाल चट्टान के रूप में भोले बाबा के दर्शन करते हैं। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य, आध्यात्मिक सुकून और सकारात्मक ऊर्जा तीन से पांच दिन की कठिन यात्रा कर पहुंचे शिवभक्तों की थकान मिटा देती है।

श्रीखंड यात्रा का मार्ग

श्रीखंड यात्रा के लिए 25 किलोमीटर की सीधी चढ़ाई श्रद्धालुओं के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होती है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इस चोटी पर भगवान शिव का वास है। इसका आकार शिवलिंग की तरह है और इसकी ऊंचाई 72 फीट है। यहां तक पहुंचने के लिए सुंदर घाटियों के बीच से एक ट्रैक है। यहां पहुंचने के लिए शिमला और कुल्लू की तरफ से पहले निरमंड पहुंचना पड़ता है और उसके बाद बागीपुल के जाओं गांव से पैदल यात्रा शुरू होती है। यहां से सबसे कठिन डंडा धार की चढ़ाई शुरू होती है जिसमें पहला पड़ाव छातडू, दूसरा कालीघाटी, तीसरा भीमतलाई, चौथा, भीमडवार, पांचवां पार्वती बाग, छठा नैन सरोवर, सातवां भीमबही और फिर आठवां और अंतिम श्रीखंड महादेव स्थल है। इनमें सुविधानुसार यात्री रात्रि ठहराव करते हैं, जिसमें सबसे सरल थाचडू, भीमड़वार और पार्वती बाग ही है।

पौराणिक महत्व

श्रीखंड का स्थान पंच कैलाश में आता है। यह हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है। पौराणिक कथानुसार भस्मासुर ने इस पर्वत पर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न कर वरदान की प्राप्ति की थी। भगवान शिव ने भस्मासुर को किसी के भी सिर पर हाथ रखकर उसे भस्म करने का वरदान दिया था। भस्मासुर अपने वरदान की सत्यता को जांचने के उद्देश्य से भगवान शिव के सिर पर हाथ रखने की कोशिश करने लगा तो तब भगवान शिव वहां से अचानक गायब हो गए। तभी भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके भस्मासुर के साथ नृत्य करते हुए उसका हाथ उसी के सिर पर रखवा दिया और इस प्रकार भगवान शिव की रक्षा की थी। किंवदंतियां हैं कि भस्मासुर इसी पर्वत पर भस्म हुआ था। निरमंड के बायल गांव में स्थित गुफ़ा से एक रास्ता श्रीखंड को जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने भस्मासुर से बचाव को यहां प्रवेश किया था। ये गुफ़ा आज भी मौजूद है। जहां यह गुफ़ा निकलती है वहां आश्चर्यजनक रूप से भस्मासुर के वधस्थल पर पानी लाल रंग का है।

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