निष्काम कर्ममय जीवन का बोध कराते श्रीकृष्ण
आचार्य दीप चन्द भारद्वाज
हमारे धार्मिक शास्त्रों के अनुसार समय काल को सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलियुग इन चार युगों में विभाजित किया गया है। द्वापर युग के महानायक युग पुरुष योगेश्वर श्रीकृष्ण अलौकिक अध्यात्मिक शक्तियों के पुंज थे। भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मथुरा में कंस के कारागार में इन्होंने जन्म लिया इसलिए संपूर्ण भारत वर्ष तथा विश्व में भाद्रपद माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वासुदेव और माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में इस देदीप्यमान योगी विभूतियों से विभूषित श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। कहा जाता है कि ईश्वरीय प्रेरणा से कारागार के सभी दरवाजे स्वयं खुल गए थे।
द्वापर युग की जिन विकट परिस्थितियों में भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ, चारों तरफ कंस के वर्चस्व से त्राहिमाम, अन्याय तथा प्रजा में हाहाकार, भय व्याप्त था। भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण आसुरी, पैशाची प्रवृत्ति के प्राणियों के सर्वनाश हेतु तथा धर्म तत्व की स्थापना हेतु हुआ। दिव्य-सत्ताओं का पृथ्वीलोक पर अवतरण सृष्टि की वचनबद्धता से प्रेरित माना गया है। जब प्राकृतिक व्यवस्था का उल्लंघन हो, नैसर्गिक सामाजिक नियमों का उल्लंघन तथा नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा हो तो सृष्टि में सामान्य संतुलन का अनिवार्य भौतिक परिवर्तन दैवीय विधान है।
‘धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।’ अर्थात् साधु, सज्जनों, मुनियों की रक्षा, दुष्टों के नाश के लिए तथा धर्म की स्थापना के लिए दिव्य-शक्तियों का प्रत्येक युग में जन्म होता है। सृष्टि में जब भी अनिष्टकारी शक्तियां प्रबल हो उठती हैं तब उनका प्रतिकार करने वाली शक्तियां भी प्रकट हो जाती हैं। योगीराज श्रीकृष्ण उसी शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। आध्यात्मिक ज्ञान की निधि, कुशल राजनीतिज्ञ होते हुए भी श्रीकृष्ण ने अपनी शक्तियों का प्रयोग मानव उत्थान के लिए किया। अलौकिक शक्तियों से संपन्न होने के उपरांत भी वह व्यवहार से सरल, निश्चल तथा सामान्यजनों के समान व्यवहार करने वाले हैं। बाल्यकाल में मटके तोड़ना, माखन चोरी करना, ग्वालों के साथ खेलना ये सभी कार्य उनकी व्यक्तित्व की सरलता तथा निश्चलता के प्रतीक हैं।
भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकली श्रीमद्भागवत गीता वेदों, उपनिषदों और दर्शनों का सार है। सुप्रसिद्ध ग्रंथ गीता के प्रणेता भगवान योगेश्वर श्रीकृष्ण के गीता तत्व निष्काम कर्म सिद्धांत भारत ही नहीं, पूरे विश्व में सुविख्यात हैं। असंख्य प्राणी जिनके पावन नाम मात्र को लेकर अपने जीवन को धन्य समझते हैं, ऐसा सोलह कलाओं से परिपूर्ण योगेश्वर के धरती पर प्रकट होने का यह जन्माष्टमी प्रकटोत्सव है।
संपूर्ण भारत वर्ष में तथा विश्व के अनेक देशों में जन्माष्टमी के इस आध्यात्मिक महापर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। बांग्लादेश के ढाकेश्वरी मंदिर, पाकिस्तान के स्वामीनारायण मंदिर, नेपाल, इंडोनेशिया, कंबोडिया समेत अनेक देशों में इस्कॉन मंदिर के माध्यम से विभिन्न प्रकार से श्रीकृष्ण के वंदन एवं आराधन के माध्यम से यह उत्सव मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में बड़ा भव्य आयोजन होता है। इस दिन वृंदावन, ब्रज, गोकुल मथुरा का संपूर्ण वातावरण कृष्णमय हो जाता है। भक्तजन व्रत-उपवास के माध्यम से रात्रिकाल में श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं।
अमर ग्रंथ गीता में वर्णित श्रीकृष्ण का स्वर्णिम चिंतन संपूर्ण विश्व के मानसपटल पर चेतना, ऊर्जा तथा आध्यात्मिक पुरुषार्थ का संचार करने वाला है। योगीराज श्रीकृष्ण ने भक्ति योग, कर्म योग, सांख्य योग, ज्ञान योग के माध्यम से संपूर्ण मानव जाति के मानसिक तथा आत्मिक उत्थान का मार्ग प्रस्तुत किया है। श्रीकृष्ण कर्तव्य पालन का आनंदपूर्ण मार्ग हैं। जन्माष्टमी की काली अंधियारी रात्रि में श्रीकृष्ण का आगमन जीवन में आशा, विश्वास, माधुर्य, निष्कामता एवं कर्ममय जीवन का बोध कराता है। जब हम स्वयं अर्जुन की तरह अपने जीवन के झंझावातों में संशयों, चिंताओं, तनाव से ग्रस्त हो जाते हैं तो योगेश्वर का यह उत्कृष्ट चिंतन हमें आत्मिक और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण करता है।