थोड़ा दिखावा भी करें रिश्ते जीवंत रखने को
शिखर चंद जैन
कई बार आप अपने पति, सहेली या किसी रिश्तेदार की बातों को बहुत दिलचस्पी से सुनती हैं और मुस्कुराती हैं, लेकिन वास्तव में आपको उनकी बातें बोरिंग लग रही होती हैं। सिर्फ उनका मन रखने के लिए आप ऐसा करती हैं। एक तरह से यह एक दिखावटी व्यवहार होता है। लेकिन व्यवहार विशेषज्ञों के मुताबिक़ रिश्तों की सरसता बनाए रखने और उन्हें सजीव रखने के लिए कई बार ऐसा बनावटी व्यवहार भी जरूरी हो जाता है। अकसर अपने करीबी लोगों के दायरे से बाहर भी सब धैर्यपूर्वक किसी की बात सुनने की औपचारिकता निभाते हैं। कई बार तो कोई शेखी बघार रहा हो तब भी आप सभ्यता का तकाजा मानकर हां में हां मिला देते हैं, न चाहते हुए भी मुस्कुराते हैं, प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करते हैं, शांत रहने की एक्टिंग करते हैं। मकसद होता है बेवजह का टकराव टालना। बेशक दिखावे यानी औपचारिकता के लिए ही हो, ऐसी सहजता नजदीकी संबंधों के मामले में भी बरती जाये तो रिश्ते हमेशा सरसब्ज रहने की संभावना बढ़ जाती है। बेवजह व हर समय ऐसी खरी-खरी कहने से भी क्या हासिल होगा कि आपस में कड़वाहट पैदा हो जाये।
रिश्तों को चाहिए देखभाल
रिश्ते खुद-ब-खुद विकसित नहीं होते। इन्हें आपकी देखभाल, धैर्य, सहेजने की कोशिशों और कौशल की जरूरत होती है। विलियम शेक्सपियर ने ठीक कहा था कि यह दुनिया एक रंगमंच है और हम सब इसके कलाकार हैं। हम सब अपने वास्तविक जीवन में कई तरह की भूमिकाएं निभाते हैं। हर किरदार में हमें एक कुशल अभिनेता की तरह पूरी तरह डूब जाना पड़ता है। कोई व्यक्ति किसी को खुश रखने के लिए जरा सी देर अभिनय कर ले और इससे दोनों को कोई नुकसान न पहुंचता हो, तो इसमें कोई बुराई भी नहीं। बस मन में किसी प्रकार का छल-कपट या धोखाधड़ी की नीयत न हो।
व्यावहारिक नहीं है ज्यादा स्पष्टवादिता भी
हर परिस्थिति में मन की भावनाओं का एकदम सही-सही और खुलकर इजहार करना न तो व्यावहारिक होता है और न ही सामाजिक जीवन में स्वीकार्य है। इसलिए हमें कई बार किसी दोस्त या रिश्तेदार में झूठी दिलचस्पी, झूठी सहानुभूति या झूठी संवेदना दिखाने को मजबूर होना पड़ता है। जरूरी नहीं कि जब कोई सास अपनी बहू को पीहर की कथाएं सुनाने बैठ जाए, तो बहू को सचमुच दिलचस्पी हो, लेकिन सास का मन रखने के लिए उसे ऐसा करना पड़ता है। ठीक इसी प्रकार जब बहू अपने भाई या मम्मी-पापा के आने की खबर से उत्साहित हो, तो घर के दूसरे सदस्यों को भी इच्छा हो या न हो, पर पूरे जोशो खरोश से उनकी अगवानी की व्यवस्था करनी पड़ती है। यही दुनियादारी है और यही व्यवहार कुशलता भी है। कई बार किसी रिश्तेदार या किसी परिजन की कोई आदत हमें अच्छी न भी लगे तो उसे सहन भी करना पड़ता है और उसके सामने सहज भी रहना पड़ता है।
कृत्रिम प्रतिक्रिया है जरूरी
कोलकाता के फोर्टिस अस्पताल में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. संजय गर्ग कहते हैं, ‘रिश्तों में फेक रिएक्शंस बेहद जरूरी होते हैं। जैसे कई बार जब पति या पत्नी अपनी पार्टनर पर खिचखिच कर रहे होते हैं, तो पार्टनर को बहुत खीझ महसूस होने के बावजूद शांत रहकर उसकी हां में हां मिलाना पड़ता है। इससे माहौल को शांत रखने में मदद मिलती है और कलह को टाला जा सकता है। रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति या सेल्समैन को मजबूरन मुस्कुराना पड़ता है जबकि जरूरी नहीं कि उसका मूड हर वक्त एक जैसा ही हो।
प्रोफेशनल लाइफ में भी जरूरी दिखावा
दी गार्डियन के स्तंभकार जीन हाना एडेलस्टीन कहते हैं किसी भी व्यक्ति के नकचढ़े रवैये, बुरी आदतों, खिचखिच या गुस्से से सामने वाले व्यक्ति का भी चिढ़ जाना बेहद स्वाभाविक है लेकिन व्यवहार कुशल लोग ज्यादातर मामलों में खुद को संभाल लेते हैं और रिश्तों को सहज व सरस बनाए रखने के कारण वे सहजता का मुखौटा ओढ़कर बात को खत्म करने की कोशिश करते हैं। ऐसा वे कभी प्यार के कारण, कभी मजबूरी के कारण तो कभी अपनी सज्जनता की वजह से भी करते हैं।