मार्मिक कथानक की लघुकथाएं
सुशील कुमार फुल्ल
सागर में गागर भरने की कला है लघु कथा। कथ्य के मर्म को लेकर शब्दों की जादूगरी से बुनी लघुकथा सर्वाधिक लोकप्रिय है। सुशील कालरा के लघुकथा संग्रह ‘जि़न्दगी कुछ कहती है’ में 65 लघुकथाएं संकलित हैं, जो मूलतः तनावग्रस्त एवं भागम-भाग की जिन्दगी में से कुछ ऐसी झलकियां लेकर आती हैं, जो व्यक्ति एवं समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। उनमें मनुष्य के व्यवहार की विडम्बनाएं और उसकी सीमाओं तथा अपेक्षाओं का सजीव चित्रण हुआ है।
सुशील चावला सलीके से अपनी बात को सहजतापूर्वक यथार्थपरक ढंग से चित्रित करते हैं। वे अनावश्यक विस्तार में न जाकर अपने अनुभव-वैभव के आधार पर लाघवता से रेखांकित करते हैं।
‘मूक विद्रोह’ कहानी घरों में सफाई का काम करने वाली बाइयों की समस्या को गम्भीरता से उजागर करती है। मालकिन की क्रूरता को भी रेखांकित करती है। कोई मरे या जिए, मालकिन को तो काम चाहिए। ‘लिव इन रिलेशनशिप’ कहानी में नायक-नायिका या कहें पति-पत्नी को यह विश्वास ही नहीं हो पाता िक वह सच में विवाहित हैं भी या नहीं। मन्दिर में किया गया विवाह भी उन्हें पूरी तरह आश्वस्त नहीं कर पाता। यह एक श्रेष्ठ मनोवैज्ञानिक लघु कथा है। पितर-पूजा में व्यंग्य बड़ा तीखा है। जब हमारे मां-बाप जिन्दा होते हैं, तो हम ध्यान नहीं देते और उनके मरने के बाद हम प्रपंच रचते हैं। प्रस्तुत कहानी का नायक पितर-पूजा में बैठा है और उस की मां सामने के कमरे में दम तोड़ रही है लेकिन पंडित उसे उठने नहीं देते कि पूजा भंग हो जाएगी। जब वह उठता है तो देखता है कि मां के प्राण पखेरू उड़ चुके हैं।