ज़मीर को झकझोरती लघुनाटिकाएं
डॉ. देवेंद्र गुप्ता
विवेच्य पुस्तक ‘मनमंच के रंग’ अमृत लाल मदान के सुदीर्घ लेखन शृंखला की सब से नई कड़ी है। अमृतलाल मदान कवि, कहानीकार होने के साथ-साथ ऐसे नाट्यकार हैं जिनका मानना है कि एक सम्पूर्ण नाटक साहित्य की समस्त शैलियों को समाहित करता हुआ लोक के समूचे चरित्र का जीवंत दस्तावेज होता है। लेकिन वे पुनर्विचार करते हुए लिखते हैं कि क्या आजकल आपाधापी के इस युग में इतना समय है आप के पास कि ये नाटक देखे-सुने जायें! तभी यह पुस्तक लघु नाटिकाओं के साथ हाजिर हैं। पुस्तक का शीर्षक वस्तुत: इसी मंशा को देखकर रखा गया है कि इस किताब में संगृहीत तीस लघु नाटिकाओं के माध्यम से आप अर्थात् पाठक प्रेक्षक बनकर इनको अपने मन के मंच में खेलता हुए देख सकें।
इन लघु नाटिकाओं के वस्तुविन्यास और नाट्य शैली को समझें तो ज्ञात होता है कि मन के मंच पर खेलने के साथ-साथ रंगशाला में भी खेलने का भरपूर अवसर देती है। इसके अतिरिक्त इन को पढ़ते हुए आपकी कल्पना में ऐसा मंच उपलब्ध होता है जहां दर्शक भी है, रेडियो की ध्वनियां भी हैं और टीवी की स्क्रीन भी। अर्थात् टीवी, रेडियो और मंच के लिए यह लघुनाटिकाएं श्रव्यता और दृश्यात्मकता से भरपूर हैं। लघु नाटिकाओं में समय की विद्रूपताओं व विसंगतियों को त्वरा के साथ उकेरा गया है। यह लघुनाटिकाएं मात्र दो-तीन पात्रों और एकल अभिनय पद्धति से युक्त हैं जो नाट्य निर्देशकों को रंग परिकल्पना के साथ प्रयोग करने की छूट देती है। सुगठित रंग शिल्प के माध्यम से इनमें निहित कथ्य को पाठकों को चार-पांच मिनट का समय लगेगा और रंगशाला में मात्र 20 मिनट में प्रस्तुति दी जा सकती है। विश्वास है कि प्रयोगशील रंगकर्मी व नाट्य निर्देशक इन लघुनाटिकाओं में अभिव्यक्त सामयिक अनुभूतियों को अत्यंत व्यावहारिकता से दर्शकों और सहृदयों के समक्ष रख सकेंगे। कम पात्रों और मंचीय सामग्री के साथ यह लघुनाटिकाएं समाज की मानसिकता में बदलाव लाने व जमीर को झकझोरने का उद्देश्य प्राप्त कर सकती हैं।
अमृतलाल मदान ने बड़े नाटकों विशेष कर तीन अंकीय रंग नाटक की अपेक्षा लघु रूप में नाट्य विधा को पाठकों के समक्ष पूर्ण गरिमा और प्रभावोत्मक्ता के साथ प्रस्तुत किया है।