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मोहब्बत की दुकान और नफरत की मंडी

08:30 AM Jul 07, 2023 IST
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चेतनादित्य आलोक

कहते हैं कि समय के साथ शब्दों के हाव-भाव और महत्व भी बदलते रहते हैं। अब ‘प्यार’ शब्द को ही लीजिये। यह प्यार शब्द जीवन के सबसे महत्वपूर्ण आयामों को परिलक्षित एवं परिभाषित करने वाले शब्दों में से एक होता है। हालांकि, इस शब्द का उपयोग बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक प्रायः हर उम्र में किया जाता है, लेकिन युवावस्था यानी यौवन की दहलीज पर चढ़ते ही इसके व्यवहार, तात्पर्य, महत्व और मानदंड आदि बिल्कुल बदल जाते हैं। यौवन का यह ‘प्यार-मोहब्बत’ हमारे पूरे जीवन पर ऐसी गहरी छाप छोड़ जाता है, जो आजीवन मिटाये नहीं मिटता। यह यौवन किसी के जीवन में थोड़ी जल्दी आ जाता है तो किसी के जीवन में विलम्ब से आता है। इसी प्रकार यह किसी पर से जल्दी उतर जाता है तो किसी पर बहुत देर तक चढ़ा रहता है और कभी-कभी तो कुछ लोगों पर से यह उतरने का नाम ही नहीं लेता। विशेषकर वीआईपी लोगों पर, उनमें भी राजनीतिक वीआईपी लोगों पर यौवन थोड़ा अधिक ही मेहरबान रहता है।
इसीलिए तो उम्रदराज राजनीतिक वीआईपीज भी हंसते-मुस्कुराते प्यार-मोहब्बत का बोझ अपने सिर पर उठाये फिरते हैं। पहले के जमाने में प्यार को बहुत कठिन और जोखिमभरा कार्य माना जाता था। तभी तो नायिकाएं चेताती रहती थीं ‘बाबुजी धीरे चलना... प्यार में जरा संभलना... बड़े धोखे हैं इस राह में।’ लेकिन फिर युग बदला और प्यार के तात्पर्य, महत्व और मानदंड बदले। पहले जहां प्यार में वीआईपीज़ की सफलता गारंटिड मानी जाती थी, वहीं अब इसमें छोटी आय और कम रुतबे वाले लोगों के लिए भी भरपूर संभावनाएं मौजूद हैं। इसी प्रकार पहले जहां लोग अपने प्यार-मोहब्बत को छिपाकर रखते थे, वहीं अब इसे सार्वजनिक रूप से सेलिब्रेट करना प्रतिष्ठा का सूचक माना जाने लगा है। यही नहीं, पहले जहां एक ही प्यार में लोग हिमालय पहाड़ चढ़ने-सा हांफने लगते थे, वहीं अब लोग प्यार करने में गिनती नहीं करते। मानो प्यार नहीं सामान हो गया, जेब की क्षमता और उपयोग की इच्छा के अनुसार खरीद लिया।
वैसे ठीक ही है, क्योंकि अब तो प्यार-मोहब्बत का संबंध दिल से कम, दुकानों से अधिक होने लगा है। तभी तो लोग आजकल खुशी से इसकी दुकानें सजाने लगे हैं, लेकिन एक बात अब तक समझ में नहीं आई कि प्यार-मोहब्बत की दुकानें सजाने के लिए भला नफरत की मंडी लगाने की क्या आवश्यकता है। एक हकीकत यह भी कि प्यार कम अथवा नहीं होने पर भी नफरत के मुकाबले में वह दिखाई वास्तविकता से अधिक पड़ता है। इसीलिए आजकल प्यार-मोहब्बत का प्रदर्शन करने वाले लोग नफरत की मंडी अपने साथ ही लेकर चलने लगे हैं, क्योंकि क्या भरोसा, जहां वे जा रहे हैं, वहां नफरत की मंडी मिले, न मिले।

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Tags :
‘मोहब्बतदुकान’
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