चौंकाते मुख्यमंत्री
हिंदी हृदय प्रदेश के तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों ने जैसे सबको चौंकाया, कमोबेश उसी तरह इन तीन भाजपा के बहुमत वाले राज्यों में मुख्यमंत्रियों के चयन ने भी चौंकाया। कहने को तो दलील दी जाती रही है कि विधायकों की बैठक में फैसला लिया जाएगा, लेकिन इनकी घोषणाओं में हुआ विलंब इशारा करता है कि आलाकमान ने नामों को अंतिम रूप देने में खासी मशक्कत की है। बहरहाल, तमाम कयासों व संभावनाओं को दरकिनार करते हुए छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश व राजस्थान में ऐसे नामों पर मुख्यमंत्री होने की मोहर लगी जो कहीं चर्चा में नहीं थे। दरअसल, इस तरह चौंकाना भाजपा सुप्रीमो व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आदत रही है। हरियाणा में मनोहर लाल, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ, असम में हिमंत बिस्वा सरमा और उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाते समय भी कुछ इस तरह चौंकाया गया था। बहरहाल, कई दिन की प्रतीक्षा के बाद मुख्यमंत्री का दायित्व जिन नेताओं को सौंपा गया है, उन्हें पीढ़ी के बदलाव के तौर पर भी देखा जा रहा है। निस्संदेह, नये लोगों को मौका मिलने से नया उत्साह होता है और नई उम्मीदें भी। बहरहाल, भाजपा की दूरगामी रणनीति इन चेहरों के चयनों से जाहिर होती है। कहीं न कहीं, बिहार से जाति गणना, आरक्षण और वंचित वर्ग को नेतृत्व देना का जो शोर उठा था, उसे भांपकर भाजपा ने अपना घर ठीक करने की रणनीति को अंजाम दे दिया। छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेता के रूप में विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। राज्य में वंचित समाज की सत्ता में भागीदारी के साथ झारखंड व ओडिशा को भी ध्यान में रखा गया है, जहां बड़ी संख्या में आदिवासी मतदाता हैं। वहीं मध्यप्रदेश में संघ की पृष्ठभूमि के वे मोहन यादव मुख्यमंत्री बने, जिनकी इस पद के लिये कोई चर्चा नहीं थी। हालांकि, भाजपा को रिकॉर्ड जीत दिलाने में भूमिका निभाने वाले शिवराज चौहान को भी मुख्यमंत्री पद का बड़ा दावेदार माना जा रहा था।
निस्संदेह, बिहार व यूपी में यादव वर्चस्व की राजनीति को टक्कर देने के लिये मोहन यादव की ताजपोशी को एक तुरुप के पत्ते की तरह देखा जा रहा है। वहीं दूसरी ओर राजस्थान में मुख्यमंत्री के रूप में अप्रत्याशित रूप से भजनलाल शर्मा का चयन किया गया। राजस्थान में सांगानेर विधानसभा से पहली बार चुने गये भजनलाल भारतीय जनता पार्टी में प्रदेश संगठन मंत्री रहे हैं। एक तरफ जहां दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे सिंधिया की ताजपोशी को लेकर तमाम कयास लगाए जा रहे थे, उनकी तरफ से आलाकमान पर दबाव बनाने की कोशिशें भी नजर आई थीं। लेकिन बाजी अमित शाह के करीब माने जाने वाले भजन लाल शर्मा ने मारी। वहीं राज्य में अन्य समीकरणों को साधने के लिये राजवंश से जुड़ी रही दीया कुमारी और प्रेम चंद बैरवा को भजनलाल कैबिनेट में उप मुख्यमंत्री बनाया गया है। इससे पहले मुख्यमंत्री पद की दौड़ में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, सीपी जोशी, स्पीकर ओम प्रकाश बिरला और महंत बालकनाथ के नाम उछलते रहे। बहरहाल, तीन राज्यों में आदिवासी, ओबीसी व ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों की ताजपोशी राजनीति में सर्वसमावेशिता की नीति का ही विस्तार है। पार्टी ने धीरे से एक पीढ़ी का नेतृत्व परिवर्तन करके नये लोगों के लिये नई उम्मीदें जगायी हैं। निस्संदेह, इन नेताओं की ताजपोशी के केंद्र में 2024 का महासमर ही है। संदेश देने का प्रयास किया गया है कि सबका साथ, सबका विकास पार्टी का लक्ष्य है और उसे हकीकत में तब्दील करने के लिये पार्टी प्रतिबद्ध है। पार्टी ने दिखा दिया है कि राजस्थान व मध्यप्रदेश में युवाओं को सत्ता सौंपने के जिस प्रयास में राहुल गांधी सफल न हो सके, भाजपा ने उसे खामोशी से अंजाम दे दिया। यदि वे समय रहते कर पाते तो ज्योतिरादित्य सिंधिया व सचिन पायलट के नेतृत्व में इन राज्यों की तस्वीर अलग हो सकती थी। बहरहाल, तमाम पुराने मुख्यमंत्रियों व राजनेताओं की उछल-कूद के बावजूद भाजपा आलाकमान ने यह ठोस पहल करके बता दिया है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व सक्षम व पूरी तरह निर्णायक ही है।