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मुफ़लिसी-बेकारी पर पैनी कलम

06:34 AM Jan 07, 2024 IST

सुशील ‘हसरत’ नरेलवी

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‘ख़यालों में नया सूरज’ कवि नन्दी लाल ‘निराश’ का पांचवां ग़ज़ल-संग्रह है, जिसमें 101 ग़ज़लों का समावेश है। इन ग़ज़लियात में गिरती नैतिकता, दम तोड़ती लोक-लाज, निरंतर निम्नस्तर की ओर अग्रसर नैतिक मूल्यों को पछाड़ने की होड़ के विरुद्ध स्वर प्रस्फुटित होते हैं तो भ्रष्ट राजतंत्र में व्याप्त जी-हुज़ूरी पर तंज़ करते हुए खोखली होती व्यवस्था को आड़े हाथों लेते हैं शायर नन्दी लाल ‘निराश’। जनतंत्र की आड़ में परिवारवाद और उस की मनमानी राजशाही की परतें भी उधेड़ते हैं। इन ग़ज़लियात के कुछेक अश्आर। चन्द अश्आर ग़ौर फरमाएं :-
‘मंच पर बस एकता के तफ्सरे होते रहे/ भीड़ में हर आदमी के हाथ में खंजर मिला।’ ‘पूछने वाला न कोई था जहां उसका हवाल/ रो रहा था तंत्र बेबस रोड पर कुचला हुआ।’ ‘राज़ छुपे हैं जाने कितने खंडहर की दीवारों में/ इश्क मुहब्बत उल्फ़त नफऱत सब उसकी मीनारों में।’
इश्क़-मिजाज़ी के रंग में सराबोर कुछेक अश्आर में नज़ाक़त-ओ-शरारत का अक्स देखने को मिलता है तो वहीं दूसरी ओर बेवफ़ाई-ओ-बेमुरव्वती की चोट से उभरती टीस की बयानी भी है इन अश्आर में :-
‘जाने कितने चले गए कितने पागल हो जाएंगे/ अंगुली रखकर हंसा न करिए यों अपने रुखसारों में।’ ‘प्यार में और क्या दिया आखिर/ तूने बरबाद कर दिया आखिर।’
मुफ़लिस के दर्द से भी दो-चार होते रहते हैं कुछेक ग़ज़लियात के अश्आर। रह-रहकर कवि गरीबी, बेकारी से पनपी लाचारी पर कटाक्ष करने से नहीं चूकता। चन्द अश्आर :-
‘दुख गरीब की झोपड़ियों में पाल्थी मारे बैठा है/ कैद हो गया राजमहल की सुख समृद्धि अटारी में।’ ‘आप तो सरकार के हैं आप मालामाल हैं/ झोपड़ी वाले सड़क पर कर रहे हड़ताल हैं।’ ‘झोपड़ी में एक तिनके के अलावा कुछ नहीं/ भूख बैठी घूरती है राज रानी की तरह।’
इस संग्रह के कथ्यबोध की यदि बात की जाए तो कवि आमजन के दर्द को महसूस करते हुए मुफ़लिसी, बेकारी, भुखमरी के सितम, जि़न्दगी के झमेलों, राजनीति के प्रपंचों, अपनों के गिले-शिकवों पर पैनी कलम चलाता है तो मनोवैज्ञानात्मक एवं दार्शनिक भाव भी इन ग़ज़लियात में हिलोरे लेते हैं।
पुस्तक : ख़यालों में नया सूरज कवि : नन्दी लाल प्रकाशक : श्वेतवर्णा प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 199.

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