शरीफ की शराफत
चौतरफा बदहाली का त्रास झेल रहे पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की वापसी के गहरे निहितार्थ हैं। जेल की सजा काट रहे नवाज इलाज के लिये ब्रिटेन गये थे और चार साल आत्मनिर्वासन में रहने के बाद पाकिस्तान लौटे हैं। जाहिर है देश में इमरान खान के प्रभाव को कम करने के लिये उनकी वापसी सेना को मुफीद लगती है। जिनका उपयोग संभवत: जनवरी में पाकिस्तान में होने वाले आम चुनाव में अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने यानी इमरान खान का प्रभाव कम करने के लिये किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि नवाज शरीफ 14 साल की सजा काटते हुए चिकित्सा उपचार हेतु 2019 में लंदन चले गये थे। अब पाकिस्तान मुस्लिम लीग सुप्रीमो 73 वर्षीय अनुभवी राजनेता नवाज शरीफ को उम्मीद है कि वे किसी तरह प्रधानमंत्री के रूप में चौथी पारी खेल सकें। उनके आत्मविश्वास की वजह है कि पाकिस्तान की राजनीति का पर्दे के पीछे संचालन करने वाली सेना से फिलहाल उनके रिश्ते सौहार्दपूर्ण हैं। निस्संदेह, सेना के जनरलों से उनके रिश्ते उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ जब पिछले चुनाव में उन्होंने सेना पर अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी इमरान खान का समर्थन करने का आरोप लगाया था। लेकिन मौजूदा स्थिति यह है कि सेना से टकराव के चलते इमरान खान इन दिनों जेल में हैं। लेकिन पाकिस्तान में उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ी है। इमरान की लोकप्रियता कम करने के लिये ही लंदन से नवाज शरीफ को पाकिस्तान वापस बुलाया गया है। उन्हें अब कोर्ट से भी राहत मिल गई है। हालांकि, ताजा घटनाक्रम से जुड़े तमाम किंतु-परंतु हैं, लेकिन सेना व अदालत की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। वहीं एक बात तो तय है कि इमरान सरकार गिरने के बाद 2022 से इस साल की शुरुआत तक प्रधानमंत्री के रूप में काम करने वाले शहबाज शरीफ को अनुभवी राजनेता नवाज शरीफ की वापसी के बाद आम चुनाव में कुछ बढ़त जरूर मिलेगी। हालांकि, पाकिस्तान में खासे लोकप्रिय इमरान खान के जनाधार में सेंध लगाना शरीफ बंधुओं के लिये एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।
यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि आज पाकिस्तान को सुरक्षा, आर्थिक व राजनीतिक संकटों का सामना करना पड़ रहा है। जिसके मूल में पर्दे के पीछे से खेली जाने वाली पाकिस्तान सेना के जनरलों की बड़ी भूमिका भी रही है। जनरल अय्यूब खान, जनरल जिया उल हक व जनरल मुशर्रफ जैसे सेना के महत्वाकांक्षी मुखिया लोकतंत्र को बेदखल कर बाकायदा सत्ता सुख भोगते रहे। लेकिन फिलहाल पाक तमाम तरह के संकटों से जूझ रहा है। बढ़ते कर्ज के दबाव व रिकॉर्ड तोड़ महंगाई से जूझते पाकिस्तान को राहत देने के लिये नवाज शरीफ ने भारत को लेकर जो बयान दिया है उसके गहरे निहितार्थ हैं। उन्हें इस बात का अहसास है कि भारत एक पड़ोसी के रूप में मददगार हो सकता है। तभी भारत को लेकर परोक्ष रूप से उन्होंने कहा कि कोई भी देश अपने पड़ोसियों से लड़ते हुए प्रगति नहीं कर सकता। निस्संदेह, विगत के अनुभवों के मद्देनजर भारत एक सतर्क प्रतिक्रिया ही देगा। लेकिन यह बात तय है कि भारत की सीमाओं पर आतंकवादियों की सक्रियता और नशे की जहर की खेप भेजने की साजिश बंद किये बिना दोनों देशों के संबंध सामान्य होना मुश्किल ही है। इसकी वजह यह है कि जब भी पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकारों ने भारत के साथ संबंध बेहतर बनाने की कोशिश की, सेना को यह रास नहीं आया। हालांकि, इसमें दो राय नहीं कि भारत में कुछ राजनीतिक दलों को पाकिस्तान विरोध जनाधार बढ़ाने का जरिया नजर आता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भौगोलिक रूप से भारत व पाकिस्तान पड़ोसी हैं, जिसे बदला नहीं जा सकता। तो बेहतर होगा कि दोनों देशों में अच्छे संबंध बनाने की कोशिश हो। पाकिस्तान के कद्दावर नेता नवाज शरीफ यदि इस दिशा में पहल करने की बात करते हैं तो इसका सकारात्मक प्रभाव दोनों देशों के संबंधों पर पड़ सकता है। लेकिन सेना का दखल कई तरह के सवालों को जन्म भी देता है।