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प्रेम की शेम, राजनीति की अनीति

09:00 AM Feb 22, 2024 IST

शमीम शर्मा

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आजकल की तथाकथित प्रेमिकाएं कब किसकी बांहों में जाकर झूल जायें कुछ पता नहीं। वैसे ही जैसे अच्छी-भली चलती हुई सरकार अचानक पाला बदल कर किस को समर्थन देने लग जाये, कहा नहीं जा सकता। अब प्रेमियों और नेताओं के पाप का घड़ा नहीं रह गया बल्कि यह तो विशाल आकार का ड्रम बन चुका है और कुछ पता नहीं किस दिन यह ड्रम लीक करेगा। दरअसल प्रेम और राजनीति में जो गिरावट आई है उसे व्याख्यायित करना किसी के बस की बात नहीं। आज के दिन मुट्ठीभर भी नेता ऐसे नहीं हैं जिन पर आंख मींच कर विश्वास किया जा सके और एक भी प्रेमी या प्रेयसी का नाम सुनने में नहीं आ रहा जिसके सम्पूर्ण समर्पण के गीत गाये जा सकें। सच्चे प्रेम जैसी कोई चीज अब दुनिया में दुर्लभ है। इतिहास में दर्ज नामी प्रेमी लैला-मजनूं या सोहनी-महीवाल जैसे तो अब दूसरे लोक के वासी हैं। ठीक वैसे जैसे अब गांधी, पटेल, शास्त्री जी जैसे नेता नहीं रहे।
जातिवाद, परिवारवाद और सामंती सोच ने राजनीति की सारी ईमानदारी को लील लिया है। अपने स्वार्थ को आज के नेता झीने से आंचल से ढके रखते हैं कि किसी को पता ही न चले कि भीतर खाते चल क्या रहा है। खुरदरा यथार्थ यही है कि नेता का जो रूप जमीन पर उससे अलग रंगरूप धरती के नीचे समाया है। आज की राजनीति में शुद्ध हृदय भरत कहां है जो साम्राज्य संभालने की प्रार्थना करने राम के पास पहुंच गये थे।
आज अगर कलियुग में भरत जैसे भाई होते तो मंथरा को किसी उच्च पद पर बिठा देते और अपनी वनवास देने वाली मां के चरण धो-धोकर पीते। वनवास अवधि चौदह से चौंतीस कर देते और बड़े भाई के आत्मीयों का देश निकाला भी पक्की बात होती। अब राजनीति का एक ही लक्ष्य है- सत्ता हथियाना। सिंहासन को गले लगाना। कुछ स्वार्थी नेताओं की नीयत वैसे तो हमेशा से ही तलवे चाटने की रही है। पर अब तो वे तलवे के साथ-साथ उस फर्श को चाटने पर भी आमादा हैं जहां जहां तलवे धरे जाते हैं। प्रेम में भी अब सिर्फ वासना रह गई है और कब कौन किस के टुकड़े-टुकड़े कर दे, कहना कठिन है।
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एक बर की बात है अक नत्थू अपणी दाद्दी रामप्यारी धोरै आकै बोल्या- दाद्दी एक बर ‘टे’ बोलकै दिखाइये। रामप्यारी नैं बोलकै दिखा दिया टे। नत्थू फेर बोल्या- एक बर और बोलकै दिखा टे। रामप्यारी खीझते होये बोल्ली- तेरा मात्था खराब है के, टे टे क्यूं बुलवा रह्या है? नत्थू बोल्या- मेरी मां अपणी सहेल्ली तै कहवै थी अक बेरा नीं इसकी दाद्दी कद टे बोल्लैगी।

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