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पाक में फिर शहबाज

07:54 AM Mar 06, 2024 IST
पाक में फिर शहबाज
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पाकिस्तान आम चुनाव में सेना व तंत्र की मिलीभगत से जिस तरह धांधली हुई, उसे सारी दुनिया ने देखा। इसके बावजूद संख्या बल में जेल में बंद इमरान खान के समर्थक उम्मीदवारों ने बाजी मारी। यही वजह है कि चुनाव के उपरांत सरकार बनाने के जोड़तोड़ में प्रधानमंत्री पद का फैसला चुनाव के चार सप्ताह बाद ही हो सका। लेकिन चुनाव के नतीजे इस तरह आए कि पीएमएल-एन के सुप्रीमो नवाज शरीफ भी प्रधानमंत्री बनने का साहस नहीं जुटा सके। सेना ने पीएमएल-एन के साथ तालमेल बैठाकर लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे नवाज शरीफ को न केवल पाकिस्तान लौटने की इजाजत दी बल्कि उन पर दर्ज मुकदमों को इस स्थिति में पहुंचा दिया ताकि वे चुनाव लड़ सकें। लेकिन सेना व पीएमएल-एन के तमाम प्रयासों के बावजूद नवाज शरीफ के लिए प्रधानमंत्री बनने की स्थितियां नहीं बन सकी। उनकी पार्टी बहुमत से दूर रही। शरीफ राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं और देश में व्याप्त जनाक्रोश को महसूस कर रहे हैं। तभी पार्टी ने नवाज के छोटे भाई शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला लिया। बहत्तर वर्षीय शहबाज शरीफ की प्रधानमंत्री के रूप में यह दूसरी पारी है। इससे पहले विपक्षी गठबंधन द्वारा इमरान खान को सत्ता से बाहर किये जाने पर भी वे एक साल चार महीने तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। लेकिन उनके खाते में ऐसी कुछ उपलब्धियां नहीं हैं जिनके बूते उनसे सुशासन की उम्मीद की जा सके। पाकिस्तान वर्तमान में जिस आर्थिक संकट से दो-चार है, उससे देश को बाहर निकालना शहबाज शरीफ के लिये आसान नहीं होगा। दरअसल, शहबाज विरोधी दलों के गठबंधन के साथ हुए समझौते के बाद ही प्रधानमंत्री बन सके हैं। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी यानी पीपीपी अपने मुखिया आसिफ अली जरदारी को राष्ट्रपति बनाए जाने की शर्त पर शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री बनाने पर राजी हुई है। इन हालातों के चलते ही नवाज शरीफ ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से अपना हाथ पीछे खींचा है।
बहरहाल, इमरान खान के जेल में होने और नवाज शरीफ की ऊहापोह के बीच शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिल पाया है। पीएमएल-एन का नेतृत्व जानता है कि शहबाज विपक्षी दलों और सेना से तालमेल बनाने में कामयाब होकर अपनी कुर्सी बचा सकते हैं। इसके अलावा पाकिस्तान के भीतर स्थितियां इतनी चुनौतीपूर्ण हैं कि वहां राज करना कांटों का ताज संभालना ही है। पूरी दुनिया में घटती साख के बीच पाक का आर्थिक संकट जगजाहिर है। महंगाई के त्रास से पाकिस्तानी जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। वहीं उन्हें इमरान के नेतृत्व वाले विपक्ष के कड़े प्रतिरोध को झेलना होगा। सही मायनों में शहबाज शरीफ के कंधों पर बोझ होगा कि वे पाकिस्तान को विफल राष्ट्र की श्रेणी में आने से बचाएं। वहीं सेना से तालमेल बनाना भी एक चुनौती होगी। इतिहास गवाह है कि जब भी पाकिस्तान में लोकतंत्र कमजोर हुआ है सेना को निरंकुश व्यवहार करने की छूट मिली है। इमरान खान पर जिस तरह मुकदमें लादकर उन्हें जेल भेजा गया, उससे सेना के हस्तक्षेप की हकीकत सामने आई है। वहीं कठमुल्लाओं की चुनौती का भी उन्हें सामना करना होगा। पिछले लंबे समय से पाक तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी के निशाने पर रहा है। उसके हमले में सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों व नागरिकों की जान गई है। जहां तक नई सरकार के भारत से संबंधों की बात है तो उसमें किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद कश्मीर मुद्दे पर शहबाज शरीफ ने जिस तरह विषवमन किया, उससे इस बात की पुष्टि होती है। भारत विरोध पाक नेताओं को राजनीतिक रूप से लाभकारी लगता है। बहरहाल ऐसे हालात में कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है कि शहबाज शरीफ अर्थव्यवस्था व कानून व्यवस्था को जल्दी ही पटरी पर ला पाएंगे। उनके शासन की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि विपक्ष दल व सेना उन्हें किस सीमा तक काम करने की आजादी देते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत विरोधी ग्रंथि से मुक्त होकर शहबाज शरीफ दोनों देशों के बीच बेहतर रिश्ते बनाने की दिशा में प्रयास करेंगे।

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