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सात देशों ने की विषरहित प्राकृतिक खेती की वकालत

10:10 AM Sep 16, 2024 IST
नौणी स्थित डॉ. यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी में आयोजित सेमिनार में मुख्य अतिथि से पुरस्कार लेतीं विदेशी वैज्ञानिक। -निस

यशपाल कपूर/ निस
सोलन, 15 सितंबर
डॉ. यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी नौणी की ओर से प्राकृतिक खेती पर विश्व का पहला दो दिवसीय इंटरनेशनल सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें विषरहित खेती से दीगर प्राकृतिक खेती विभिन्न सिफारिशों पर विस्तार से चर्चा हुई। सतत टिकाऊ खाद्य प्रणालियों को सक्षम बनाने के लिए प्राकृतिक खेती विषय पर आयोजित इंटरनेशनल सम्मेलन में भारत के अलावा फ्रांस, सर्बिया, यूके, मॉरीशस, उज़्बेकिस्तान और नेपाल के वैज्ञानिक, किसान और उद्योग के पेशेवर एक साथ एक मंच पर प्राकृतिक कृषि जैसे पर्यावरण हितैषी कृषि पद्धतियों पर विचार विमर्श करने के लिए एक मंच पर आए।
उत्तराखंड बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, भड़सार के कुलपति डॉ. परविंदर कौशल समापन सत्र की अध्यक्षता की। डॉ. कौशल ने पोषण सुरक्षा के लिए प्राकृतिक खेती के महत्व और इस पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धति को बढ़ावा देने में शिक्षा और उद्योग की भूमिका पर जोर दिया। नौणी विवि के कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने प्राकृतिक खेती के लिए एक स्थायी खाद्य प्रणाली मंच विकसित करने में विश्वविद्यालय के प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और मिट्टी, वायु और पानी के स्वास्थ्य को बढ़ाने में प्राकृतिक खेती के लाभों को रेखांकित किया, जो बदले में उपभोक्ता स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
फ्रांस की लिसिस लैब की उप निदेशक प्रोफेसर एलीसन लोकोन्टो ने एक्रोपिक्स परियोजना से अंतर्दृष्टि साझा की और आशा व्यक्त की कि भारत सहित विभिन्न देशों की स्थायी प्रथाओं को विश्व स्तर पर दोहराया जा सकता है। आईसीएआर के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. राजबीर सिंह ने जलवायु परिवर्तन को कम करने में प्राकृतिक खेती की क्षमता पर जोर दिया और देश के 732 कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए आईसीएआर की पहल के बारे में विस्तार से बताया। टिकाऊ खाद्य प्रणालियों में नवाचारों पर चर्चा ने एकीकृत कृषि प्रणालियों को बढ़ाने में आईओटी प्रौद्योगिकी और फार्म टाइपोलॉजी ढांचे की भूमिका को रेखांकित किया। पैनल चर्चाओं में कीटनाशक मुक्त कृषि प्रणाली प्राप्त करने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता पर आम सहमति सामने आई। विशेषज्ञों ने बताया कि इस लक्ष्य के लिए विविध हितधारकों को शामिल करते हुए नवीन अनुसंधान और प्रणालीगत परिवर्तन दोनों महत्वपूर्ण हैं। सम्मेलन का समापन खाद्य जीविका और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए प्राकृतिक खेती में नवाचारों को आगे बढ़ाने पर एक पैनल चर्चा के साथ हुआ। सीआईआरएडी फ्रां के वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉ. ब्रूनो डोरिन ने आंध्र प्रदेश के भविष्य के परिदृश्यों पर अंतर्दृष्टि प्रस्तुत की।

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