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सर्विस बिल पास

07:44 AM Aug 09, 2023 IST

आखिरकार केजरीवाल सरकार के अधिकार सीमित करने वाला दिल्ली सर्विस बिल राज्यसभा में भी पास हो गया। सोमवार को राज्यसभा में बिल के समर्थन में 131 व विरोध में 102 वोट पड़े। भले की केंद्र सरकार ने केजरीवाल सरकार के पर कुतरने वाले बिल को येन-केन-प्रकारेण पारित कर लिया हो, लेकिन विपक्ष को एकजुट करने का मौका जरूर दे दिया। हालांकि, पहले कयास लगाये जा रहे थे कि राजग के सभी सहयोगियों के वोट मिलने के बावजूद केंद्र सरकार राज्यसभा में बिल को पारित नहीं करवा पायेगी। वह भी तब जब एक-दूसरे पर लगातार हमलावर रहने वाले आप व कांग्रेस समेत इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लुसिव अलायंस के सभी घटक बिल के खिलाफ एकजुट हो चुके थे। दरअसल, लोकसभा में बहुमत होने के चलते राजग सरकार ने बिल आसानी से पास करा लिया था, लेकिन राज्यसभा में बहुमत न होने ने उसकी चिंता बढ़ा दी। ऐसे वक्त में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बीजू जनता दल तथा जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी ने राजग की नैया पार लगा दी। निश्चित रूप से इंडियन नेशनल डिवेलपमेंटल इन्क्लुसिव अलायंस इसे अपनी कामयाबी मान रहा है कि मतदान के दौरान उसके किसी सदस्य ने क्रॉस वोटिंग नहीं की। आम आदमी पार्टी को भले ही मतदान के बाद कामयाबी हासिल न हुई हो लेकिन उसका हौसला बढ़ा कि राज्यसभा में सिर्फ दस सांसद होने के बावजूद 102 सांसदों का समर्थन मिला। ऐसे ही उत्साहित इंडियन नेशनल डिवेलपमेंटल इन्क्लुसिव अलांयस भी है कि पिछले महीने बना विपक्षी गठबंधन इस दौरान एकजुट रहा। हालांकि, बहस के दौरान विपक्षी दलों के निशाने पर आम आदमी पार्टी भी रही कि उसने धारा-370 हटाये जाने के मुद्दे पर राजग सरकार का साथ दिया था। वही राजग सरकार अब दिल्ली सरकार के अधिकारों को कुतर रही है। बहरहाल, अब संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद बिल राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के उपरांत कानून का रूप ले लेगा।
वहीं लोकतंत्र के पंडित मानते हैं कि भाजपा व आप के द्वंद्व के चलते केंद्र सरकार ने केजरीवाल सरकार के पर कुतरने के लिये इस मुद्दे को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। अध्यादेश व कोर्ट कचहरी के बाद केंद्र सरकार संशोधन को बिल के रूप में लाई। निस्संदेह अब दिल्ली सरकार में लेफ्टिनेंट गवर्नर की भूमिका बढ़ जायेगी। कालांतर एक स्वायत्तशासी संस्था नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी दिल्ली सरकार के अधिकारियों की तैनाती व तबादले करेगी। कहने को तो दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री इस अथॉरिटी के प्रमुख होंगे,लेकिन निर्णय लेने में मुख्य सचिव व दिल्ली सरकार के गृह सचिव निर्णय को प्रभावित करेंगे। माना जा रहा है कि इन केंद्रीय अधिकारियों की उपस्थिति से केंद्र सरकार की दखल निर्णय लेने में बढ़ जायेगी। अथॉरिटी के फैसले पर अंतिम मोहर भी उपराज्यपाल ही लगाएंगे। स्पष्ट है कि इस बिल के कानून बन जाने के बाद दिल्ली सरकार के अधिकारियों की तैनाती व तबादले में आप सरकार की भूमिका कम हो जायेगी। वहीं विपक्ष इस हार को भी जीत बता रहा है। उसका कहना है कि इस सारी प्रक्रिया में विपक्ष एकजुट रहा है और अब आने वाले महासमर में राजग सरकार को कड़ी चुनौती देने के लिये कमर कस चुका है। इस बिल पर लोकसभा व राज्यसभा में मतदान के दौरान विपक्ष ने एकजुटता दिखाकर कम से कम यही संदेश देने का प्रयास किया। विपक्ष में पड़े एक सौ दो वोट यही संदेश दे रहे हैं कि आम चुनाव में राजग की राह पिछले दोनों चुनावों की तरह सहज नहीं रहने वाली है। वहीं भाजपा आरोप लगाती रही है कि दिल्ली में कांग्रेस व भाजपा की सरकार होने पर कभी अधिकार क्षेत्र मुद्दा नहीं बना। आप राजनीतिक लाभ उठाने के लिये इसे मुद्दा बना रही थी। उसकी दलील है कि दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी होने के चलते इसकी संवेदनशीलता को समझा जाना चाहिए, जिसके चलते यह संशोधन लाना पड़ा है। वहीं विपक्ष इस बिल के दौरान सामने आई एकजुटता को केंद्र सरकार के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी बनाये रखने को प्रतिबद्ध नजर आ रहा है।

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