अलग राजधानी से मिलेगी विकास को नई गति
हरियाणा दिवस
एम.एस. चोपड़ा
वर्ष 1955 में पंजाब उच्च न्यायालय भवन का उद्घाटन करते समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने पंजाब के लिए एक नयी राजधानी की जरूरत और महत्व की बात की। उन्होंने संतोष जताया कि पंजाब के लोगों ने किसी पुराने शहर को अपनी राजधानी के रूप में नहीं चुना। नेहरू जी का मानना था कि ऐसा करने से पंजाब एक पिछड़ा और अविकसित राज्य बन जाता। यह भी कि नयी राजधानी पंजाब के विकास को रफ्तार देगी।
एक नवंबर, 1966 को भाषाई आधार पर हरियाणा नया राज्य बना। यह एक रेतीला भू-भाग था जो आधुनिकता और विकास की अपेक्षित गति से आगे नहीं बढ़ पाया क्योंकि इसके पास अपनी राजधानी और उच्च न्यायालय नहीं है। राजधानी किसी राज्य का सिर्फ प्रशासनिक मुख्यालय ही नहीं होती बल्कि यह राज्य की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, आर्थिक समृद्धि और लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व भी करती है। किसी राज्य की सांस्कृतिक पहचान में उससे जुड़ी हुई यादें, अनुभव, रिश्ते, मूल्य, साझा इतिहास, विशेषताएं और आपसी विश्वास शामिल होते हैं, जो स्थानीय लोगों को विशिष्ट बनाते हैं। इस पहचान से भाईचारे,एकता और देश प्रेम की भावना पैदा होती है ,जो हर क्षेत्र में नयी ऊंचाइयां देती है।
हरियाणा हमेशा से ही पूर्ण राजनीतिक या प्रशासनिक श्रेणी का ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से भी मजबूत राज्य रहा है। लेकिन आज भी इसे अपनी राजधानी व उच्च न्यायालय नहीं मिल सका है। हरियाणा को अपने बड़े भाई पंजाब की तरह ही अपनी अलग और आधुनिक राजधानी की जरूरत है, जिससे सांस्कृतिक पहचान कायम रखते हुए वह अपने आर्थिक विकास को गति दे सके। हरियाणा के राजनीतिक नेतृत्व ने नई राजधानी के दूरगामी असर को समझने में देर की है। राजनैतिक फायदों के लिए उन्होंने नई राजधानी के मुद्दे को पानी व क्षेत्रीय मुद्दों के साथ उलझाया, मुद्दे का सम्मानजनक समाधान खोजने को गंभीर प्रयास नहीं हुए।
दरअसल, कई वजह से हरियाणा को अपनी राजधानी या कम से कम एक कार्यशील राजधानी की जरूरत है। देश के कई राज्यों में दो-दो राजधानियों की व्यवस्था भी है जिससे वहां विकास-रोजगार का दायरा बढ़ने के साथ सरकारी सेवाएं अधिक प्रभावी हो सकें।
फिलहाल केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ हरियाणा का प्रशासनिक मुख्यालय है, लेकिन हरियाणा के ज्यादातर इलाकों के निवासियों के लिए यह बहुत दूर है। दूसरे, हरियाणा का अपनी राजधानी पर कोई प्रशासनिक नियंत्रण भी नहीं है, जिससे समय-समय पर कानूनी विवाद या असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। हालांकि, यह शहर राजनेताओं और अधिकारियों के लिए आरामदायक-सुरक्षित और सुखद माहौल देता है, लेकिन दूर-दराज से आने वाले एक आम नागरिक को अपने मामूली प्रशासनिक या न्यायिक कार्यों के लिए यहां आना असुविधाजनक और काफी महंगा है। राजधानी को प्रशासनिक रूप से सुविधाजनक, सांस्कृतिक रूप से सुसंगत और भावनात्मक रूप से सुखद -संतोषजनक होनी चाहिए।
हरियाणा के शिक्षित युवा पिछले कुछ सालों से देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। लाचारी-निराशा में ऐसे बहुत युवा नशे के जाल में फंसकर अपराध के दलदल में फंसे हैं। राजनीतिक विसंगति से थक चुकी युवा पीढ़ी सकारात्मक परिवर्तन व विकास चाहती है। आज के युवा नयी राजधानी से पैदा होने वाले नये मौकों का इंतजार कर रहे हैं जिसमें बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ही लाखों करोड़ रुपये का निवेश हो सकता है। इससे राज्य के युवाओं के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर मिल सकते हैं। नये शहर की राष्ट्रीय राजधानी से कनेक्टिविटी व निकटता हो और इसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के ज्ञान केंद्र के रूप में तैयार किया जा सकता है। इससे पिछड़े क्षेत्रों में भी विकास बढ़ेगा।
हालांकि, हरियाणा अभी भी मुख्य रूप से कृषि प्रधान राज्य है जहां इसकी आधी से अधिक आबादी खेती-किसानी पर निर्भर है। लेकिन घटती भूमि जोत और अन्य कारणों से किसान, खेत मजदूर और कृषि-कारीगरों की आमदनी कम होती जा रही है। उनके लिए असाधारण उपाय करना बेहद जरूरी है। लक्ष्य को हासिल करने का एकमात्र तरीका हरियाणा को कृषि अर्थव्यवस्था से ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में बदल कर उसे ‘ज्ञान की धुरी’ बनाना है।
हरियाणा राज्य के विकास के मामले में अपेक्षित लक्ष्य न प्राप्त कर सकने का एक कारण उसका अपनी राजधानी पर प्रशासनिक नियंत्रण का अभाव है। यहां की कई ऐतिहासिक हस्तियों जैसे राजा नाहर सिंह, पं. लखमी चंद, बालमुकुंद गुप्ता, राव तुला राम, चौ. मातु राम, सेठ छाजू राम, डॉ. रामधन सिंह, सर छोटूराम ने हरियाणा के समाज निर्माण में अहम योगदान दिया। सामाजिक सद्भाव व भाईचारे के आदर्शों और प्रतीकों की स्मृतियों को संरक्षित करने,उनके विचारों के प्रसार के लिए चंडीगढ़ में संस्थान तक नहीं बन पाए। आज 57वीं वर्षगांठ मना रहे हरियाणा के गौरवशाली अतीत व पुनरुत्थान ह्ेतु अब अपनी नयी राजधानी जरूरी है।
लेखक हरियाणा सरकार में वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं।