तत्व ज्ञान का बोध
एक विद्वान काशी से अध्ययन कर अपने राज्य लौटे। एक दिन लोगों ने उन्हें सुझाव दिया कि आपका स्थान तो दरबार में बैठने योग्य है। वैसे भी अपने राजा विद्वानों का सम्मान करते हैं। संभव है कि राजा आपको दरबार में उचित स्थान भी प्रदान करें। वे राजदरबार में पहुंच गए। राजा ने उनसे आने का कारण पूछा। विद्वान ने कहा, ‘महाराज मैं आपको गीता भाष्य सुनाना चाहता हूं।’ राजा ने नम्रतापूर्वक कहा कि आप सात बार गीता पढ़कर आएं । मैं फिर आपसे गीता सुनूंगा।’ विद्वान को राजा की बात अच्छी नहीं लगी। वे घर लौट आए और पत्नी को सारा वृत्तांत सुनाया। पत्नी ने उन्हें समझाया कि राजा विद्वान है। उन्होंने कुछ सोचकर ही यह परामर्श दिया होगा। सात बार अध्ययन करके वे फिर राजा के पास आए। राजा ने फिर निवेदन किया कि आप पुन: गीता का सात बार चिन्तन करें। उनकी पत्नी ने पुन: वैसा ही करने को कहा। वे एकान्त में गीता पढ़ने लगे। धीरे-धीरे वे गीता के तत्त्व ज्ञान से जुड़ने लगे। गीता-बोध होने पर हृदय में आनन्द-प्रवाह उमड़ने लगा। वे अपने गीता-विक्रय के विचार पर पश्चाताप करने लगे। कुछ दिन बाद राजा स्वयं उन्हें खोजते हुए आए और बहुत आदर से निवेदन किया कि अब आप गीतामय हो गए हैं। मुझे गीता सुनाइए।
प्रस्तुति : सुधीर सक्सेना ‘सुधि’