सह-अस्तित्व का बोध
एक बार संत एकनाथ गांव से गुजर रहे थे। उन्होंने देखा कि कुछ ग्रामीण एक सांप को मार रहे हैं। संत एकनाथ ने पूछा, ‘भाइयो इसे क्यों पीट रहे हो, जन्मवश सर्प होने से क्या हुआ? ये भी तो एक जीव है, एक आत्मा है। युवक ने कहा, ‘आत्मा है तो फिर काटता क्यों है?’ एकनाथ ने कहा, ‘तुम लोग सर्प को न मारो तो वह तुम्हें क्यों काटेगा। तुम अपना जीवन जियो, वह अपना जीवन जिएगा।’ लोगों ने सर्प को छोड़ दिया। दरअसल संत एकनाथ ने ऐसा इसीलिए कहा क्योंकि कुछ दिन पहले ही जब वे ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर के निकट तालाब में स्नान करने जा रहे थे। तभी रास्ते में उन्हें सामने फन फैलाए खड़ा सर्प दिखाई दिया, उन्होंने उसे बहुत हटाना चाहा पर वह टस से मस न हुआ। अंततः एकनाथ को मुड़कर दूसरे घाट पर स्नान करने जाना पड़ा। पर जब वे उजाला होने पर पुराने वाले रास्ते से लौटे तो देखा कि बरसात के कारण वहां एक गहरा गड्ढा हो गया है। संत एकनाथ को आभास हुआ कि अन्य जीव भी सह-अस्तित्व के भाव को समझते हैं। जिस सर्प से वे उस समय क्षुब्ध थे अगर उसने न बचाया होता तो एकनाथ उस गड्ढे में समा चुके होते।
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी