लघुता में बड़ी संभावना की तलाश
आनन्द प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
‘मेरी पचास लघुकथा नाटिकाएं’ प्रो. रूप देवगुण की एक ऐसी कृति है, जिसमें इन्होंने अपनी पचास लघुकथाओं का नाट्य रूपांतरण भी लघुकथा के साथ ही दिया हुआ है। यह निश्चित रूप से एक नया प्रयोग है। आकार की दृष्टि से लघु कही जाने वाली नाटिकाओं का प्रयोग पहले-पहल ध्वनि-नाटिकाओं के रूप में विविध भारती (आकाशवाणी) के ‘हवा महल’ कार्यक्रम मेें प्रसारित होने वाली पन्द्रह-पन्द्रह मिनट की प्रसारण-अवधि वाली रेडियो नाटिकाओं के रूप में मिलता है।
समीक्ष्य कृति के संदर्भ में हम कह सकते हैं कि लेखक की लघुकथाएं, जो कि पहले से ही लघुकथा की कसौटी पर खरा उतरती हैं, का नाटिकाओं के रूप में प्रस्तुतीकरण निश्चित रूप से एक नई विधा के संदर्भ में अनूठे प्रयास को सामने लाता है।
प्रो. रूप देवगुण ने ठीक इसी तरह से लघु कविता के क्षेत्र में भी प्रशंसनीय कार्य किया है; जिसके विस्तार पाने पर इनकी प्रेरणा से देशभर में अब तक 80 के लगभग लघुकविता संग्रहों का प्रकाशन हो चुका है, अतः विश्वास किया जा सकता है कि लघुकथाकारों की लघुकथाओं का नाट्यरूपांतरण भी अब निश्चित रूप से होगा। प्रस्तुत कृति के लघुकथाओं के नाट्य रूपांतरण में संवादों को रूपांतरण विधा के केन्द्र में रखा गया है। यदि दृश्य-विधान को केन्द्र में रखकर देशकाल और वातावरण को स्पष्ट किया जाता तो कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रस्तुत संग्रह में बहुत-सी लघुकथा-नाटिकाएं ऐसी हैं, जिन पर लघु फ़िल्में बनाए जाने पर संदेश और भी अच्छी तरह से स्पष्ट हो सकता है।
प्रस्तुत संग्रह की लघुकथा-नाटिकाओं की भाषा सहज एवं सरल है। इनके केन्द्र में आम आदमी को रखकर उसके परिवेश का ही नहीं, बल्कि उसके मनोभावों को भी पूरी तरह से स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।
पुस्तक : मेरी पचास लघुकथा नाटिकाएं लेखक : प्रो. रूपदेवगुण प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 225.