सुरक्षा की पेंशन
आखिरकार केंद्र सरकार ने कर्मचारियों के पेंशन के मुद्दे को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल करते हुए इस उलझन को दूर करने का प्रयास किया है। उसने पुरानी पेंशन और एनपीएस के बीच का रास्ता निकाल जहां कर्मचारियों के हितों को तरजीह दी है,वहीं राजकोषीय दबाव को भी कम किया है। निस्संदेह, हाल में घोषित एकीकृत पेंशन स्कीम से कर्मचारियों की आर्थिक सुरक्षा को संबल मिलेगा। जिसमें एक निश्चित पेंशन, फैमिली पेंशन का आश्वासन तथा मुद्रास्फीति के दबाव से राहत का प्रयास सम्मिलित है। इस योजना में सेवानिवृत्ति से पहले वर्ष में बारह माह के औसत मूल वेतन का पचास फीसदी पेंशन के रूप में मिलेगा। जिसमें कर्मचारी का योगदान तो दस फीसदी ही रहेगा, लेकिन सरकार का योगदान 14 फीसदी से बढ़कर 18.5 फीसदी हो जाएगा। यह लाभ 25 साल की सेवा के बाद मिलेगा, लेकिन दस साल की सेवा वाले व्यक्ति को भी दस हजार पेंशन का लाभ मिलेगा। निस्संदेह, इस निर्णय के राजनीतिक निहितार्थों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह घोषणा ऐसे वक्त में की गई है जब हरियाणा व जम्मू-कश्मीर में चुनाव कार्यक्रम घोषित है और साल के अंत तक महाराष्ट्र व झारखंड में चुनाव होने हैं। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में विपक्षी दलों ने कर्मचारियों की पुरानी पेंशन की मांग को हवा देते हुए इसे राजनीतिक मुद्दा बनाया था। कहा गया कि हिमाचल प्रदेश में आये जनादेश का एक बड़ा कारण पुरानी पेंशन का मुद्दा था। हालांकि, राजस्थान व पंजाब आदि राज्यों में यह मुद्दा वैसा प्रभावी नजर नहीं आया। निस्संदेह, मुद्दा लोकलुभावन तो था लेकिन पुरानी पेंशन को लागू करने से भारी वित्तीय दबाव बढ़ने की चिंता जतायी गई। तभी बीते साल आरबीआई ने ओपीएस के विकल्प का चयन करने वाले राज्यों पर बढ़ने वाले आर्थिक दबाव पर चिंता जतायी थी। निस्संदेह, इससे सरकारों का राजकोषीय घाटा निरंतर बढ़ने का भी खतरा था। जिसके चलते इस योजना को वर्ष 2004 में समाप्त किया गया था। फिर उसी राह पर लौटना व्यावहारिक भी नहीं था।
दरअसल, राजग सरकार का कहना है कि एकीकृत पेंशन योजना वित्तीय अनुशासन के अनुरूप है, जो कि सरकार द्वारा वित्तीय सहायता के साथ कर्मियों के अंशदान से मूर्त रूप लेती है। जिससे जहां एक ओर सेवानिवृत्ति के बाद कर्मियों को वित्तीय सुरक्षा मिल सकेगी, वहीं राजकोषीय विवेक में भी संतुलन बन सकेगा। दरअसल, विपक्षी दलों द्वारा पुरानी पेंशन को मुद्दा बनाने के बाद केंद्र सरकार ने इसके विकल्प पर गंभीरता से विचार किया। फिर अप्रैल 2023 में तत्कालीन वित्त सचिव टीवी सोमनाथ की प्रधानी में बनी कमेटी ने चिंतन-मनन के उपरांत जो सिफारिश सरकार को सौंपी, बीते शनिवार मोदी सरकार के मंत्रिमंडल ने उसे हरी झंडी दिखा दी। बहरहाल, यह लोकतंत्र की खूबसूरती कही जा सकती है कि जन दबाव में सरकार को बड़ा फैसला लेना पड़ा है। निस्संदेह, पूरा जीवन राजकीय सेवा में लगाने वाला कर्मचारी रिटायर होने के बाद आर्थिक असुरक्षा में घिर जाता है। वह भी तब जब देश में सामाजिक सुरक्षा योजनाएं नगण्य हैं। सेवानिवृत्ति के बाद आय के साधन सीमित होने,बढ़ती उम्र की बीमारियों के दबाव तथा बच्चों की अनदेखी के चलते पूर्व कर्मियों को उपेक्षित जीवन जीने को बाध्य होना पड़ता है। यही वजह है कि देश में एकीकृत पेंशन योजना को सकारात्मक प्रतिसाद मिला है। विपक्षी दल भी विरोध करने के बजाय कह रहे हैं कि उनकी मुहिम से ही यह पेंशन योजना अस्तित्व में आयी। यह सुखद ही है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जरिये कर्मचारी हित में सकारात्मक बदलाव संभव हुआ। आगामी वर्ष में एक अप्रैल को लागू होने वाले इस फैसले से केंद्र के 23 लाख कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद योजना का लाभ मिलेगा, और यदि राज्य योजना को लागू करते हैं तो इसका लाभ करीब नब्बे लाख कर्मचारियों को मिलेगा। वहीं कर्मचारियों के लिये एनपीएस के विकल्प भी खुले रहेंगे। दूसरी ओर सरकार को निजी क्षेत्र के करोड़ों कर्मचारियों की वित्तीय असुरक्षा को महसूस करते हुए उन्हें नई पेंशन का लाभ देने की दिशा में भी गंभीरता से सोचना चाहिए। बहरहाल, केंद्र सरकार ने मध्यम वर्ग को एक राहत देने की कोशिश की है।