सुरक्षा और चिंताएं
संसद की सुरक्षा में सेंध और उसके बाद उपजी राजनीतिक गहमागहमी के दौरान सांसदों के निलंबन के बीच केंद्रीय संचार मंत्री ने लोकसभा में टेली कम्युनिकेशन बिल 2023 के नये स्वरूप को पेश किया। इसमें जहां कई दृष्टियों से उपभोक्ताओं के हितों को प्राथमिकता दी गई है, वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रसंगवश सरकार को जो नये अधिकार दिये गए हैं, उनको लेकर निजता व व्यक्तिगत आजादी की चिंताओं को भी अभिव्यक्त किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि बिल सरकार को नागरिकों की निजता में हस्तक्षेप के असीमित अधिकार देता है। वहीं दूसरी ओर नया टेलीकॉम बिल कई तरह से मोबाइल यूजर्स को राहत भी देता है। यदि कोई बिना वजह टेलीफोन उपभोक्ता को परेशान करता है, तो उस पर पचास हजार से लेकर दो लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर टेलीकॉम कंपनियों को उपभोक्ता को सिम जारी करने से पहले अनिवार्य रूप से बॉयोमेट्रिक पहचान का प्रावधान रखा गया है। यह बिल सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से किसी भी टेलीकॉम सर्विस या नेटवर्क के टेक ओवर, उसे व प्रबंधन को निलंबित करने का अधिकार देगा। दरअसल, यह बिल 138 साल पुराने भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम को बदलेगा, जो अब तक टेलीकॉम सेक्टर को संचालित करता रहा है। साथ ही सरकार को बाजार में प्रतिस्पर्धा , टेलीकॉम नेटवर्क की उपलब्धता व निरंतरता सुनिश्चित करने का अधिकार भी देगा। इससे टेलीक़ॉम के क्षेत्र में कार्यरत देशी-विदेशी कंपनियों को लाभ मिलेगा। साथ ही लगातार अनचाही कॉल से अब राहत की उम्मीद की जा रही है। इससे पहले ट्राई की तरफ से भी प्रमोशनल व बैंक कॉल्स की बढ़ोतरी रोकने के लिये कई सुझाव भी दिये गए थे। अब प्रोफेशनल मैसेज भेजने के लिये ग्राहक की अनुमति लेनी होगी। वहीं नये संशोधन में टेलीकॉम कंपनियों को राहत देते हुए पेनल्टी की रकम को पचास करोड़ से पांच करोड़ किया गया है। इसके अलावा ओटीटी के लिये नियमों को भी तय किया गया है। टेलीकॉम कंपनियां यूजर्स की शिकायत दर्ज कराने को ऑनलाइन मैकेनिज्म बनाएंगी।
लेकिन दूसरी ओर नये दूरसंचार विधेयक को लेकर विपक्षी दल चिंता भी जता रहे हैं कि इस बिल के जरिये सरकार को नागरिकों के संदेशों में हस्तक्षेप करने की अधिक शक्तियां मिल जाएंगी। बिल में प्रावधान है कि व्हाट्सएप जैसी सेवाओं और ई-मेल प्रदाताओं को दूरसंचार सेवाओं के दायरे में लाया जाएगा। विधेयक में किसी भी तरह अवैध रूप से फोन टैपिंग और अनधिकृत डेटा ट्रांसफर पर तीन साल तक कैद या दो करोड़ तक जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। राष्ट्रीय सुरक्षा हित के लिये अस्थायी रूप से सरकार दूरसंचार सेवाओं को नियंत्रण में ले सकेगी। दरअसल, केंद्रीय संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा पेश नया विधेयक भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1885, भारतीय वायरलेस टेलीग्राफी अधिनियम 1933 और टेलीग्राफ तार(गैरकानूनी कब्जा) अधिनियम 1950 को निरस्त करेगा। इस बिल को पेश करते वक्त बसपा के एक सांसद ने इसे धन विधेयक के रूप में पेश करने का विरोध किया, जो इसे राज्यसभा की चर्चा से बाहर रखता है। उन्होंने इस बिल से जुड़ी गोपनीयता संबंधी चिंताओं के चलते संसदीय समिति को भेजने की भी मांग की थी। विधेयक कुछ उपग्रह आधारित मोबाइल सेवाओं के प्रशासनिक आवंटन के जरिये स्पेक्ट्रम प्रदान करने का अधिकार भी देता है। जिसके चलते कई नामी अंतर्राष्ट्रीय टेलीकॉम कंपनियों व कुछ भारतीय कंपनियों की उपग्रह संचार परियोजनाओं को इसका लाभ मिल सकेगा। विधेयक में प्रावधान है कि मान्यता प्राप्त पत्रकारों और संवाददाताओं के संदेशों को अवरुद्ध नहीं किया जाएगा, बशर्ते वे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा न हों। निस्संदेह, उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि अवांछित कॉल से लोग बहुत परेशान रहते हैं। लेकिन साथ ही यह जरूरी है कि नागरिकों की निजता व लोकतांत्रिक अधिकारों का भी अतिक्रमण नहीं किया जाना चाहिए। समय के साथ कानूनों को व्यावहारिक बनाया जाना बेहद जरूरी है। लेकिन ये कानून सत्ता को निरंकुश व्यवहार का अवसर न दें। सरकार की रीतियां-नीतियां लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप ही होनी चाहिए।