अलगाव के मंसूबे
पिछले कुछ समय से कनाडा, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन आदि देशों में अलगाववादियों की हरकतों में जो तेजी देखी गई है, वह उनकी भारत में मनमानी न कर पाने से उपजी हताशा ही कही जा सकती है। इन देशों में कानूनी जटिलताओं का फायदा उठाकर पृथकतावादी भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते रहते हैं। निहित स्वार्थों में लिप्त पश्चिमी देश भारतीय संप्रभुता को चुनौती देने के कृत्य को अभिव्यक्ति की आजादी की श्रेणी में दिखाकर अपने दायित्वों से मुक्त होने का प्रयास करते हैं। निस्संदेह, उनका यह रवैया दुराग्रहपूर्ण है और अलगाववादियों को मनमानी करने का मौका देता है। अलगाववादी गाहे-बगाहे भारतीय दूतावासों व राजनयिकों को निशाना बनाते रहते हैं। गत रविवार को न्यूयॉर्क के एक गुरुद्वारे में खालिस्तान समर्थकों ने भारतीय राजदूत तरनजीत सिंह संधू के साथ दुर्व्यवहार किया। विडंबना यह है कि यह घटना एक शुभ व पवित्र अवसर पर हुई। जिसमें धार्मिक स्थल की गरिमा का भी ध्यान नहीं रखा गया। अलगाववादियों ने राजदूत से एक नामित आतंकी के बारे में सवाल पूछे, जिसकी पिछली जून में कनाडा में हत्या हुई थी। इतना ही नहीं, अलगाववादियों ने उन्हें वहां से जाने को कहा। हालांकि, गुरुद्वारे के अधिकारियों ने संधू का अभिनंदन किया। उल्लेखनीय है कि यह प्रकरण ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी को खालिस्तान समर्थक तत्वों द्वारा ग्लासगो (स्कॉटलैंड) में एक गुरुद्वारे में प्रवेश करने से रोकने के दो महीने बाद सामने आया है। तब अलगाववादियों ने उनकी कार पर हमला करने की कोशिश ही नहीं की थी बल्कि उन्हें जबरन पीछे हटने को मजबूर भी किया गया। निस्संदेह, ये विद्वेषपूर्ण घटनाएं पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में अलगाववादियों और भारत विरोधी लोगों को मिली खुली छूट को ही रेखांकित करती हैं। दरअसल, निज्जर मामले में भारत सरकार के अधिकारियों की संलिप्तता के बारे में कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आरोपों ने खालिस्तान समर्थकों को भारत के खिलाफ उग्र व्यवहार के लिये प्रोत्साहित किया है।
निश्चित रूप से कनाडाई प्रधानमंत्री अपनी अल्पमत सरकार को बचाने के लिये जिन समूहों का समर्थन ले रहे हैं, उनको खुश करने के लिये वे निज्जर मामले में भारत की संलिप्तता की दलीलों को हवा दे रहे हैं। भारतीय उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा, जिनका नाम और तसवीर निज्जर की हत्या के कुछ हफ्तों के बाद कनाडा में भड़काऊ पोस्टरों पर दिखाई दी थी, उन्होंने दोहराया है कि भारत मामले में विशिष्ट और प्रासंगिक सबूत मांग रहा है ताकि वह कनाडा को जांच में पूरी मदद कर सके। कनाडा सरकार न केवल भारत को जांच में शामिल करने को लेकर टाल-मटोल कर रही है बल्कि उसने भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये जमीन पर बहुत कम काम किया है। निश्चित रूप से अलगाववाद के नापाक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये पूजा स्थलों सहित विभिन्न प्लेटफार्मों का दुरुपयोग करने वाले उपद्रवियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जिम्मेदारी संबंधित सरकारों पर है। निश्चित रूप से ऐसे तत्वों पर नकेल कसने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी सख्त जरूरत है। पश्चिमी देश इस खतरे से तब तक छुटकारा नहीं पा सकते जब तक कि वे वोट-बैंक के तुष्टीकरण के स्थान पर कूटनीतिक सद्भावना को प्राथमिकता देना आरंभ नहीं करते। लेकिन मानव अधिकारों व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अपनी सुविधा के अनुसार व्याख्या करने वाले पश्चिमी देश अपनी नीतियों के क्रियान्वयन में दूसरे देशों की संप्रभुता का कभी सम्मान नहीं करते। यदि पश्चिमी देश अपने छिपे एजेंडे को इसी तरह हवा देते रहे तो निश्चित रूप से इसका असर द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ेगा। जैसा कि हाल ही में कनाडा के साथ भारत के रिश्ते सबसे बुरे दौर में जा पहुंचे थे। इन देशों की सरकारों से उम्मीद की जाती है कि भारतीय राजनयिकों व दूतावासों में काम करने वाले कर्मचारियों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करें। वहीं पाकिस्तान के कई संगठन व एजेंसियां भी अलगाववादियों को उकसाने का काम कर रही हैं। विगत में कई ऐसी साजिशें बेनकाब हुई हैं। उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि भारत में हिंदू-सिखों के रिश्ते सदियों से बहुत गहरे हैं।