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कोविड की समग्र वैक्सीन की तलाश में वैज्ञानिक

08:06 AM Sep 24, 2024 IST

मुकुल व्यास

दुनिया में कोरोना वायरस का खौफ खत्म हो चुका है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमें इस खतरनाक वायरस की मौजूदगी से बेफिक्र हो जाना चाहिए। यह वायरस निरंतर नई किस्मों में विकसित हो रहा है और नए म्यूटेशन अख्तियार कर रहा है। वायरस के नए उभरते हुए वेरिएंट वैज्ञानिकों और वैक्सीन निर्माताओं के समक्ष नई चुनौतियां पेश कर रहे हैं। मोडर्ना और फाइजर ने अपनी एमआरएनए आधारित वैक्सीन को अपडेट किया है जबकि नोवावैक्स की प्रोटीन आधारित वैक्सीन को एफडीए की मंजूरी मिल गई है। कुछ महीने पहले एस्ट्राजेनेका ने कुछ साइड इफेक्ट सामने आने के बाद अपनी वैक्सीन बाजार से वापस ले ली थी। इस समय उपलब्ध तमाम वैक्सीनें कोरोना वायरस के नए वेरिएंट और भविष्य के पेंडेमिक से निपटने में सक्षम नहीं हैं।
दरअसल, इन वैक्सीनों की सीमाओं को ध्यान में रखकर वैज्ञानिकों ने एक समग्र वैक्सीन विकसित करने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। अमेरिका में आस्टिन स्थित टेक्सास विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एससी 27 नामक एंटीबॉडी की पहचान की है, जो कोविड-19 वायरस के सभी ज्ञात वेरिएंट को बेअसर करने में सक्षम है। यह खोज एक यूनिवर्सल वैक्सीन विकास और बेहतर उपचार की संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त करती है। शोधकर्ताओं द्वारा खोजी गई एंटीबॉडी कोविड-19 के लिए जिम्मेदार वायरस, सार्सकोव-2 के सभी ज्ञात वेरिएंट और विभिन्न जानवरों में पाए जाने वाले कई अन्य सार्स जैसे कोरोना वायरस को बेअसर करने में सक्षम है।
टेक्सास विश्वविद्यालय के नेतृत्व में विभिन्न संस्थानों के शोधकर्ताओं ने वायरस के खिलाफ हाइब्रिड इम्यूनिटी पर अध्ययन किया है। हाइब्रिड अथवा मिश्रित इम्यूनिटी उन लोगों में होती है जिन्हें वैक्सीन लग चुकी हो और साथ ही उनमें वायरस का हल्का संक्रमण भी हुआ हो। अध्ययन के दौरान अनुसंधान टीम ने एक मरीज से एससी 27 एंटीबॉडी की खोज की और उसे अलग किया। एंटीबॉडी प्रतिक्रिया पर कई वर्षों के शोध में विकसित तकनीक का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने एंटीबॉडी का सटीक आणविक अनुक्रम प्राप्त किया। इससे भविष्य के उपचारों के लिए इस एंटीबॉडी को बड़े पैमाने पर बनाने का रास्ता खुल गया। इस अध्ययन में शामिल एक विज्ञानी जेसन लविंदर ने कहा, एससी 27 और भविष्य में इसके जैसी अन्य एंटीबॉडी की खोज से हमें वर्तमान और भविष्य के कोविड वेरिएंट के खिलाफ आबादी की बेहतर सुरक्षा करने में मदद मिलेगी।
कोविड-19 की खोज के बाद चार साल के दौरान इस महामारी को पैदा करने वाले वायरस का तेजी से विकास हुआ है। इसके प्रत्येक नए वेरिएंट ने अलग-अलग विशेषताएं दर्शाई हैं जिनकी वजह से कई वेरिएंट टीकों और अन्य उपचारों के प्रति अधिक प्रतिरोधी हो गए हैं। सुरक्षात्मक एंटीबॉडी वायरस के एक हिस्से से बंधती है जिसे स्पाइक प्रोटीन कहा जाता है जो वायरस के शरीर में कोशिकाओं से जुड़ने और उन्हें संक्रमित करने के लिए एक एंकर पॉइंट के रूप में कार्य करता है। एंटीबॉडी स्पाइक प्रोटीन को अवरुद्ध करके, इस वायरस के संक्रमण को रोकती हैं। एससी 27 की खूबी यह है कि यह कई कोविड वेरिएंट में स्पाइक प्रोटीन की विभिन्न विशेषताओं को पहचान लेती है। यद्यपि महामारी का सबसे बुरा दौर बीत चुका है, फिर भी लोगों को वायरस से बचने और उसका इलाज करने में मदद करने के लिए नवीन समाधानों की आवश्यकता है। इस दिशा में नई एंटीबॉडी की खोज एक महत्वपूर्ण कदम है।
एक अन्य अध्ययन में कोरोना वायरस के बारे में एक चौंकाने वाली बात सामने आई है। यह वायरस वन्य जीव प्रजातियों में व्यापक रूप से फैला हुआ है। एक नए शोध के अनुसार छह आम प्रजातियों में यह वायरस पाया गया है। इसके अलावा वायरस के पिछले संपर्क को इंगित करने वाली एंटीबॉडी पांच प्रजातियों में पाई गई, जिनमें अलग-अलग प्रजातियों में जोखिम की दर 40 से 60 प्रतिशत तक थी।
नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित वर्जीनिया टेक की रिसर्च के अनुसार जंगली जानवरों में आनुवंशिक निगरानी ने सार्स-कोव-2 की उपस्थिति की पुष्टि की। इस निगरानी ने वायरस के म्यूटेशन (आनुवंशिक परिवर्तन) की भी पुष्टि की जिनका संबंध उस समय मनुष्यों में प्रसारित होने वाले वेरिएंट से मिलती-जुलती किस्मों के साथ था। इससे वैज्ञानिकों की यह धारणा मजबूत हुई है कि मनुष्यों से जानवरों में इस वायरस का संचार हुआ है। वर्जीनिया टेक कैरिलियन (वीटीसी) के वैज्ञानिकों के अनुसार सार्सकोव-2 का सबसे अधिक संपर्क हाइकिंग वाले मार्गों और उच्च-यातायात वाले सार्वजनिक क्षेत्रों के आसपास के जानवरों में पाया गया। इससे पता चलता है कि यह वायरस मनुष्यों से वन्य जीवों में फैला।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ये निष्कर्ष वन्य जीवों में सार्सकोव-2 के नए म्यूटेशन की पहचान और व्यापक निगरानी की आवश्यकता को उजागर करते हैं। ये म्यूटेशन अधिक हानिकारक और संक्रामक हो सकते हैं, जिससे वैक्सीन विकास के लिए चुनौतियां पैदा हो सकती हैं।
वैज्ञानिकों ने जोर देकर कहा कि उन्हें जानवरों से मनुष्यों में वायरस के संचारित होने का कोई सबूत नहीं मिला है और लोगों को वन्य जीवों के साथ सामान्य संपर्क से नहीं डरना चाहिए। शोधकर्ताओं ने सक्रिय संक्रमण और पिछले संक्रमणों का संकेत देने वाले एंटीबॉडी के परीक्षण के लिए वर्जीनिया में जानवरों की 23 प्रजातियों की जांच की। उन्हें चूहों, खरगोश और चमगादड़ की स्थानीय किस्मों और वर्जीनिया ओपोसम (मार्सुपियल श्रेणी का स्तनधारी जीव) में वायरस के लक्षण मिले। एक ओपोसम से अलग किए गए वायरस ने जो म्यूटेशन दिखाए, वे पहले जानकारी में नहीं आए थे। वायरस एक चाबी की तरह है और जिन कोशिकाओं को यह संक्रमित कर सकता है वे ताले की तरह हैं। वायरस किसी भी जानवर की किसी भी कोशिका को संक्रमित नहीं कर सकता। उसे सही ‘लॉक’ (रिसेप्टर) वाली कोशिका खोजने की जरूरत होती है या उसे नए लॉक को फिट करने के लिए अपनी चाबी (वायरल प्रोटीन) को बदलना पड़ता है। एक चाबी को नए ताले में फिट होने के लिए म्यूटेशन प्राप्त करके आकार बदलने की आवश्यकता होती है।
शोधकर्ताओं ने सार्सकोव-2 में मौजूद ‘चाबियों’ के साथ यही देखा जब वायरस ने ओपोसम और गिलहरी जैसी जंगली प्रजातियों में छलांग लगाई। वायरल प्रोटीन ने कम से कम दो म्यूटेशन प्राप्त किए। इस अध्ययन से जुड़ी एक वैज्ञानिक कार्ला फिंकेलस्टीन ने कहा, जब मनुष्य वन्य जीवों के संपर्क में होते हैं, तो वायरस उनसे वन्य जीवों में कूद सकता है। वायरस का लक्ष्य जीवित रहने के लिए अपना प्रसार करना है। वह अधिक से अधिक मनुष्यों को संक्रमित करना चाहता है, लेकिन टीकाकरण कई मनुष्यों की रक्षा करता है। इसलिए वायरस जानवरों की ओर मुड़ता है और नए मेजबानों में पनपने के लिए म्यूटेशन करता है।

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लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

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